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कोरोनावायरस: वर्क फ्रॉम होम

जी हां, मास्क लगाने के लिए जहां एक तरफ होड़ मची है, वहीं कोरोनावायरस से बचाव के लिए बिहार के कफेनचौधरी गांव की महिलाएं अपना योगदान देने में लगी हैं.

ये ‘जीविका’ दीदी अपने घरों के अंदर रहकर कोरोनावायरस विपदा से अपने ही अंदाज़ में लड़ रही हैं. लक्ष्य है बाज़ार को सस्ते मास्क उपलब्ध कराना.  

क्या कर रही हैं ‘जीविका’ दीदी 

इस कठिन परिस्थिति में जब पूरा देश इस महामारी से लड़ रहा है और सरकार द्वारा लिए गए फैसलों का पालन कर रहा है, तब ज़रुरत इस बात की है कि सभी अपना यथोचित योगदान दें.

हमारी ‘जीविका’ दीदी इसमें भी पीछे नहीं हैं. उन्होंने निश्चय किया है कि वे इस कठिन परिस्थिति में सरकार की मदद करेंगी. लोगों को बेहतर और सस्ते मास्क उपलब्ध कराने में आगे आएंगी.

इसी सोच का परिणाम है कि आज ये अपने घर में मास्क बना रही हैं.

‘जीविका’ दीदी द्वारा बनाए जाने वाले मास्क की कीमत बाज़ार में मात्र 20 से 30 रुपये तक की होगी.

Bihar Mask

क्या कहते हैं प्रखंड परियोजना प्रबधंक सहदेव कुमार (SVEP)

कोरोनावायरस के कारण सरकार द्वारा लॉकडाउन किया गया है इस कारण हमारी सभी ‘जीविका’ दीदी को घर पर ही रहना पड़ रहा है.

ऐसे में उनकी रोज़ की आमदनी ठप्प हो गई जिसका असर उनकी आर्थिक स्थिति पर सीधा हुआ है.

शुरुआती ग्रामीण उद्यमित्या प्रोग्राम से जुड़े सहदेव कुमार कहते हैं कि इसी परिस्थिति को देखते हुए हमने मास्क बनाने का कार्य शुरू करवाया ताकि सभी ‘जीविका’ दीदी समाज कल्याण में सहयोग कर सकें और उनकी कुछ आमदनी भी होती रहे.

हमारी पूरी कोशिश जीविका दीदी को भी कोरोनावायरस से सुरिक्षित रखना है.

बाज़ार में मास्क की कमी होने के कारण कालाबाजारी की शिकायतें हो रही हैं जिसे देखते हुए हमने जीविका दीदी को प्रेरित किया ताकि वे घर बैठे मास्क बनाएं. साथ ही उन्हें आमदनी भी हो सके.

इससे उन्हें अपने परिवार को बेहतर चलाते रहने में मदद होगी.

कोरोनावायरस के आतंक के कारण हम सभी एक साथ बैठकर काम नहीं कर सकते. लेकिन, अकेले-अकेले हम भी अपने-अपने घरों से ‘वर्क फ्रॉम होम’ तो कर ही सकते हैं.

नहीं से कुछ-से-कुछ कर दिखाने का हौसला रखना ही अपने आप मे बड़ी बात होती है.

‘जीविका’ का परिचय

‘जीविका’ विश्व बैंक द्वारा आर्थिक सहायता-प्राप्त एक परियोजना है जिसके तहत बिहार राज्य सरकार गरीबी उन्मूलन के कार्य करती है.

कोन होती हैं ये महिलाएं

ये महिलाएं एक ही गांव के गरीब घरों से होती हैं. इनका मार्गदर्शन स्वयं सहायता समूह करते हैं.


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