कल इऱफान साहब की वे फिल्में खोज रहा था जो मैंने नहीं देखीं या फिर जिसे फिर से देखना है.
कल मन उचाट था तो आज के लिए फ़िल्म तय करके रखी ऐमज़ॉन पर डी डे (D-Day).
इस फ़िल्म में इऱफान साहब और ऋषि कपूर साहब दोनों हैं, और दोनों की एक के बाद एक मौत हो जाती है.
जो पर्दे पर हुआ वही आज हकीकत में हो गया.
ऋषि कपूर का मुंबई के एक अस्पताल में 30 अप्रैल को निधन हो गया. वे लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे.
दो दूनी चार, अग्निपथ, कपूर एंड संस, बेवकूफियां के बाद मुल्क और राजमा चावल, कपूर साहब आप जवानी से ज़्यादा तो बुढ़ापे में कमाल कर रहे थे.
हां जी पता है बूढ़ा कहे जाने पर चुलबुल चौटाला काटने दौड़ता है, फिर भी, मैं तो यही समझता था कि ऋषि कपूर बस स्वस्थ हो जाएं तो अब अगले 20-30 साल के लिए ढ़लती उम्र वाले किरदारों में अशोक कुमार, बलराज साहनी, सुनील दत्त इन तीनों दिग्गजों की एक्टिंग के कॉकटेल का आनंद मिलता रहेगा.
रोमांस का मतलब राजेश खन्ना और ऋषि कपूर ही रहा है, कई दशकों तक. और ये जायका ऐसा है कि तीन पीढ़ियों ने इसका स्वाद लिया है.
मैं तो जिस तरह के किरदारों में आपकी 40-50 फिल्में चाहता था अपने बुढ़ापे के लिए, आपने तो मेरी पसंद के दहाई के आंकड़े में दाखिल होते ही विदाई ले ली.
अमिताभ बच्चन: ‘वो चले गए.. ऋषि कपूर… वो चले गए.. उनका निधन हो गया. मैं टूट गया हूं.’
आप बड़े दिल वाले थे, दुनिया तो आपकी जेब में थी, पटेल की पंजाबी शादी का वादा रहा कहके चिंटू जी 102 पर आपको नॉट आउट रहना था और आप तो बस 67 में रफूचक्कर हो लिए.
झूठा कहीं का.