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मासूम सवालों से हैरान हूँ

मैं एक शिक्षिका हूँ और पिछले पन्द्रह वर्षों में न जाने कितने ही विद्यार्थी मेरे संपर्क मे आये. वह हर मासूम चेहरा मुझ पर अपनी एक छाप छोड़ गया. उन सब की छोटी-मोटी बातें मुझ पर छप सी गईं हों.

फिर मुझे विद्यालय प्रबंधन का कार्यभार सौंपा गया. वह मेरी तरक्की थी. साथ ही कुछ पा कर कुछ खोने जैसा अनुभव भी.

मैं अपनी चौकोर क्लास और उसमें बैठे, पढ़ते, खेलते, इठलाते, शरमाते, खाते, उछलते-कूदते बच्चे व उनसे जुडी चुलबुली बातें भुला नहीं पाती हूँ.

अब भी मैं वह हर क्षण जीती हूँ — हर वर्ष के शुरुआत में माता-पिता व अभिभावक अपने रोते हुए नन्हे-मुन्नों को मेरे पास छोड़ जाते और मैं उन्हें दुलार-पुचकारकर संभालती. और फिर संभाल ही लेती.

जल्द ही हम दोस्त बन जाते.

अक्सर, पहला दिन यूं ही शुरू हुआ करता था. और वर्ष के अंतिम दिन उन्हें (अपने बच्चों को) विदा करते हुए मन में एक गहरा, अनकहा, अनदेखा रिश्ता कायम हो जाता.

जहां हँसते हुए मैं उन्हें गले लगाकर साल भर स्नेह करती, वहीं सेशन के अंतिम दिन आखों मैं प्यार के आंसू लिए उन्हें शुभकामनाओं और आशीर्वाद के साथ विदा कर देती.

सालों साल ऐसा ही चला. इस सफर के अनुभव मेरे लिए अनमोल हैं.

यह कुछ झलकियां और अनुभव, वे हँसते हँसाते पल, खट्टी मीठी यादें, दिल छू देने वाले एहसास बांटने में सुख की अनभूति हो रही है.


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