बनारस प्रवास के दौरान जब मालूम हुआ कि संत कबीर ने जहां अपना जीवन व्यतीत किया वह कबीर मठ हमारे होटल से केवल दो किलोमीटर दूर था.
दिल्ली से बनारस की ओर प्रस्थान करते हुए कौतुहल था कि जिस भक्ति साहित्य को हम आज अकादमियों में पढ़ते हैं उसका कुछ अंश क्या आज भी काशी में जीवित है?
जब मैं कबीर-मठ की ओर बढ़ा तो सड़क पर लगा बोर्ड कबीर मठ को ढाई किमी दूर बता रहा था. किसी नए शहर में जानने के लिए बहुत कुछ होता है. मैं लगातार क़दम बढाए जा रहा था.
आस-पास फैले विज्ञापन इस बात की गवाही दे रहे थे कि काशी भी आज परंपरावादी माहौल से निकलकर भूमंडलीकरण की तरफ अग्रसर हो रहा है.
किंतु कबीर-मठ वाली गली में पहुंचते ही भूमंडलीकरण वाला तत्व जैसे अदृश्य हो गया. वहां के माहौल में ऐसा अनुभूत होता था कि जैसे मैं किसी ऐतिहासिक समय में प्रवेश कर रहा हूँ.
अब या तो उसे बनाया ही इस ढंग से गया है या फिर वहां अभी भी भीड़-भाड़ की कमी है, वहां का मौन भी ऐसा ही माहौल पैदा कर रहा था.
कबीर-मठ एक बड़ी हवेली है, जो गली के दोनों ही तरफ है. कबीर मठ के दरवाज़े से अंदर प्रवेश करते ही मुझे कबीर के काव्य की जीवंत अनुभूति होने लगी. क्योंकि जिस तरह मठ के आंगन में कबीर का जीवन वृतांत उनकी कविताओं के साथ सहेजा गया, वह अद्वितीय है.
आंगन में गोलाकार क्षेत्र में उनके जीवन के महत्वपूर्ण भाग, उनकी कविताओं के साथ उत्कृष्ट मूर्तिकला के माध्यम से सजाए गये हैं. आंगन के बीच में एक समाधि हैं जहां तीन भूतपूर्व मठ अध्यक्षों की समाधि है.
आंगन के आगे, सीढ़ियों से ऊपर जाते हुए, कबीर का वह प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है, कि वहां वह बुनते हुए काव्य-पाठ करते थे.
संत कबीर की मूर्ति के दर्शन करने के बाद मुझे सीढ़ियां दिखीं जिनके बारे में वहां लिखा था कि वे कबीर के घर की तरफ ले जाती हैं. सीढ़ियों की ओर जब मैं आगे बढ़ा तो मुझे वो ऐतिहासिक कुआं भी दिखा जिसके बारे में प्रचलित है कि वो कबीर काल से मौजूद है.
सीढ़ियां छत से निकलती हुई एक सेतु का निर्माण कर रही थी, जो गली के इस किनारे को उस किनारे से जोड़ रही थी. गली के दूसरे किनारे पर टूटा-फूटा भाग दिखा जो कबीर का बचपन स्थल और घर था.
कुछ कच्ची दीवारों से घिरा हुआ खंडहर अपनी बूढी उम्र के द्वारा अपनी ऐतिहासिकता का साक्ष्य प्रस्तुत कर रहा था.
वहां कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे जिनसे मैंने कुछ देर बातचीत की. उन्होंने कबीर के दोहे भावार्थ सहित सुनाए. कुल मिलाकर कबीर-मठ का अनुभव एक स्तर पर मुझे उस वैचारिक भक्ति के करीब ले गया, जिसकी मैंने कुछ कल्पना की थी.