वक्त वह भी था जब टेलीविजन पर समाचार देखने के लिए 24 घंटा इंतजार करना पड़ता था और दिन में क्रिकेट मैचों के दौरान प्रसारण हो भी रहा हो तो उसे इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की हत्या होते ही एकदम से बंद कर दिया जाता था. फिर रात को ही जाकर सफेद कपड़ा और गंभीरता पहने समाचार वाचक की बुलेटिन से पता चलता था कि देश की प्रधानमंत्री की सुबह उनके निवास पर उनके सुरक्षा गार्डों द्वारा हत्या कर दी गई.
अब जमाना बदल गया है. बी.बी.सी. रेडियो (BBC) और वाईस ऑफ अमेरिका से भी तेज विचार एवं समाचार तीव्रता के साथ हर जगह एक ही समय पहुंच रहे हैं. लाइव टेलीविजन पर भी घटनाओं और सभाओं का वह चेहरा नहीं आता जो अब भागते जमाने का भोंपू – ट्विटर – दे रहा है.
यह भोंपू अब एक ऐसा फोरम बन गया है जहां कोई रोक नहीं, कोई टोक नहीं. जहां सूचना बहती जा रही है. आपने कुछ बोला नहीं कि आपका कथन इतिहास बन जाता है. अगले सेकंड की घटना तुरंत ही फिर इतिहास. इस ट्विटर (Twitter) की कोई थाह नहीं, कोई राह नहीं. जो देखा उसे बताया, जो मिला उसे सुनाया.
सच है, इसके नशे में धुत लोगों से भयंकर गलतियां भी होती हैं. और इस भोंपू को ईमानदारी से बजाने पर शशि थरूर (Shashi Tharoor) जैसे लोगों के हाथ से विदेश मंत्रालय भी छीन जाता है. इसका इस्तमाल ही बराक ओबामा को वाईट हाउस में घुसा देता है. काश महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के समय ट्विटर रहा होता!
स्कूलों, आफिसों, कोर्टों में मोबाइल बजने पर पाबंदी हो सकती है, लेकिन शांत अवस्था में भी मोबाइल के की-पैडों पर गिलहरियों की फुर्ती से चलते अंगूठों ने ट्विटर को आज दुनिया का सबसे शक्तिशाली माध्यम बना दिया है. यह आपके मन के समान गति से इंग्लैंड से ऑस्ट्रेलिया, चीन से अफ्रीका, एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव सूचना को पलक झपकते प्रसारित कर रहा है.
इस माध्यम में न्यूज भी है, व्यूज भी. आपकी ही उंगलियों से आपके ही मन की स्थिति आपसे ही लिखवा कर यह भोंपू सैकड़ों-लाखों लोगों की मनःस्थिति को प्रभावित कर रहा है. आज हर आम आदमी हर खास आदमी से ट्विटर के माध्यम से सीधा संपर्क में है.
महात्मा गांधी जब कुछ कहते थे तब उनकी बातें कई दिनों बाद लोगों तक पहुंचतीं थीं. लेकिन आज जब उनके पोते तुषार गांधी जो कुछ सोच भी रहे होते हैं तो वह उसी क्षण कश्मीर से कन्याकुमारी उनके मोबाईल में लगे ट्विटर के माध्यम से लोगों तक पहुंच रहा है. तो क्या ट्विटर को हम इस सदी की सबसे बड़ी क्रांति कहें?
आप जो कोई भी हों, जो कुछ भी हों, आपकी हर बात सुनने के लिए कोई-न-कोई कहीं-न-कहीं है. और अगर आपकी बात में दम है तो प्रतिदिन आपके ‘फॉलो’ करने वालों की संख्या बढ़ती रहेगी. जहां बोलने की आजादी सिर्फ संविधानों में ही कैद है, वहां तो ट्विटर मन की हर गांठ को खोलकर रख देता है. यह बोलने की, अपना मन कहने की सच्ची आजादी देता है. और तो और, यह बिलकुल मुफ्त भी है.
यहां कोई रोक नहीं, कोई टोक नहीं; सूचना बहती जा रही है
अगर आपके कंप्यूटर और मोबाइल में इंटरनेट सुविधा है तो आप रक्त दान करते हुए भी अपने नेक कार्य की ‘फीलिंग’ लोगों से बांट सकते हैं और मीटिंग में बॉस के भाषण को अपने ट्वीट (tweet) के माध्यम से भैंस का रेंगना करार दे सकते हैं.
किसी घटना पर ट्वीट करने के लिए आपको किसी न्यूज एंकर की तरह बक-बक करने की जरूरत नहीं है, ना ही दाढीवाले एक्सपर्ट की तरह भारी भरकम सुझाव देने की जरूरत है. यहां तो सिर्फ 140 अक्षरों में ही खेल हो जाता है. कम-से-कम शब्दों में आप अपनी बात कह सकते हैं.
ट्विटर ऐसा माध्यम है जहां ए.आर रहमान के द्वारा कामनवेल्थ के थीम सांग का लांच सुनते-सुनते आप उस छः करोड़ के गाने को छः कौड़ी का भी बता सकते हैं. नई अंग्रेज़ी और नई हिंदी के आविष्कारक भी बन सकते हैं. और यहां आपकी टाइपिंग की गलतियों पर ध्यान देने वाले कोई मास्टर साहेब भी नहीं मिलेंगे. आपने कुछ सोचा नहीं, 140 या उससे कम अक्षरों में उसे लिखा नहीं, और एक बटन दबाया नहीं कि आपकी बात राकेट की स्पीड से पहुंच गई विश्व के इस कोने से दूसरे कोने तक.
आज बड़े-बड़े लोगों को अपना प्रवक्ता रखने की, भाषण लिखने वालों की, ब्लॉग भरने वालो की जरूरत नहीं. जरूरत है तो सिर्फ ट्विट करने की. इस माध्यम से वे छाए जा रहे है. मधुमख्खी के छत्तों की तरह पत्रकार उनके ट्विटर के पते पर जमे बैठे रहते हैं. आप सोये भी हैं तो आप तक सचिन तेंदुलकर का छक्का, अमिताभ बच्चन का विज्ञापन, लता मंगेशकर का गाना, शकीरा का डांस, माइकल जैक्सन की मृत्यु की खबर टप-टप आपके ट्विटर पते में खुद-ब-खुद गिरे जा रही है.
भागते जमाने का यह भोंपू सचमुच नए ज़माने की सबसे बड़ी उपलब्धि बन गया है. लेकिन ट्विटर का यह बखान सिर्फ 140 अक्षरों में किया जा सकता है क्या?