सुशांत की भूमिका अमर रहेगी

सुशांत सिंह राजपूत

बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून को सुसाइड कर लिया.

“कितना अच्छा था वो जीवन जब पैसे कम थे, लेकिन ज़िंदगी थी भरपूर. मां पास थी, और सुख क्या होता है? ये सब सोच कर आज आंसू निकल आते हैं और सपनों जैसे कई सच एक के बाद एक बाहर आने लगते हैं. कल और आज के बीच जीवन रोज निकलता जा रहा है.”

प्रतिभाशाली एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) ने कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में अपनी भावनाएं कुछ यूं व्यक्त की थीं.

सुशांत के करियर ग्राफ और उनके द्वारा निभाए गए किरदारों को देखें तो आत्महत्या की बात पर सहसा विश्वास करना मुश्किल हो जाता है.

अपनी सबसे चर्चित फिल्म एम.एस. धोनी कोई मसाला फ़िल्म नहीं थी, एक बायोपिक थी जिसमें एक सामान्य परवरिश वाले व्यक्ति के जीवन में स्टार बनने के दौरान आने वाली हर उथल-पुथल, हर उठापटक को बहुत अच्छे तरीके से दर्शाया गया था.

जो पटकथा है, उसमें फ़िल्म के हीरो की ज़िंदगी में ऐसे बहुत से अवसर आते हैं जहां से वह टूटकर बिखर जाने की कगार पर पहुंच जाता है लेकिन हर बार उसकी ज़िंदगी में कोई न कोई आता है जो उसे बताता है कि जीना इसी का नाम है.


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सुशांत की एक और फ़िल्म है जिसका ज़िक्र उनकी आत्महत्या की खबरों के बीच ज़्यादा मौजूं हो जाता है.

फ़िल्म छिछोरे में उन्होंने एक ऐसे पिता का रोल किया जिसका एकलौता बेटा पिता की तरह इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा पास न कर पाने के कारण डिप्रेशन में चला जाता है और आत्महत्या की कोशिश करता है.

उसके बाद शुरू होती है बेटे को मौत के मुंह से निकालने की पिता की जद्दोजहद. पूरी फ़िल्म में सुशांत आत्महत्या जैसी मनोदशा से बचने और बेशकीमती ज़िंदगी बचाने के मेसेज दे रहे थे.

सुशांत किसी बॉलीवुड के बड़े परिवार से ताल्लुक नहीं रखते थे जहां उनपर अपने खानदान के नाम को ऊंचा रखने का कोई दबाव हो.

पटना में मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे, पले-बढ़े सुशांत ने इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में पूरे देश में 17वां स्थान हासिल किया.

उन्हें आईएसएम धनबाद जैसे कॉलेज से कॉल आई जहां पढ़ना इंजीनियर बनने की लालसा रखने वाले किसी भी बिहारी बच्चे का सपना होता है पर वह दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज आए.

पढ़ाई के बीच में एक्टिंग का शौक लग गया और मुंबई चले गए. सीरियल में काम करने से पहले डांसर्स के ग्रुप में डांस किया, छह स्ट्रगलर्स के साथ कमरा शेयर किया.

एक होनहार विद्यार्थी जिसकी चार बहनें हों, इंजीनियर बेटे से पिता ने नौकरी करके परिवार का बोझ हल्का करने की उम्मीद लगाई हो लेकिन बेटा इतना भी न कमा पाता हो कि अपनी ज़िंदगी ठीक से जी ले.

जब ज़िंदगी के पास निराश कर देने की बेशुमार वजहें थीं तो सुशांत संघर्ष करके रास्ते निकालते गए. जब नाम मिल रहा था, काम मिल रहा था, भरपूर दाम मिल रहा था, उस समय कोई ज़िंदगी को अलविदा कह दे वह भी महज 34 साल की उम्र में!

कच्ची उम्र में सुशांत की जिजीविषा का ख़त्म हो जाना कई सवाल छोड़ जाता है. दुःखद है सुशांत का जाना.


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