देश की नीचली अदालतें न्याय व्यवस्था की आधारशीला हैं. लेकिन वहां काम कैसे होता है, किसी से छिपा नहीं है. न्याय के इन छोटे मंदिरों पर तमाम आरोप लगाए जाते रहते हैं. लोअर कोर्ट-कचहरियों में काम करना इतना मुश्किल है कि तारीखों पर अगर यथोचित काम हो जाए तो करिश्मा सा लगता है. रेंग रेंग कर केस आगे बढ़ते हैं, वह भी जजों के प्यार-व-सख्ती से पेश आने पर. जज टाइम पर आ जाते हैं, लेकिन वादी-प्रतिवादी गायब रहते हैं. वकील अक्सर ट्रैफिक में फंसे होते हैं या फिर दुसरे कोर्टों में व्यस्त बताये जाते हैं.
न्याय के इन मंदिरों में तैनात निष्ठावान पुजारी तब कितने विवश दिखते हैं ! तमाम कोशिशों के बावजूद एक-न-एक पार्टी तारीख लेकर भागने में सफल हो जाती है. फिर जनता सनी देओल साहेब के डायलाग दोहराती रहती है – अदालतों में मिली है, तारीख पर तारीख. ऐसे लगता है मानों कोर्टों में बैठे जज ही अपराधी हों.
जरूरत है निचली अदालतों की खूबियों को समझने की, उनका लाभ उठाने की. इससे न्याय प्रणाली सुदृढ़ होगी, उचित फैसले हो सकेंगे. दोनों पक्षों के संतुष्ट होने से ऊपर की कोर्टों में नीचली अदालतों के फैसले कम चैलेंज किये जायेंगे. केन्द्र में नई सरकार बार बार अच्छे दिन आए हैं, अच्छे दिन आए हैं, ऐसा कहती है. छोटी कोर्टों के अच्छे दिन कब आयेंगे? वहां खड़ा अपराधी भी ईश्वर होने का नाटक करता है जबकि बड़ी अदालतों में खड़े होने में उसकी टाँगे लड़खड़ाती हैं.
जनता को चाहिए कि वह इन नीचली अदालतों को उचित सम्मान दे और तारीखों पर अगली तारीख की याचना न करे. ऊपर बैठे जजों को भी चाहिए कि सिर्फ नीचली अदालतों के फैसलों को आनन-फानन में रद्द नहीं करे तथा उनपर रोक लगाने में पारदर्शिता बरतें. योर ऑनर अपने चरित्र पर उठती उंगलियों को भी कोई मौका न दें. भारतीय न्याय व्यवस्था में ऊंचे पदों पर बैठे जजों के विवादों के घेरों में आने से नीचे की अदालतों का मनोबल गिरता है. बड़ी अदालतों में जजों की नियुक्ति में गड़बड़ी भी रूकनी चाहिए और जजों के चाल चलन पर लग रहे सवालों का उत्तर भी मिलना चाहिए.
मद्रास हाईकोर्ट में एक जज की तैनाती को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कण्डेय काटजू ने राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगाए हैं. और अब ताजा विवाद एक हाईकोर्ट के जज के चरित्र को लेकर आया है. एक जिला जज ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक जज पर उसके प्रति बदनीयती रखने और आपत्तिजनक बर्ताव करने का आरोप लगाया है. मुल्क में आखिरकार छोटे कोर्टों को हक़ मिलेगा कि नहीं, योर ऑनर!