मैं छोटे-छोटे शहरों में बड़ी हुई. मेरे पिताजी भारतीय फ़ौज में अफसर थे.
ब्याह कर मैं सपनों की नगरी मुंबई गई. वहां मेरे पति एक्टर थे. इतने बड़े शहर में, मैं जैसे खो गई.
ग्लैमर की चकाचौंध, छोटे-छोटे कपड़ों में लोग, ऊंची-ऊंचीं हील्स, पैसों की बारिश, पेज-3 पार्टियां – सब नया था मेरे लिए.
एक तरफ मुझे अच्छा लग रहा था और दूसरी तरफ थोड़ा सा डर भी था कि क्या मैं इन सब में एडजस्ट हो पाऊंगी!
डरी सहमी सी मैं लोगों को बड़ी उम्मीद से देखती और सीखने की कोशिश करती, हर दिन कुछ नया.
धीरे धीरे मैंने अपनी जगह बनाई और मुंबई से प्यार हो गया.
रातों को घूमना, समुंदर किनारे बैठना, डिस्को जाना, मेकअप करना, हील्स पहनना, फैशन, मस्ती, प्यार, मुहब्बत, सिनेमा देखना, 5-स्टार में कॉफ़ी पीना और बहुत कुछ.
मुझे मेरे पति ने गाइड किया और लोकल ट्रेनों में आना जाना सिखाया, पैसे संभालना सिखाया, एक तरह से ऊँगली पकड़ कर फिर से चलना सिखाया.
एक रात हम बांद्रा के एक पब में गए जिसका नाम ‘टोटोस’ था. वो मेरा पब में पहला कदम था. मैं इलाहाबाद से आई थी जहां पब, डिस्को, लाउन्ज वगैरह बस सिनेमा में ही देखा था.
थोड़ा हिचकिचाती मैं गई अंदर और हम एक जगह बैठ गए. पति ने पूछा, “कुछ पियोगी?”
कहना तो था ना पर मैंने कहा, “हां.” और वो मेरे लिए रम एंड कोक बनवा लाए. पीते ही हल्का-सा कुछ नशा-सा होने लगा. फिर अगले दो घंटे तक हम खूब नाचे, मुंबई की भाषा में बिंदास.
फिर सुबह चार बजे तक सड़कों पे गाने गाते हुए मैं झूम रही थी, डीडीएलजे की काजोल की तरह – ‘ज़रा सा झूम लूं मैं’. हां, ‘थोड़ी सी जो पी ली है’ भी.
इस हालत में मेरी अम्मा को फ़ोन लगा पति ने कहा, “आपकी लड़की बिगड़ गई.” बेचारी माँ, बेहोश हो गई होंगी.
फिर कई बार पिछले सोलह सालों में हम पब, डिस्को और लाऊंज गए होंगे. पर यूं कभी मस्ती नहीं की.
वो एक रात आज भी याद है, जैसे कल ही की बात हो.