सर्दियां शुरू होते ही मेरे एक मित्र ने कहा, ‘यह मौसम लोगों को साथ लाता है, और यूं ही मिलने जुलने के बहाने निकल आते हैं.’
कितनी सही बात है ये. मेरे साथ लगातार ऐसा ही हो रहा है. मिलने जुलने के कितने ही बहाने निकल आ रहे हैं.
इस दौरान जब भी मैं अपने बड़ों से मिल रही हूँ तो कुछ न कुछ नया सीखने को मिल रहा है.
इस बार मेरी एक नानी ने बातों-बातों में कहा, “वह तो खपतुल्हवास है.” सब ने मुड़ कर पूछा, “ये क्या बला है?”
नानी ने कहा, “अरे वही खपती. मतलब होश-औ-हवास न होना, पागल सा.”
ये शब्द हम सब ने पहली बार सुना.
फिर नानी बोलीं, “एक ऐसा लव्ज़ बताओ जो तुमने बहुत कम सुना हो.” एक-एक कर के सबने बड़े मजेदार शब्द सुनाए. कुछ तो ऐसे जो मैंने कभी नहीं सुने थे, और कुछ ऐसे जिन्हें सुनकर खूब हंसी आई.
मेरी दादी और मां ये दो शब्द अक्सर इस्तेमाल करती थीं, “भड़भूजन और हबूड़न”.
इनका मतलब होता था कि तुम जाकर अपना हुलिया ठीक करो, भड़भूजन की तरह मत घूमो.” एक और मजेदार कहावत मेरी दादी अक्सर कहती थीं, “हिस हिस नहीं तो हुल हुल”, यानी ये नहीं तो वो.
ऐसी कहावतें आपने कभी सुनी हैं? बाप रे.
इतना ही नहीं, अब तो मेरी बड़ी भाभी और भतीजे बता रहे हैं कि उन्होंने एक पूरी लिस्ट तैयार कर ली है, ऐसे लव्ज़ों की.
उनकी डिक्शनरी के नए शब्द हैं, हंडना – यानी बेकार में घूमना, हम्बालना यानी मोटी ताज़ी औरत, बक्टोटो – यानी मोटी बुरी औरत.
यह कौन सी भाषा है? कैसी डिक्शनरी है? कहां का ज्ञान है? लेकिन, इन्हें जानकार हंसी जरूर आ रही है.
कल्पना कीजिए कि आप किसी को बक्टोटो कहकर बुला रहे हों? और मोटे से दिखने वाले बुरे मर्द को क्या कहेंगे? उनसे पूछना पड़ेगा.
हर घर में ऐसे कुछ शब्द होते होंगे जो इनसे मिलते जुलते होंगे और मजेदार भी होंगे.
लेकिन, जब नानी दादी और बड़े बुजुर्ग नहीं बचेंगे तो ये धरोहर कैसे रह पाएगी?
यस ब्रो और येप कहने वाले नए जनरेशन के लिए क्या हम ऐसे शब्दों की डिक्शनरी तैयार करें या फिर समय के साथ इन मजेदार शब्दों को बह जाने दें?