आज के परिवेश में शरीर को फिट (fitness) रखने के लिए हमारे हर उम्र के साथी अनेक उपायों को अपनाते हैं.
पहले के ज़माने में जिस तरह लोग फिट होने पर कतराते नज़र चुराते घूमते थे, आज के इस जीरो फिगर के ज़माने में हम तन के ज़रा से भी अधिक वजन को मन पर धरे घूमते नजर आते हैं.
मानव संरचना के मूलभूत सिद्धांतों पर निर्मित होने पर भी हम सभी का देह एक दूसरे से पृथक है. अतः हम सभी का एक सी आकृति का होना संभव नहीं.
इससे ये बात मानसिक रूप से समझ लें कि यदि हम सभी जीरो फिगर के भी हो जाते हैं तो भी हमारा जीरो फिगर दूसरे के जीरो फिगर से भिन्न होगा.
अतः इस तथ्य से यह बात समझ में आती है कि हम किसी दूसरे की तरह के शरीर को प्राप्त नहीं कर सकते और हम केवल अपने तरह के शरीर को ही पा सकते हैं.
स्वास्थ्य की परिभाषा में तन के साथ मन के स्वस्थ होने की बात बहुत महत्वपूर्ण ढंग से कही गई है. किन्तु आज के परिवेश में देह की सुंदरता के लिए लाखों उपाय करते लोग मन के स्वास्थ्य पर मौन नज़र आते हैं.
सर्व सुविधाओं से युक्त इस माहौल में आपने अक्सर लोगों को कुछ इस तरह के वाक्य कहते सुना होगा या कभी आपके मन से भी यह आवाज आई होगी कि आज कल किसी काम में मन नहीं लगता, मन ठीक नहीं है. या मैं यह काम कर तो रहा हूं किन्तु यह मेरे मन का काम नहीं है.
स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले नन्हे युवाओं से लेकर नौकरी पेशा युवक-युवतियों के मन को नकारात्मक भावनाएं घेरे रहती हैं
इसका बहुत बड़ा कारण है कि हम बाहर की दुनिया के अनुरूप अपने आप को ढालना चाहते हैं, बिन यह सोचे कि यह हमारे लिए कितना जरूरी है.
एक प्राचीन कहावत के अनुसार स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क (मन) निवास करता है. और यह बात काफी हद तक ठीक भी है किन्तु इसके विपरीत अगर मन स्वस्थ न हो तो वह अच्छे शरीर को भी उपयोगहीन कर देता है.
इसलिए जितना आवश्यक अपने शरीर का ध्यान रखना है. उससे कहीं अधिक आवश्यकता मन को स्वस्थ्य रखने की है. और इसे स्वस्थ्य रखने लिए आवश्यक है कि आप रचनात्मक रहें.
अपने शरीर की बनावट को स्वीकार कर उसके अनुरूप ही शरीर का ध्यान रखें एवं जीवन को खेल भावना से जियें.