भारत बोलेगा

बोरोलिन: जैसे दूसरी मां ही हो

बोरोलिन का नाम सुना है? जी Boroline! अगर नहीं सुना तो बस एक छोटा सा ब्रांडिंग क़िस्सा बनता है. और अगर बोरोलिन आपके जीवन का भी हिस्सा है, तो फिर क्या बात…!

बरसात का मौसम बचपन की यादों में लेकर जाता है. खासकर पानी में उधम मचाना कोई कैसे भूल सकता है. नोटबुक के पन्ने फाड़कर नाव बनाना और पानी में इठलाती अपनी नाव को बचाए रखना जब तक वह गीली होकर डूब न जाए.

अपनी इस ‘कागजी’ दौलत के डूब जाने पर एक पल को उदास होना, और अगले पल कोई नई शरारत. ठहरे हुए पानी में छपाक लगाना, छीटें उड़ाना, भींगकर घर पहुंचना, जमकर डांट खाना और अगले दिन फिर वही सब दोहराना.


बोरोलिन बनाने वाली कंपनी जी. डी. फार्मास्युटिकल्स (G.D Pharmaceuticals) को लोग The Boroline People के नाम से ज्यादा जानते हैं 


इस उधम में कहीं कोई खरोच लग जाए या कट-छंट जाए या कोई कीड़ा काट ले, तो घर में दो चीजें तुरंत खोजी जाती थी. पापा होमियोपैथी दवाई अर्निका खोजा करते तो मां को भरोसा था अपनी हरे रंग वाली ट्यूब पर – यानी हाथी छाप बोरोलिन. पापा की अर्निका तो खत्म हो जाया करती थी पर बोरोलिन शायद ही कभी खत्म हुई हो.

Boroline

गर्मियों में अगर फोड़ा-फुंसी निकल आए तो बोरोलिन, कहीं कट-फट जाए या त्वचा पर रैशेज आ जाएं तो बोरोलिन, सर्दियों में होठ फटने पर बोरोलिन, चेहरे पर खुश्की हो तो बोरोलिन, बेटे पर ज्यादा लाड आ जाए और थोड़ा सजाने-संवारने को मन हो तो बोरोलिन.

मानों सफेद खुशबूदार बोरोलिन कोई क्रीम नहीं, अलादीन का चिराग हो जिसे मां साल के बारहों महीने घिसकर बेफ्रिक हो जाया करती थीं. और उसकी खुशबू में आप सारा दिन और रात भी महकते रहते. ये जिंगल याद है न – खुशबूदार एंटीसेप्टिक क्रीम, बोरोलिन.

क्या आप इसका उत्तर दे सकते हैं?

1.आपके घर में एंटीसेप्टिक क्रीम बोरोलिन है?

2.इस क्रीम का उपयोग आपके घर में कब-कब किया जाता है?

3.शरीर में खरोच लग जाने पर घर के लोग कौन सा क्रीम लगाते हैं?

4.क्या आपने कभी बोरोलिन का इस्तेमाल किया है?

5.क्या इसके प्रयोग से चोट या घाव के निशान ख़त्म हो जाते हैं?

हरे रंग की ट्यूब और काला ढक्कन  

जैसा भरोसा मेरी मां को बोरोलिन पर था वैसे भरोसा न जाने कितनी मांओं को रहा हो. करीब तीन पीढ़ियों के लिए फर्स्ट-एड किट तो बोरोलिन के बिना अधूरा है. जैसे बोरोलिन दूसरी मां हो, आपकी हिफाजत के लिए हमेशा मुस्तैद.

जब हरे रंग की ट्यूब का छोटा सा काला ढक्कन खुलता है तो उसकी खुशबू से मन एकदम से गुनगुनाने लगता है- ‘खुशबूदार एंटीसेप्टिक क्रीम, बोरोलिन’. एक ऐसी क्रीम जिसका विज्ञापन ही बता देता था कि इसका क्या-क्या इस्तेमाल हो सकता है.

खुशबूदार होने का मतलब साफ़ है कि सजने-संवरने में तो काम आएगा ही, साथ में एंटीसेप्टिक भी है. यानी ब्यूटी विद केयर या सौंदर्य भी, सुरक्षा भी. और यह भरोसा बोरोलिन ने भारतीयों के मन में पक्का कर लिया था.


जानकारी में ही समझदारी: बोरोलिन एंटीसेप्टिक सुगंधित आयुर्वेदिक क्रीम है. गुलामी काल में स्वदेशी व आर्थिक आजादी की पहचान बने बोरोलिन की लोकप्रियता समय के साथ बढ़ती ही गई. संप्रति रैमा सेन, साक्षी तंवर, विद्या बालन इसके ब्रांड एम्बेसडर हैं.


