क्या आपने कभी सोचा है अगर ईश्वर आपसे कहें कि कुछ भी तीन चीजें मांगों तो आप क्या मांगेंगे. मैंने भी नहीं सोचा.
टेलीविज़न पर एक दिन फिल्म आ रही थी – अ लिटिल बिट ऑफ हेवन. इसमें एक 30 वर्ष की लड़की को पता चलता है कि वह मरने वाली है और ईश्वर प्रकट होकर उससे तीन इच्छाएं बताने को कहते हैं.
उस लड़की को भी नहीं पता होता कि वह क्या मांगे. फिर भी उसने तीन इच्छाएं बताईं. इस दौरान उसने ऐसा नहीं कहा कि उसे मरना नहीं है.
उसने तो मांगा कि ‘मैं यह ज़िन्दगी अच्छे से जी लूं’.
फिल्म के इस किरदार से मुझे बड़ी प्रेरणा मिली. उस लड़की ने मुझे सिखाया कि जीवन छोटा हो या बड़ा, अपनों का साथ हो और हर एक पल सेलिब्रेट किया जाए ताकि लोग मरने के बाद भी आपको मुस्कुरा कर याद करें.
फिल्म ख़त्म हुई तो मैंने अपने बच्चों से कहा कि मरते वक़्त मैं भी अपनी विल में लिख जाउंगी कि सब को क्या करना है. मरने के बाद मेरी प्रार्थना सभा नहीं, बल्कि एक पार्टी रखना, जिसमें रंग बिरंगे बैलून हों, गुलाबी और सफ़ेद मेज़ पोश, सफ़ेद और गुलाबी फूल हों.
लिली और खुशबूदार गुलाब मुझे ज्यादा पसंद हैं, गार्डिनिया की फूलों से सजावट हो. सभी मेहमान रंग बिरंगे कपड़ों में हों, म्यूजिक हो, सब नाचें और गाएं, मस्ती करें, बढ़िया खाना पीना हो, वाइन हो, मेरे सारे चाहने वाले हों… एक ख़ुशी का माहौल हो. मेरे जाने का ग़म नहीं, बस ख़ुशी हो.
इस बात पर मेरे दोनों बच्चे हंसने लगे. आप भारत में जीती हैं मां, यहां एक तस्वीर पर सफ़ेद फूल लगेंगे, दोनों तरफ लोग बैठे होंगे, कोई भजन गा रहा होगा, बस और क्या. ये अमेरिका नहीं है अम्मा.
अब ज़रा सोचिए, मेरे दोनों बच्चों ने जीते जी मेरी तस्वीर भी टांग दी. घोर कलयुग है.
मैंने कहा, “इसीलिए तो तुम्हें बता रही हूं ताकि ये सब हो. और मरते वक़्त एक कोज़ी बेड हो, मेरे सभी करीबी मेरा हाथ पकड़ें हों, और एक हैंडसम सा डॉक्टर भी हो. हा हा हा.”
इतना कहना था कि दोनों बच्चे सर पकड़ कर कमरे से बाहर निकल गए. फिर, मैं पेन पेपर लिए सोचती रही कि मेरी तीन इच्छाएं क्या होंगी.
सोचने बैठा जाए तो कितना मुश्किल है तीन आखरी इच्छाओं का चुनाव करना. अभी तो हजारों तमन्नाएं अधूरी हैं.
टेलीविज़न पर वह पिक्चर तो ख़त्म हो गई, पर मेरी अभी बाकी है.