मैं आम तौर पर इस तरह की चर्चाओं से दूर रहना पसंद करता हूँ, लेकिन अनेक लोग है जो ऐसी ‘सार्थक’ चर्चाएं करते रहते हैं. बॉलीवुड में कास्टिंग काउच का मामला देखिये जो हमेशा ही उठता रहता है.
मेरी मित्र सरोज खान की टिप्पणियों को तो मीडिया में खूब परोसा गया. सरोज खान एक स्थापित कोरियोग्राफर हैं, इसमें कोई शक नहीं.
वे दिल खोल कर बोलती हैं, इसमें भी कोई शक नहीं. लेकिन, मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि यह अद्भुत कोरियोग्राफर भी शब्दों के जाल में फंसकर कुछ गलत बोल गईं. यह भी हो सकता है कि उनके पास शब्द चुनने के विकल्पों की कमी हो.
पुराने काल में भारत में ‘संधि’ नामक एक व्यवस्था थी जिसमें यह प्रावधान था कि छोटे राजा अपनी बहनों और बेटियों को अधिक शक्तिशाली राजाओं से शादी करने के लिए भेज दें (जिनमें से कुछ पहले ही विवाहित थे).
इसके पालन से अधिक शक्तिशाली लोगों से छोटे लोगों को संरक्षण का आश्वासन मिलता था.
बॉलीवुड व हमारे मनोरंजन उद्योग के बारे में बात करने से पहले, क्या हम सामान्य नागरिक की आंखों से देखते हुए यह कह सकते हैं कि जीवन के किस क्षेत्र में महिलाओं और पुरुषों का शोषण नहीं किया जाता है?
अपने व्यक्तिगत जीवन में मैंने पाया है कि महिलाओं व पुरुषों का बलपूर्वक शोषण नहीं होता, ज्यादातर शोषण एक प्रस्ताव की तौर पर किया गया है या किया जाता रहा है जिसे स्वीकार कर लिया गया हो.
बॉलीवुड में काम देने के एवज में कलाकारों के यौन शोषण यानी कास्टिंग काउच को अक्सर फिल्म इंडस्ट्री के लोगों द्वारा नकारा जाता रहा है, लेकिन कुछ साल पहले हॉलीवुड से शुरू हुई एक मुहिम के बाद टिस्का चोपड़ा, रणवीर सिंह, इलियाना डीक्रूज़, ऋचा चड्ढा जैसे कई अभिनेता-अभिनेत्री खुलकर सामने आए हैं.
ऋचा के अनुसार बॉलीवुड में यौन उत्पीड़न होता है जिसे स्वीकार करना साहस की बात है, लेकिन ऐसा करने वालों का नाम नहीं लिया जा सकता क्योंकि उसके बाद काम मिलने की गारंटी नहीं होती. उन्होंने यह भी कहा कि कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में इस तरह की व्यवस्था नहीं है जिससे कि पीड़ितों को सुरक्षा मिले.
मैंने इसका दूसरा पक्ष भी देखा है, जो वास्तव में बहुत खुशनुमा दृश्य प्रस्तुत नहीं करता. यदि एक फिल्म निर्माता या निर्देशक किसी अभिनेत्री के साथ किसी तरह का संबंध स्थापित करता है तो फिल्म के सेट पर छोटे से छोटे कलाकार या कर्मचारी को दोनों के व्यवहार से पता चल जाता है कि अमुक अभिनेत्री किसी मालकिन से कम नहीं और नतीजतन उसे वही इज्जत देनी है जो निर्माता-निर्देशक को मिलती है.
एक फिल्म में जब मैं मुख्य सहायक निर्देशक के रूप में काम कर रहा था तो मुझे अचानक स्टूडियो में ही फोन आया, जहां हम एक गीत शूट कर रहे थे. फोन पर मुझे बताया गया कि एक लड़की मुझसे मिलना चाहती थी. वह उस फिल्म में लीड में नहीं थी बल्कि एक सहायक कलाकार थी.
उस लड़की को कहीं से यह लगा था कि मैं एक अच्छा इंसान हूँ और उसे उस फिल्म में कुछ और भी बेहतर काम दे सकता हूँ. मिलते ही उसने कहा, “मुझे बेहतर रोल चाहिए ताकि मुझे और पैसे मिल सकें. मुझे अपने घर को चलाने के लिए पैसे की जरूरत है.”
जब मुझे लगा कि वह एक जरूरतमंद थी और बेहतर काम कर सकती थी तो मैं तुरंत सहमत हो गया. मैंने प्रोडक्शन स्टाफ से कहा कि यह मेरा निर्णय है कि उस लड़की को बेहतर रोल दिया जाए.
कुछ हफ्ते बाद, उस लड़की ने मुझे अपने घर बुलाया और कहा कि वह उस रात खाली है और वह चाहती है कि मैं उसके साथ वक्त गुजारूं ताकि वह अपने अंदाज़ में मेरी द्वारा की गई मदद के लिए मुझे धन्यवाद कर सके.
उसके प्रस्ताव को मैंने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया. मैं एक इंसान हूँ जो हर तरह से बिलकुल भी पवित्र नहीं है फिर भी यह एक ऐसा प्रस्ताव था जिसे मैं कतई स्वीकार नहीं कर सकता था.
बॉलीवुड की मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खान ने फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच के मसले पर हाल ही में कहा कि यह किसी के लिए भी कोई नई बात नहीं है. “ये चला आ रहा है बाबा आदम के ज़माने से. हर लड़की के ऊपर कोई न कोई हाथ साफ करने की कोशिश करता है. गवर्नमेंट के लोग भी करते हैं. लोग फिल्म इंडस्ट्री के पीछे क्यों पड़ जाते हैं? इस इंडस्ट्री में कम से कम रोटी तो मिलती है, किसी को रेप करके छोड़ तो नहीं दिया जाता.”
सरोज खान ने यह भी कहा कि ये लड़की के ऊपर निर्भर करता है कि वो अपने साथ क्या होने देना चाहती है.
मुझे वह पल भी याद है जब मैं बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म शूट कर रहा था. फिल्म की हीरोइन के साथ मेरी कुछ ख़ास बन नहीं रही थी, उसे मुझसे कुछ तकलीफ हो रही थी. यह सब फिल्म निर्माता ने भांप लिया और उसने मुझे कहा कि उस हीरोइन को मुझे डिनर पर आमंत्रित करना चाहिए और उसे अगली सुबह ही घर जाने की अनुमति देनी चाहिए; और रात में मुझे उसे यह अहसास दिलाना चाहिए कि सिर्फ एक्टिंग के बल पर ही वह इस फिल्म में हीरोइन के रूप में साइन नहीं की गई है.
वह निर्माता आज एक सुपरस्टार है और मुझे याद है कि मैंने किस अंदाज़ में उसकी सलाह पर उसे जवाब दिया था. एक शब्द में कहूं तो मैंने उसे तब सदमा ही दिया था.
क्या इस तरह आप किसी ऑफिस या इंडस्ट्री में खुद को स्थापित करते हैं? मैं मानता हूँ कि मैं कोई महात्मा नहीं, लेकिन मैं महिलाओं का सम्मान करता हूँ, और ऐसा करते हुए मुझे ख़ुशी मिलती है. – बबलू दिनेश शैलेन्द्र