बोरोलिन क्रीम का नाम दरअसल उन मुख्य सामग्रियों का संक्षिप्त रूप है जो इस क्रीम में डाले जाते हैं. क्रीम में बैक्टीरिया और फंगस को मारने वाला बोरिक पाउडर, त्वचा पर रक्षा कवच तैयार करने के गुणों से युक्त जिंक ऑक्साइड और तैलीय गुणों वाला लेनोनिल है जो मुलायम और सुंदर अहसास देता है.

गौर मोहन दत्ता ने बोरिक पाउडर से बोरो और तैलीय गुणों के लिए लैटिन शब्द ओलियम के अपभ्रंश का इस्तेमाल करते हुए अपनी इस गुणकारी क्रीम का नाम रखा- बोरोलिन. इसकी शुरुआत की कहानी भी दिलचस्प है.

कैसे शुरुआत हुई इस बोरोलिन की

गौर मोहन दत्ता विदेशी वस्तुओं के जाने-माने आयातक थे. महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात हो गई. गांधीजी ने उन्हें विदेशी की बजाय स्वदेसी के लिए सोचने को प्रेरित किया. गांधीजी की सलाह पर दत्ता कोई ऐसा उत्पाद बनाना चाहते थे जो भारतीयों की जरूरतें पूरी करने वाला तो हो ही, उनकी जेब में भी आ जाता हो.

उन्होंने एक ऐसी स्वदेसी क्रीम बनाने की सोची जो गुणवत्ता में अंग्रेजी क्रीम से बीस हो. उनकी कंपनी जेडी फार्मास्यूटिक्लस ने 1929 में कोलकाता की फैक्ट्री में बोरोलिन बनाना शुरू किया.

स्वदेशी क्रीम को भारतीयों ने हाथों-हाथ लिया और बोरोलिन की लोकप्रियता से ब्रिटिश कंपनियों के पसीने छूटने लगे. उन्‍होंने क्रीम के उत्‍पादन में तरह-तरह के अडंगे खड़े किए लेकिन वे इसे रोक नहीं पाए.

धीरे-धीरे बोरोलिन बंगाल से पूरे भारत में पहुंच गई. देश आजाद हुआ तो कंपनी ने उसका जश्न मनाने के लिए अखबार में इश्तेहार देकर क्रीम के हजारों ट्यूब मुफ्त बांटा.

कहा जाता है कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और एक्टर राजकुमार भी यह क्रीम लगाते थे. यह बताता है कि हर उम्र हर तबके के भारतीयों के दिलों पर बोरोलिन का जादू चलता था.

बूढी नहीं हुई है बोरोलिन क्रीम

बोरोलिन 91 साल की हो चुकी है लेकिन इसने न कभी अपनी क्वालिटी के साथ कोई समझौता किया न ही बाजार की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के आगे झुकते हुए कभी अपने मूल डिजायन में बदलाव किया. गहरे हरे रंग की ट्यूब और उसका काला गोल ढक्कन और शुभता का प्रतीक हाथी क्रीम की शुरुआत से बने हुए हैं.

बोरोलिन एक ऐसे सफल स्वदेसी उत्पाद की मिसाल है. आज जब देश के दिग्गज बिजनेस घराने अरबों-खरबों के कर्ज में डूबे हैं, बिना मार्केंटिंग के तामझाम के बोरोलिन पर कोई कर्ज नहीं है और यह मुनाफे में बनी हुई है. स्वदेसी प्रयोग के लिए यह एक आदर्श उदाहरण हो सकती है.


सर्दियां आते ही लोग बोरोलिन स्टॉक कर लेते हैं – हर खुश्की से बचने के लिए, त्वचा को चमचमाता दिखने के लिए


बेशक 1984 में लॉन्च हिमानी ग्रुप की एंटीसेप्टिक क्रीम बोरोप्लस आज बाजार की लीडर है लेकिन बड़े-बड़े विज्ञापनों और पैकेजिंग में तरह-तरह के प्रयोग के बावजूद, वह बोरोलिन को बंगाल में नहीं पछाड़ पाई.

बंगाल और बोरोलिन का ऐसा रिश्ता है कि फिल्म राम तेरी गंगा मैली में कोलकाता को फिल्माते समय फ्रेम में बोरोलिन के विज्ञापन को भी रखा गया ताकि कहीं ऐसा न लगे कि इसे कोलकाता में नहीं स्टूडियो में शूट किया गया हो.

तीन पीढ़ियों की जो विरासत बोरोलिन के साथ है, उसका भावनात्मक लगाव बाजार की हिस्सेदारी से कहीं अधिक है. पूरब हो पश्चिम, उत्तर हो दक्षिण, कहां नहीं है अपनी खुशबूदार एंटीसेप्टिक क्रीम बोरोलिन…! अब तो यह एक छोटे से डिबिया वाले पैक में दिख रही है स्मार्ट बोरोलिन.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी
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