घर, बाहर या स्कूल (school) – कौन सी ऐसी जगह है जहां बच्चों की सुरक्षा (safety of children) आवश्यक नहीं? क्या हम हर जगह अपने बच्चों को वह सुरक्षा दे पा रहे हैं? बच्चों से संबंधित जैसी घटनाएं प्रकाश में आती हैं, वह केवल दुखद ही नहीं बल्कि निंदनीय हैं. कहीं न कहीं हम सब ही इन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार हैं.
कहीं एक बच्ची अपनी ही स्कूल बस के नीचे कुचल दी गई, कहीं सुबह-सुबह स्कूल में एक बच्चा गला रेत कर मार दिया गया, कहीं एक शिक्षक एक नन्ही सी बच्ची का शारीरिक शोषण करता पाया गया और कहीं एक पांच वर्ष की बच्ची के साथ एक शिक्षक अमानवीय व्यवहार कर बैठा. क्या ये दिल दहला देने वाली घटनाएं हमें झकझोर नहीं दे रहीं?
क्या आज के शैक्षिक संस्थान अपना ये दायित्व पूरा कर पा रहे हैं? अच्छे स्कूल का चयन यानी बच्चे का मानसिक विकास, शारीरिक विकास, बच्चे की सुरक्षा, बच्चे का आत्मविश्वास आदि माना जाता है. और कहीं तो अपेक्षाएं इतनी होती हैं जिन्हें कोई स्कूल पूरा नहीं कर पाएंगे.
ऐसे में ज़रूरत है जागरूकता की, अपने कर्तव्यपरायणता की, निष्ठा की और चौकन्नी सोच की. विशेषकर, छोटे बच्चों के स्कूल, घर और बाहर, हर जगह निगरानी की कड़ी सुरक्षा की और अपने बच्चों को समझाने की भी.
यदि बच्चा बस में जाता है तो ये आवश्यक है कि ड्राइवर के पास ड्राइविंग लाइसेंस हो, पुलिस वेरिफिकेशन हो, गाड़ी के कागज़ पुख्ता हों, गाड़ी में चिकित्सा की आवश्यक पेटी हो, गाड़ी में आग बुझाने का स्प्रे हो, एक कंडक्टर हो और एक महिला कर्मचारी भी.
गाड़ी की गति निर्धारित करना भी महत्वपूर्ण है. बच्चों के उतरते-चढ़ते समय अत्यंत सजग रहने की जरूरत होती है जिससे कोई भी बच्चा बस के आगे या पीछे की ओर न भागे. गिन कर बच्चे को चढ़ाना और उतारना बहुत आवश्यक होता है और उन्हें स्कूल ट्रांसपोर्ट से घर पहुंचाते समय अभिवावक को ही सुपुर्द करना चाहिए. यदि अभिभावक स्टॉप पर न हो तो बच्चा वापस स्कूल आना चाहिए. इस क्षेत्र में एकदम जीरो टॉलरेंस जरूरी है. बस में अटेंडेंस लेना भी अनिवार्य करना चाहिए.
जहां तक स्कूल की जिम्मेदारियों का सवाल है, ओरिजिनल आईडी सभी स्टाफ, चाहे वह छोटा कर्मचारी हो या बड़ा, के लिए अनिवार्य हो और अभिवावक भी आईडी लिए रहें. बच्चों के वाशरूम में भी उचित स्थानों पर कैमरा यानी सीसीटीवी होनी चाहिए. सीसीटीवी होना ही काफी नहीं, समय-समय पर अभिवावकों को स्कूल में कैमरा चेक करने की भी अनुमति होनी चाहिए.
अभिवावकों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के स्कूल आने के बाद उन्हें लंच ना भेजें
घर आए दोस्तों व रिश्तेदारों को भी उतनी ही गंभीरता से लेने की आवश्यकता है. हमारा बच्चा किसी बात से दुखी है या नाखुश है तो हमें उस बात का कारण समझना और जानना आवश्यक है. हमें बच्चे की भावना की कद्र करना अभी सीखना होगा और उन्हें सुनना भी होगा. गुड और बैड टच के बारे में भी बच्चों को समझाना बहुत ज़रूरी है.
बच्चों से खूब बातें करना और खुल कर बातें करना काफी लाभदायक होता है. बच्चे यदि आपसे कुछ बता रहे हैं, तो उनकी बात को ध्यान से सुनिए. हमारे बच्चों से ज्यादा ज़रूरी और महत्वपूर्ण कोई और नहीं है.
पार्क में बच्चों को खेलने के लिए छोड़ कर अक्सर लोग सैर करने या गपशप में लग जाते हैं, यह बिलकुल नहीं करें. अगर आप बाहर हैं तो बच्चे हर समय आपकी नज़रों के सामने हों.
घर, बाहर या स्कूल जहां भी बच्चे हों, वहां का वातावरण चाइल्ड फ्रेंडली होना चाहिए. बच्चों से ज्यादा नेगेटिव बातें न पूछें और ना ही बताएं. इस बात का ध्यान रखें कि जितना मनोरंजन कार्टून से होता है, उतना है नुकसान भी. सोच समझकर बच्चों को टीवी, कार्टून, मोबाइल गेम, मूवीज दिखाएं. देखी हुई चीज़ों का हमारे दिमाग में बहुत गहरा असर होता है.