अपनी-अपनी गंगा लोग बहाते रहे हैं. इसी बहाने सरकार व संस्थाएं गंगा मिशन का लक्ष्य और उद्देश्य हमें समझाती रही हैं.
गंगा का प्रदूषण कम करना, नदी के पानी की गुणवत्ता बनाए रखना और बेह्तर पर्यावरण के लिए गंगा में न्यूनतम जल प्रवाह बनाए रखना किसका सपना नहीं रहा.
लेकिन, ये सपने सिर्फ बेचे जाते रहे हैं.
ताज़ा-ताज़ा नमामि गंगे कार्यक्रम के लिए अरबों रुपये बांटे जा रहे हैं.
उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और बनारस में कितनी ही गंगा परियोजनाएं चल रही हैं.
सही भी है, मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए, गंगा पवित्र हो ऐसा काम कीजिए.
नमामि गंगे मिशन का लक्ष्य गंगोत्री से शुरू कर बंगाल तक गंगा को स्वच्छ बनाना है.
दुनिया की इस सबसे बड़ी नदी-सफाई परियोजना के लिए एक अच्छा-खासा बजट निर्धारित है.
फिर भी हिमालय की चोटियों से निकलने और बंगाल की खाड़ी में गिरने तक गंगा के मैले होने की खबरें आती रहती हैं.
भले ही गंगा नदी को गंगा मैया के नाम से जाना जाता हो, हक़ीकत ये भी है कि गंगा अपने तट पर बसे करीब 45 करोड़ लोगों के कचड़े को भी ढोती है.
इसके किनारे बनी फैक्ट्रियों का कचरा नदी में गिरने और हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक इसके तटों पर अंतिम संस्कार किए जाने से नदी का पानी लगातार दूषित हो रहा है.
गंगा नदी के किनारे स्थित करीब 118 शहरों से प्रतिदिन निकलने वाले 363 करोड़ लीटर अवशिष्ट और 764 उद्योगों के हानिकारक प्रदूषकों के कारण नदी की धारा को निर्मल बनाना बहुत बड़ी चुनौती है.
- देखिए न, गंगा में हर रोज लाखों लोग डुबकी लगाते हैं.
- लाखों इस नदी की कसमें खाते हैं.
- इसी नदी के किनारे करोड़ों लोगों की आस्था के महाकुंभ जैसे आयोजन होते हैं.
- सैकड़ों टन पूजन सामग्री भी इसमें प्रवाहित होती है.
- इस नदी की सफाई के लिए कई बार पहल की गई लेकिन कोई भी संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुंच पाया.
आजादी के बाद से ही गंगा पर तरह-तरह की लुभावनी बातें होती रही हैं.
प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियंत्रण करने और इसकी सफाई का अद्भुत दिखने वाला अभियान चलाया.
इसके बाद उन्होंने जुलाई 2014 में आम बजट में नमामि गंगे नामक एक परियोजना आरंभ की.
सच्चाई यह है कि गंगा नदी का भारत में अत्यधिक आर्थिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्व है.
हिमालय से उद्गम होने वाली तथा बंगाल की खाड़ी में समाने वाली गंगा नदी भारत के मैदानों में 2500 किमी से भी अधिक का मार्ग तय करती है.
गंगा नदी, जो नेपाल, चीन और बंगलादेश के अनेक भागों में भी फैली है, भारत के कुल भू-भाग के 26 प्रतिशत, जल संसाधन के 30 प्रतिशत और इसकी जनसंख्या के 40 प्रतिशत से भी अधिक भाग का निर्माण करती है.
इसी गंगा नदी की सफाई आज अत्यंत जटिल होती जा रही है. इसका बड़ा कारण है गंगा का सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व तथा विभिन्न उपयोगों के लिए इसका दोहन.
सात आईआईटी – कानपुर, दिल्ली, चेन्नई, मुंबई, खडगपुर, गुवाहाटी और रुड़की – के कंसोर्टियम द्वारा गंगा के लिए एक व्यापक नदी घाटी प्रबंधन योजना तैयार की जा रही है.
तमाम मंत्रालय को गंगा सफाई में झोंका गया है. गंगा सफाई योजना के मुद्दे पर आए दिन विचार विमर्श किए जा रहे हैं. उद्देश्य है – अविरल धारा, निरंतर प्रवाह, निर्मल धारा तथा प्रदूषणरहित प्रवाह.
गौरतलब है कि गंगा को अविरल और निर्मल बनाने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्त्वाकांक्षी नमामि गंगे परियोजना बड़े ज़ोर शोर से प्रचारित तो की जाती है लेकिन इसके उत्साहजनक परिणाम अभी तक सामने नहीं आ पाए हैं.
ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि ‘नमामि गंगे’ से अब तक गंगा को क्या मिला है?
गंगा नदी का न सिर्फ़ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है बल्कि देश की 40 प्रतिशत आबादी गंगा नदी पर निर्भर है.
2014 में न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, “अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी. अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है.”
कहना न होगा कि गंगा संरक्षण की चुनौती बहु-क्षेत्रीय और बहु-आयामी है और इसमें कई हितधारकों की भी भूमिका है.
विभिन्न मंत्रालयों के बीच एवं केंद्र-राज्य के बीच समन्वय को बेहतर करने एवं कार्य योजना की तैयारी में सभी की भागीदारी बहुत जरूरी है.
लेकिन सबसे जरूरी है गंगा को वाकई स्वच्छ बनाने की इच्छाशक्ति. ऐसा न हो कि गंगा में सभी अपना हाथ ही धोते रहें और गंगा मैली रह जाए.
एक बड़ा सवाल और है – क्या गंगा नदी की सफाई मोदी सरकार के इसी कार्यकाल में पूरी हो जाएगी?