बाहुबली और बाहुबली 2 की अपार सफलता के कई कारणों को लोगों ने खंगाला है. चाहे वो महाभारत के भीष्म पितामह रूपी कटप्पा का किरदार हो या प्रभावशाली बाहुबली का रोल निभाने वाले मुस्कुराते प्रभास, अधिकतर नए चेहरों ने सहजता से अपना रोल निभाते हुए इस बहु-भाषीय फिल्म श्रृंखला को शोहरत दी है. नए चेहरे, नई कहानियां, नए फार्मूले भारतीय सिनेमा और टेलीविजन के लिए अत्यंत जरूरी हैं. इससे खान बंधुओं और कपूर परिवार को बेहतर करने के लिए चुनौती मिलेगी. साथ ही दर्शकों को सिनेमा और छोटे पर्दे पर नयापन दिखेगा और विभिन्नता मिलेगी.
बाहुबली के निर्देशक एस.एस. राजामौली के विजन से ही बाहुबली का निर्माण हो पाया अन्यथा भारतीय सिनेमा में एक से एक दिग्गज हैं ठीक वैसे ही जैसे कि देश भर में तमाम राजनीतिज्ञों का ज़खीरा है. कांग्रेस पार्टी से पता नहीं कितनों ने ही लोहा लिया – जयप्रकाश नारायण और राजनारायण से लेकर सुब्रमनियन स्वामी और जॉर्ज फर्नांडीज तक. लेकिन इसके खिलाफ मोर्चा खोलकर इसका वर्चस्व समाप्त करने का श्रेय नरेन्द्र मोदी को जा सकता है, इसलिए कि मोदी के पास विजन है.
अब सवाल यह उठता है कि क्या राजामौली ने बाहुबली बनाकर खान बंधुओं या कपूर परिवार पर कोई जीत हासिल की या फिर उन्होंने अपने विजन का इस्तेमाल सही दिशा में लगाकर लोगों को बाहुबली के रूप में एक नायाब तोहफा दिया? सवाल यह भी उठता है कि नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस का वर्चस्व समाप्त कर क्या अपने विजन से देश को एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और भ्रष्टाचार-विहीन सरकार दी या फिर सिर्फ कांग्रेस को नेस्तनाबूत किया?