अंक सौ यानी 100 को कुछ इस तरह समझें. तीन वर्षीय काव्या दौड़ती हुई मेरे पास आई, गले लगी और बोली – आई लव यू.
मैंने उसे प्यार से गले लगाया और पूछा कि आप मुझे कितना प्यार करती हैं?
इसके जवाब में उसने अपने दोनों हाथों को वह जितना फैला सकती थी उतना फैलाकर बताया – इतना, इतना सारा.
मैंने फिर पूछा, “इतना सारा क्या होता है?”
काव्या ने सोचकर कहा – हंड्रेड (100) प्यार करती हूं आपको.
काव्या की मासूमियत से मैं समझ गई कि बच्चों के लिए 100 सबसे बड़ी संख्या होती है. इसलिए, प्यार को भी उसने 100 कहकर साबित करना चाहा, कि वह मुझसे बहुत ज्यादा प्यार करती है.
परीक्षा में 100 का चक्कर
100 का महत्व इम्तेहान में सबसे ज्यादा पता चलता है. 100 में कितने अंक आए! “अरे वाह, शाबाश! 100 में 100.” यह जादुई अंक हर बच्चे के सपने और हकीकत की दास्तान कहता है.
100 रूपये की त्योहारी
बच्चे को कोई रिश्तेदार 100 रूपए देता है तो उसे लगता है कि पूरी दुनिया उसकी मुट्ठी में है. नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 के नोटों की अफरा-तफरी के कारण ऐसी फीलिंग बड़ों को भी मिली.
अपना 100 परसेंट दें
हर पेरेंट्स अपने बच्चों को लगातार यही समझाते हैं कि उन्हें पढ़ाई और खेल दोनों में ही 100 परसेंट देना चाहिए.
क्रिकेट में 100 रन
क्रिकेट के खेल में 100 का मतलब आसानी से समझा जा सकता है. मेरे पिता खेल-कूद में बड़ी दिलचस्पी रखते थे. क्रिकेट मैच के दौरान वे रेडियो कमेंट्री सुना करते थे. अचानक ज़ोर का शोर होता – सुनील गावस्कर की सेंचुरी हो गई. घर में त्योहार सा माहौल बन जाता. जब मैंने खुद अपने पापा से सेंचुरी का मतलब पूछा तो उन्होंने बताया, कि जब बैट्समैन के 100 रन पूरे होते हैं तो उसे सेंचुरी पूरा करना कहते हैं.
100 परसेंट जीवन जिएं
100 को पूर्णांक माना गया है. हम हमेशा अपने आप को पूर्ण करने के लिए जीवन भर भटकते रहते हैं. हम हमेशा वे रास्ते तलाशते रहते हैं जो हमें पूर्णता तक पहुंचा सके.
100 से एक भी कम हमें सदैव व्याकुल रखता है, क्योंकि हम पूर्ण नहीं होते और पूर्णता ही मुक्ति है. वह मुक्ति जो महावीर और बुद्ध को प्राप्त हुई, जीवन में पूर्ण होकर.
पूर्ण होना क्या है? 100 किसे कहते हैं? जहां अधूरेपन का अंश मात्र भी न हो वही 100 है और जो 100 है वही पूर्ण है.
प्रकृति के हर कण में संपूर्णता है इसलिए प्रकृति सुंदर है. अगर हम इस संपूर्णता को अपने मन में स्थान दें तो हमारा अंत संपूर्णता ही होगा.
बहरहाल, आज की जीवन शैली में प्रकृति हमें 100 यानी संपूर्णता से प्रारंभ तो देती है लेकिन हम जीवन में हर क्षण कम होते हुए शून्य की ओर चले जाते हैं.
हम अपने जीवन की संपूर्णता को भूत या भविष्य के विचारों में हर क्षण कम करते हुए वर्तमान को खोते चले जाते हैं. वह वर्तमान जो बस अभी में है, इस क्षण में, जो संपूर्ण है, 100 है.
इसलिए हमें चाहिए कि हम जीवन को 100 से प्रारंभ कर 100 पर समाप्त करते हुए शत्-प्रतिशत जीवन जिएं.