एयर इंडिया सरकारी नहीं रहेगा. इस फैसले से सदमा नहीं लगे इसके लिए रोज़ाना कोई न कोई सरकारी बाबू या मंत्री आपको तैयार कर रहा है. पहले तो 2007 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स को एक किया गया जिस दौरान खूब सारी नकदी से इसे लाद दिया गया. अब दोबारा से एयर इंडिया के कर्ज को माफ़ करके, किसी रसूख वाले व्यापारी को इसे सौंपा जाएगा. सोचने वाली बात है कि आजादी उपरांत जहां पूरे हिंदुस्तान से राजाओं को उनकी गद्दियों से उतार दिया गया वहीं एयर इंडिया का लोगो आज भी महाराजा ही बना हुआ है.
वैसे सरकार कंपनियां क्यों चलाती है? आपके परिवार, संबंधी, दोस्त, पड़ोसी में से कोई इकॉनमी में रूचि रखते हों तो उनसे यह सवाल जरूर पूछिएगा. सरकार का उद्देश्य क्या होना चाहिए, इस पर जल्द ही राष्टीय बहस भी हो, ऐसी मेरी कोशिश है. गत तीस साल में सरकार ने अपने होटलों का क्या किया है या फिर दवा बनानी वाली सरकारी कंपनी आई.डी.पी.एल. का क्या हश्र हुआ है? इसे गौर से जानने के लिए खूब सारा रिसर्च करने की आवश्यकता नहीं है.
मुझे एयर इंडिया के दफ्तर से लेकर इसके रखरखाव और ट्रेनिंग के अड्डों को समझने का मौका मिला है, वहीं आई.डी.पी.एल. के सी.एम.डी. से लगातार कंपनी के स्वास्थ्य की जानकारी व्यक्तिगत रूप से मिलती रही है. इन दोनों को ही डुबोने में सरकार की बुरी मंशा रही है. धीरे-धीरे सरकार की दूरसंचार सेवा एम.टी.एन.एल. और बी.एस.एन.एल. भी डूबता जहाज बन रही है. आखरी क्या वजह है कि प्राइवेट कंपनियां जो इन धंधों में हैं वे चांदी काट रही हैं और सरकारी सेवाएं धूल चाट रही हैं – चाहे वह एयर इंडिया हो, आई.डी.पी.एल. या बी.एस.एन.एल?