अगर आपसे कहा जाए कि दुनिया का एक देश ऐसा है जहां रामराज्य है. श्रीराम के वंश के लोग अब भी वहां शासन करते हैं. रामायण राष्ट्रीय ग्रंथ है. चूंकि राजा, भगवान राम के उत्तराधिकारी हैं इसलिए उन पर किसी भी तरह का लांछन नहीं लगाया जा सकता न ही उन्हें किसी विवाद में घसीटा जा सकता है. उन्हें सिर्फ पूजा जा सकता है. यहां के लोग तो खुद को राम के वंशज मानते हैं, उनकी अयोध्या स्वयं देवराज इंद्र ने बनाई है.
आप सोच रहे होंगे कि दुनिया में ऐसा कौन सा देश हो गया जहां इंद्र की बनाई अयोध्या से राम के वंशजों ने रामराज्य कायम कर रखा है. भारत में यह सब है नहीं और दुनिया का एकमात्र हिंदू देश नेपाल भी अब धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है, फिर ऐसा कैसे संभव है.
जी, ऐसा है. दुनिया का एक देश है जहां रामराज्य है और वह भी ऐसे देश में जिसकी बहुसंख्यक आबादी हिंदू न होकर बौद्ध है. यह देश है भारतीयों के पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक थाईलैंड.
थाईलैंड में रामायण परंपरा बहुत लोकप्रिय रही है. थाई लोगों का मानना है रामायण की कथा मूलतः थाईलैंड की ही है और यही कारण है कि इसके कुछ शहर और गांव, झील और पर्वतों के नाम रामकथा से जुड़े हैं.
थाईलैंड की राजधानी बैंकाक से 80 किमी दूर एक “अयोध्या” भी है जिसे 1285 से भी पहले का माना जाता है और इसका प्रमाण बैंकाक के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे एक शिलालेख में मिलता है. इसमें राम के जीवन से जुडी घटनाओं और भौगोलिक क्षेत्रों का विवरण मिलता है.
थाईलैंड में आज भी संवैधानिक रूप में “रामराज्य” माना जाता है. वैसे तो थाईलैंड एक बौद्ध देश है लेकिन यहां के लोग स्वयं को राम का वंशज मानते हैं. यहां के राजा “वजीरालंगकोर्न” को ‘राम दशम’ के नाम से भी जाना जाता है.
1350 से 1767 ईसवी तक यानी 417 वर्षों तक अयुत्थ्या या अयोध्या भी थाईलैंड की एक राजधानी थी और विभिन्न राजवंशों के 37 राजाओं ने अयोध्या में शासन किया.
थाईलैंड के लोग इसे “महेंद्र अयोध्या” यानी इंद्र द्वारा निर्मित महान अयोध्या भी कहते हैं. थाईलैंड के जितने भी राम (राजा) हुए हैं सभी ने इसी अयोध्या से शासन किया है.
थाईलैंड में राम के प्रति आस्था का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वहां “भगवान राम” के वंशजों को लेकर किसी प्रकार की निजी अथवा सार्वजनिक आलोचना या विवाद नहीं किया जा सकता है. उन्हें सर्वथा पूजनीय माना जाता है.
थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रन्थ “रामायण” है जिसे थाई भाषा में ‘रामिकिन्ने’ कहते हैं जिसका अर्थ है “राम-कीर्ति”. जो “रामिकिन्ने” वर्तमान में लोकप्रिय है उसे अलग-अलग समय में तेरहंवी सदी से पंद्रहवी सदी के बीच लिखा गया परन्तु थाईलैंड की लोक कथाओं में और कला में इसका मंचन चौदहवी सदी से शुरू हो चुका था. इस ग्रन्थ की मूल प्रति सन 1767 में बैंकॉक के “राजप्रसाद” में लगी आग में नष्ट हो गयी थी.
थाईलैंड में ‘रामिकिन्ने’ पर आधारित नाटक और कठपुतलियों का प्रदर्शन देखना धार्मिक कार्य माना जाता है.
रामिकिन्ने के मुख्य पात्रों के नाम भारत के मूल रामायण से बहुत हद तक मिलते जुलते हैं. राम को वहां राम या फ्रा राम के नाम से जाना जाता है तो सीता को सीदा, लक्ष्मण को लक, दशरथ को थोत्स्रोत, बाली को पाली, सुग्रीव को सुक्रीप, अंगद के लिए ओन्कोट और विभीषण को बिपेक दशग्रीव रावण को तोसाकन्थ रावण, जटायु को सदायु, शूर्पणखा को सुपनमच्छा, मारीच को मारित और रावणपुत्र इंद्रजीत को इन्द्रचित नाम से जाना जाता है. सरयू नदी का थाई लोकनाम फरयू है.
थाई “रामिकिन्ने” में हनुमान को विवाहित बताया गया है जिनकी एक पुत्री भी है. इस कथा में राजा दशरथ के दो पुत्र फ्रा राम और लक ही बताए गए हैं. भरत और शत्रुघ्न का जिक्र नहीं आता.
रामिकिन्ने की कथा अनुसार राजा राम ने “लोंग्का” यानी “लंका” के राजा बोर्रोम तराई लोखंत का अंतकर अयोध्या पर कब्ज़ा किया था. लोंग्का या लंग्कसुम की सीमाएं बहुत बड़ी थीं. इनकी अयोध्या के साथ लड़ाई होने के आलेख मिलते हैं.
थाई साहित्य में इसे असुरों का राज्य बताया गया था जिसके राजा का नाम थर्मन यानी रावण था. थर्मन ने राजा राम के पिता थोत्स्रोत या दसरथ को हराया था. हारने के बाद थोत्सरोत सुखोध्या छोड़ कर विष्णुलोक चले गए और वहां एक मंदिर में पुजारी बन कर रहे थे.
जब थर्मन को थोत्सरोत का पता लगा तो उसने विष्णुलोक के राजा को सन्देश भिजवाया जिसके बाद वो अपने परिवार सहित किष्किन्धा की तरफ चले गए. किष्किंधा से ही राजा राम ने 1283 में राज्य को जीता और अयोध्या की स्थापना की.
थाई राम-किन एक बहुत विस्तृत रचना है जिसमें हनुमान से जुड़े कई युद्ध के दृश्य और प्रसंग हैं. थाईलैंड के सबसे लोकप्रिय थाई शैडो-प्ले का मूल विषय रामायण ही है.
थाईलैंड की नाट्यकला भी मुख्यरूप से रामायण पर ही आधारित है. रामायण की लोकप्रियता यहां की प्राचीन मूर्तिकला से भी प्रमाणित होती है. बैंकाक के फ्रा जेटुबोन (चेटुफों) में रामायण के दृश्यों को दर्शाते 152 मार्बल्स लगे हैं.
1292 के राजा राम खामहेंग के पुरालेख भी प्राचीन समय से राम कथाओं की लोकप्रियता के प्रमाण देते हैं.
कैसी लगी आपको यह कथा. आश्चर्यजनक के साथ-साथ सुखद भी न! तो अगर हम कहें कि एक रामकथा ऐसी भी है जिसमें रावण ने सीता का अपहरण नहीं किया था बल्कि सीता तो उसकी पुत्री थीं. फिर क्या कहेंगे?
उसने राम और लक्ष्मण की बहन का अपहरण किया था और युद्ध में पराजित होने पर रावण ने राम के साथ संधि की तो राम ने अपनी बहन का विवाह रावण से करा दिया.
एक एशियाई देश में यह कथा बहुत लोकप्रिय है जिसका मंचन किया जाता है, नाटक की तरह खेला जाता है, श्री राम के प्रति पूरे आदर और श्रद्धा भाव के साथ.