हमारे दो जर्मन मित्र भारत की सैर करने आए और 15 दिन रुके. इस दौरान हमनें उन्हें भारत के कई रूप दिखाए.
एक शाम मैं उन्हें मंदिर ले गई. चौराहे पर एक सफेद संगमरमर का सुंदर सा मंदिर था.
अब भारत आएंगे तो मंदिर जाना तो बनता है ना.
उन्होंने जूते उतारे और जय किया, जोर से तीन बार घंटा बजाया और अंदर प्रवेश किया.
जब मैंने उन्हें मंदिर के बारे में बताना शुरू किया तो मंदिर के पंडित जी भी उनके साथ-साथ चलने लगे, मुस्कुराते हुए.
पहली मूर्ति थी हनुमान जी की, तो मैंने बतलाया कि ये वो हैं जो भगवान राम के साथ साए की तरह रहे और लक्ष्मण के बीमार होने पर संजीवनी बूटी का पहाड़ ही उठा लाए. (संयोग से एक दिन पहले ही एक बोटनिकल गार्डन में उन्होंने संजीवनी बूटी देखी थी.)
तुरंत ही दोनों समझ गए. कहा, “अच्छा ये वो हैं, मगर वे पहाड़ क्यों लाए?”
मैंने समझाया कि वो पौधा नहीं पहचानते थे.
उन्होंने तब पूछा, “तो संजीवनी खाने से क्या हम जिंदा हो जाते हैं?”
“नहीं. मगर उसमें कई ऐसी मेडिसिनल प्रॉपर्टीज होती हैं, इसलिए वो ठीक हो गए.”
“मगर ये तो बंदर हैं? ह्यूमन गॉड नहीं हैं? ये कैसे संभव है?”
मैंने कहा, “हां, ये मंकी गॉड थे, ह्यूमन नहीं थे.”
पंडित जी तुरंत बीच में बोले, “सर्वशक्तिमान भगवन हैं ये, इन्हें बता दीजिए.”
तो मैंने पंडित जी से कहा, “आप टीका तो लगा दीजिए.”
मुझे तो उन्होंने एक लकड़ी की सींक दे दी और कहा खुद लगा लीजिए लेकिन हमारे जर्मन मित्रों को पंडित जी ने खुद अपने हाथ से टीका लगाया.
ऐसा करते हुए पंडित जी बहुत ख़ास महसूस कर रहे थे.
अगली मूर्ति थी भगवान शिव की, नीली मूर्ति, काली जटा में शेष नाग और गंगा बह रही थी. उन्हें वे पहचान गए और हम आगे बढ़े.
फिर राधा कृष्ण आए जिनकी बांसुरी से भी उन्होंने पहचान लिया.
पंडित जी बोले, “चाहें तो तस्वीर ले सकते हैं. रूफ की. देखिए, कितनी सुंदर छत है.”
शीशे से जड़ा हुआ था मंदिर के ऊपर का हिस्सा, बड़े उत्साह से तस्वीरें खींची गईं. आगे सरस्वती, विष्णु, लक्ष्मी, साई बाबा सब मिले. और फिर आया राम दरबार.
मैंने बतलाया, “ये हैं वो जिन्हें हनुमान जी ने संजीवनी बूटी खिलाई और जिंदा किया.”
मंदिर के बीचों बीच थी शिव लिंग. तो मैंने बताया ये भी शिव हैं. अब वो दोनों पूछने लगे, “मगर शिव तो वो नीले वाले थे तो ये कैसे?”
पंडित जी बोले, “यही तो स्वरुप है उनका. आप उनको बताएं कि इसी रूप में हर जगह शिव पूजे जाते हैं.”
मेरे जर्मन मित्र बड़े अचंभित हो गए.
हजोरों सवाल थे उनके – “इनके इतने रूप कैसे?”
“अपने भगवानों को… इतने सब रूपों को तुम लोग कैसे याद रखते हो?”
वे जानना चाहते थे “शिव जी ने गणेश का सर क्यों काटा? हाथी का सर कैसे कोई लगा सकता है? क्या ये सब सच है?”
जब उन्होंने यह पूछा कि, “भारत में कितने भगवान हैं?” तो मैंने कहा, 33 हज़ार.
फिर, दोनों मेरा मुंह देखते रह गए.