डिफेंस में मेक इन इंडिया

हर जगह मेक इन इंडिया की बात हो रही है. लेकिन जानकार यह दावा कर रहे हैं कि हमारी सैन्य शक्ति में शामिल 79 फीसदी एयरक्राफ्ट और 96 फीसदी बैटल टैंक रुस के डिजाइन किए हुए हैं. आपको जानकर यह हैरानी नहीं हो कि सत्तर और अस्सी के दशक में रुस के साथ जो हमारे बेहतर संबध थे उसके आधार में रक्षा सौदा ही था. अभी भी हमारे डिफेंस आर्टिलरी में शामिल अधिकांश खरीदे गए रक्षा उपकरण सोवियत संघ, फ्रांस, अमेरिका और जर्मनी के ही हैं. भारत अभी भी रक्षा उपकरणों के मामले में आयात पर ही निर्भर हैं.

2020 तक घरेलू कंपनियों से रक्षा खरीद की बात बेमानी

केंद्र सरकार ने रक्षा खरीद नीति के लिए एक विशेष समिति गठित की है. समिति ने सिफारिश की है 2020 तक रक्षा जरुरतों की 70 फीसदी आपूर्ति घरेलू कंपनियों से की जाए. लेकिन डीआरडीओ के लाख प्रयास के बावजूद हम लाइट एयरक्राफ्ट तेजस के लिए इंजन नहीं बना पाए हैं. 2020 तक तेजस के दो स्क्वाड्रन तैयार हो जाने हैं. लेकिन इसमें लगातार देरी हो रही है. हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को इंडियन एयर फोर्स के लिए तेजस बनाना है. जबकि आपको यह जानकर अचरज होगा कि भारत ने एयरक्राफ्ट के लिए टायर और रडार इंजन के लिए कूलेंट बनाने में ही अभी तक सफलता पाई है.

मिग 21 जल्द ही होगा रिटायर

इंडियन एयर फोर्स अभी 32 कांबैट एयरक्राफ्ट चला रहा है. 2022 तक 42 एयरक्राफ्ट का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन जो ट्रेंड्स दिख रहे हैं यह लक्ष्य पाना असंभव सा दिख रहा है. मिग 21 बहुत जल्द ही रिटायर होने वाला है. राफेल के 90 फाइटर जेट्स भी खरीद लिए जाएं तब पर भी 2020 तक फाइटर प्लेन और एयरक्राफ्ट के लक्ष्य पूरे नहीं किए जा सकते. आगे इसके बाद एयरक्राफ्ट मिग 27 और जगुआर भी रिटायर हो रहे हैं.

रक्षा शोध पर हमारा खर्चा सबसे कम

विकसित देशों के मुकाबले भारत रक्षा के क्षेत्र में शोध और विकास पर सबसे कम खर्च करता है. हम विदेश से खरीदने के लिए हजारों अरब डॉलर तो खर्च कर देते हैं लेकिन अपने यहां तकनीक इजाद के करने के लिए शोध पर खर्च नहीं करते. 30 साल बाद भी हम बोफोर्स की तकनीक को अपने देश में इजाद नहीं कर पाए.

रक्षा में मेड इन इंडिया लाने के लिए अडानी ग्रुप की घुसपैठ

गुजरात का अडानी ग्रुप जिसे मोदी सरकार का करीबी समझा जाता है, मिलेट्री मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में घुसने की पुरजोर तैयारी कर रहा है. इसे गुजरात में एक बड़े शिपयार्ड बनाने का मौका दिया जा सकता है और युद्धपोत के बिजनेस की कमान भी सौंपी जा सकती है.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी