जलवायु त्रासदी (climate tragedy) को टालने की ख़ातिर, बिल्कुल निर्णायक कार्रवाई करने की ज़रूरत है. अक्टूबर 31 से स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में शुरू होने वाले जलवायु सम्मेलन कॉप26 (COP26) में इस विषय पर गंभीर चर्चा होनी ही चाहिए.
जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए संयुक्त राष्ट्र व अन्य देश सिर्फ वित्तीय संसाधन जुटाने पर ही बल देते रहे हैं. ठोस उपायों के लिए अब और ज़्यादा कार्रवाई किए जाने पर हर देश को ज़ोर देना होगा.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने एक आपदा सम्मलेन पर इस पर चर्चा करते हुए कहा कि इस पीढ़ी और भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की रक्षा करना, हम सबकी एक सामूहिक ज़िम्मेदारी है.
विनाशकारी चेतावनियों से समय रहते दो-दो हाथ करना होगा
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के ढांचागत समझौते (UNFCCC) ने हाल में पेरिस समझौते के सभी पक्षों के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों के बारे में एक रिपोर्ट जारी की थी. उस रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया 2.7 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के रास्ते पर है. किसी भी दृष्टि से देखें तो यह एक विनाशकारी मार्ग है.
उस रिपोर्ट के अनुसार, अगर तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है तो, वर्ष 2030 तक, कार्बन उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कटौती करने की ज़रूरत है, और वर्ष 2050 तक कार्बन तटस्थता का लक्ष्य हासिल करने की.
इसके उलट, विभिन्न देशों द्वारा अभी तक जो संकल्प व्यक्त किए गए हैं, उनमें वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में, वर्ष 2010 के स्तरों की तुलना में, 16 प्रतिशत की वृद्धि नज़र आती है.
अब जबकि कॉप26 में कुछ ही सप्ताह बचे हैं, प्रभावशाली नेतृत्व तथा जी20 देशों की तरफ़ से गंभीरता दिखाए जाने की ज़रूरत है. गौरतलब है कि ग्रीनहाउस गैसों के 80 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए बड़े शक्तिशाली देश ही ज़िम्मेदार हैं.
हम जलवायु कार्रवाई को, कोरोनावायरस की तरह एक अन्य पीड़ित नहीं बनने दे सकते. ज़रुरत है हम ऐसे नेतृत्वकर्ता बनकर दिखाएं जो अपने बच्चों, उनके बच्चों और आने वाली पीढ़ियों की ख़ातिर, पृथ्वी ग्रह के अहम स्वास्थ्य की हिफ़ाज़त करें.
ध्यान रहे कि कोई भी देश, अकेले अपने दम पर, हवा का रुख़ नहीं पलट सकता. ये उसी तरह होगा जैसे कि केवल एक बाल्टी के ज़रिये, एक बड़ा समुद्र ख़ाली करना.