सिल्विया प्लाथ (अक्टूबर 27, 1932 – फरवरी 11, 1963) एक प्रतिभावान अंग्रेजी लेखिका थीं, जिन्होंने अपने जीवन काल में न केवल विचारोत्तेजक काव्य रचनाएं लिखी बल्कि उपन्यास और लघु कथाओं की भी रचना की.
उनका जन्म बॉस्टन, अमेरिका में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के स्मिथ कॉलेज से प्राप्त की. वर्ष 1982 में उनके मरणोपरांत उन्हें उनकी दी कलेक्टेड पोयम्स के लिए पुलित्ज़र पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
मेसाचुसेट्स राज्य के विन्थ्रोप शहर में अपने निवास के दौरान, प्लाथ ने मात्र आठ वर्ष की उम्र में अपनी पहली कविता प्रकाशित करवाई थी, जो बॉस्टन हेराल्ड नामक अखबार के चिल्ड्रन सेक्शन में छपी थी. उसके बाद निरंतर वह अपनी काव्य रचनाओं को क्षेत्रीय अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित करवाती रहती थीं.
लिखने में रूचि और अद्वितीय कौशल के साथ ही वह कला में भी बेहद निपुण थी. उन्हें अपनी अद्भुत चित्रकला के लिए 1947 में स्कॉलिस्टिक आर्ट एंड राइटिंग अवार्ड्स संगठन की ओर से सम्मानित किया गया था. वर्ष 1950 में उन्होंने स्मिथ कॉलेज में दाखिला लिया और वहां अपनी शिक्षा में श्रेष्ठ रही.
अपनी स्नातक की शिक्षा के दौरान उन्होंने दी स्मिथ रिव्यु का संपादन किया और त्रितीय वर्ष के अंत होने पर उन्हें दी मैडेमोइसेल्ल नामक चर्चित पत्रिका के अतिथि संपादक का प्रतिष्ठित पद मिला, जिसके लिए वह एक माह के लिए न्यूयॉर्क में रहीं.
उस दौरान प्रख्यात वेल्श कवि डिलन थॉमस के साथ उनकी मुलाक़ात होते-होते रह गई और इस बात का उन पर गहरा असर हुआ. दरअसल वह थॉमस की काव्य रचनाओं और व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थीं, और उनसे न मिल पाने की उन्हें बहुत निराशा हुई.
फिर, बहुत सी घटनाओं से प्रभावित होकर उन्होंने बेल जार लिखा था, जिसे प्लाथ की अर्द्ध-आत्मकथात्मक रचना भी माना जाता है.
प्लाथ ने विक्टोरिया लूकस उपनाम से ही बेल जार और अन्य रचनाएं लिखीं. यही उनकी प्रमुख रचनाओं में से एक है और एरियल नाम का काव्यसंकलन भी प्रमुख कृति माना जाता है.
प्लाथ अपने अधिकतर जीवनकाल में क्लीनिकल डिप्रेशन से ग्रस्त रहीं. इसी कारणवश उन्हें कई बार विद्युत् चिकित्सा यानी शॉक थेरेपी का भी सहारा लेना पड़ा.
प्लाथ को कंफ़ेशनल पोयट्री के शैली को आगे ले जाने का श्रेय भी दिया जाता है क्योंकि उनकी कविताएं काफी व्यक्तिगत और अंतरंग ढंग में लिखी हुई रचनाएं थी.
उनकी लगभग सारी कविताएं गंभीर और विचार प्रेरक लगती हैं, और उनके अंतर्मन के द्वन्द साफ देखे जा सकते हैं.
प्लाथ का विवाह समकालीन कवि टेड ह्यूस से वर्ष 1956 में हुआ, और कुछ आपसी मन मुटाव के कारण दोनों 1962 में अलग हो गए. प्लाथ ने अपने जीवनकाल में कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी, और वर्ष 1963 में उन्होंने अंततः ओवन के कार्बन मोनोऑक्साइड गैस से खुद को घुटन से मार डाला.
18 साल की सिल्विया जब अमेरिका में पहली बार कॉलेज गई, तो मां को खत में लिखा, “मेरे कदमों पर मानो धरती खुल रही है, एक पके, रसीले तरबूज की तरह”
सिल्विया प्लाथ की सपनों की बाइबिल से
उदास दिनों में जब मेरे पास इतना वक्त भी नहीं होता कि पुरानी फाइलों से किसी ख्वाब की एक झलक ही देख लूं, परेशान मेरी तरफ पीठ करके पहाड़ों जितना बुलंद हो जाता है और मुझ पर इतना खौफ तारी होता है कि मैं अपने होश गुम कर बैठती हूँ. ऐसे मौके पर मेरी हालत उन भेड़ों की-सी होती है जो आंखों के सामने उगी घास चरने में इस कदर मशगूल हो जाती हैं कि चरागाह के आखिरी सिरे पर कुर्बानी के चबूतरे की मौजूदगी के आखिरी लम्हे तक बेखबर रहती हैं.
मरणोपरांत प्रकाशित दी कलेक्टेड पोयम्स के लिए उन्हें 1982 का पुलित्तजर पुरस्कार मिला
एक चिट्ठी
“मैं चाहती हूँ कि ज़िन्दगी मुझे बहुत प्यार करे. मैं इन लम्हों में बहुत खुश हूँ. अपनी डेस्क पर बैठी हूँ. खिड़की से बाहर घर के चारों ओर लगे पेड़ों को देख रही हूँ, गली के दोनों ओर लगे पेड़ों को भी. मैं हमेशा चीज़ों को देखना और महसूस करना चाहती हूँ, ज़िन्दगी को छूना चाहती हूँ, उसमें रच बस जाना चाहती हूँ. लेकिन इस तरह भी नहीं कि खुद को महसूस न कर सकूं. मुझे बड़ा होने से डर लगता है. मुझे शादी करने से डर लगता है. मुझे रोज़मर्रा के जो काम होते हैं उनसे उकताहट होती है. मैं आज़ाद रहना चाहती हूँ. मैं पूरी दुनिया के बारे में जानना चाहती हूँ. मुझे मालूम है कि मैं बहुत लंबी हूँ और मेरी नाक मोटी है, फिर भी मैं आईने के सामने इतराती हूँ, बार-बार देखती हूँ कि मैं कितनी सुंदर दिखती हूँ. मैंने अपने दिमाग में अपनी एक छवि बनाई है कि मैं खूबसूरत हूँ. क्या यह गलत है कि मैं अपने बारे में इस तरह सोचती हूँ? ओह, कभी-कभी लगता है कि क्या बेवकूफ़ी की बातें मैंने लिखीं, कितनी नाटकीय. वैसे परफ़ेक्शन क्या है… क्या कभी भी मैं वहां पहुंच सकूंगी? शायद कभी नहीं. मेरी कविताएं, मेरी पेंटिंग्स, मेरी कहानियां…सब अधूरी अभिव्यक्तियां…”