चिन्ह अपने छोड़ जाना, जाग तुझको दूर जाना.
महादेवी वर्मा की लिखी हुई कविता ‘जाग तुझको दूर जाना’ की यह दो पंक्तियां संकेत देती हैं कि उनकी लेखनी से हमें कितनी प्रेरणा और ऊर्जा मिलती है.
महादेवी वर्मा को ‘आधुनिक मीरा’ के नाम से भी जाना गया है. उनका जन्म 26 मार्च, 1907 को फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. वह अपने बालपन से, दरअसल सात वर्ष की उम्र से ही कविताओं की रचना करने लगीं और 1925 में मैट्रिक पास करते करते एक सफल कवयित्री के रूप में खुद को स्थापित कर चुकी थीं.
उन्होंने सिर्फ कविताएं ही नहीं, बल्कि प्रभावशाली गद्य और कहानियों की भी संरचना की है. वह हिन्दी साहित्य में छायावादी युग की सबसे अधिक प्रतिभाशाली और प्रमुख व्यक्तित्व में से एक हैं. उनके समकालीन कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ उनकी रचनाओं से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने महादेवी वर्मा को ‘हिन्दी के विशाल मंदिर की सरस्वती’ होने की बात कही.
गत शताब्दी की सबसे प्रभावशाली कवयित्रियों में से एक महादेवी वर्मा साहित्यकार होने के साथ-साथ एक बेहतरीन चित्रकार और अनुवादक भी थीं. उनकी अनुवाद करने में निपुणता उनकी रचना ‘सप्तपर्णा’ (1960) में देखी जा सकती है.
वे उस समय की बहुचर्चित पत्रिका ‘चांद’ तथा ‘साहित्यकार’ की संपादक भी रहीं. उनके प्रमुख काव्य संकलन ‘नीहार’ (1930), ‘रश्मि’ (1932), ‘सांध्यगीत’ (1936) और ‘दीपशिखा’ (1942) ने बहुत प्रभाव छोड़ा. उनकी कृति ‘यामा’ काव्य संग्रह के लिए उन्हें भारत का साहित्य की श्रेणी में दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला.
देखा जाए तो किसी भी भाषा के साहित्य की नींव साहित्यकार की चिंतनशील और संवेदनापूर्ण सोच उसके दृष्टिकोण पर ही निर्भर करती है. महादेवी वर्मा की रचनाओं में भी संभवतः यह विशेषता देखी जा सकती है. भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है.