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सदाबहार कहानियां, सदाबहार फिल्में

किताब पहले पढ़ें या उनकी कहानियों पर आधारित फिल्म पहले देखें, इस मामले में लोगों की प्राथमिकताएं अलग-अलग हो सकती हैं.

साहित्य के प्रेमियों का यह मानना तो गलत नहीं है कि कहानी पढ़ते समय जिस तरह आप एक किताब में घुल जाते हैं, जितनी बारीक तरीके से पात्रों, सेटिंग और कहानी में छिपे भावों को महसूस कर पाते हैं, उसी किताब पर आधारित फिल्में अक्सर वह अनुभव या जादू नहीं बिखेर पातीं.

जब किताबों से प्रेरित होकर बनीं बेहतरीन फिल्में

फिल्म देखना ज्यादातर लोगों को पसंद ही होता है. बॉलीवुड में तो हॉलीवुड की फिल्मों से प्रेरणा लेकर फिल्म बनाने का चलन है. दिलचस्प यह है कि दुनियाभर में कई फिल्मों की कहानी किताबों से ली गई हैं. देवानंद की फिल्म ‘गाइड’ भी आर.के. नारायण के मशहूर उपन्यास ‘द गाइड’ पर आधारित थी.

वहीं दूसरी और सिनेमा-प्रेमियों को अक्सर यह तर्क देते देखा जाता है, कि किसी कहानी में दिलचस्पी जगाने के लिए फिल्में एक बेहतर विकल्प हैं. इन्हें देख कर आप कहानी भी समझ लेते हैं, अपना मोरंजन भी कर लेते हैं, और आपका समय भी बच जाता है.

उपन्यासों और फिल्मों के इस वाद विवाद में पड़ने के बजाए, क्यों ना एक नज़र डालें उन बेहतरीन कहानियों पर जिन्हें ना केवल लिखकर उनके लेखकों ने कुछ अनमोल साहित्यिक कृतियों को सामने रखा, बल्कि निर्देशकों ने भी उन्हें फिल्माते हुए खास ख्याल रखा. 

फिल्मी रूपांतरों को मूल कहानी से जुड़ा रख कर ही उन निर्देशकों ने अपनी रचनात्मकता का भी प्रमाण दिया है.

गौन विद द विंड

साल 1936 में मार्गरेट मिशेल द्वारा लिखी गई ‘गौन विद ड विंड’ का फिल्मी रूपांतर 1939 में निर्देशक डेविड ओ सेल्ज़निक ने किया. कुल 1037 पृष्ठों में लिखी गई अमेरिकी सिविल वॉर की इस कहानी को सही ट्रीटमेंट देते हुए सेल्ज़निक ने इसे करीबन चार घंटे की फिल्म के रूप में प्रस्तुत किया. पर यह निश्चित है कि इन चार घंटों में एक पल भी इसके पात्रों – विवियन लेघ, क्लार्क गेबल, ओलिविया डे हैविलैंड और लेस्ली हावर्ड की बेहतरीन प्रदर्शन से नज़र हटा पाना मुश्किल है.

डिफरेंट सीजंस

साल 1982 में प्रकाशित हुआ ‘डिफरेंट सीजंस’. यह स्टीफन किंग द्वारा लिखे गए चार उपन्यासों का संग्रह है, जिनमें से तीन कहानियों पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्में बनाई गई हैं. ‘द बॉडी: फॉल फ्रॉम इनोसेंस’ का फिल्मी रूपांतर स्टैंड बाय मी के नाम से निर्देशक रॉब रेइनर ने 1986 में किया. ‘रीटा हेवर्ड ऐंड शॉशांक रेडेम्पशन: होप स्प्रिंग्स इटरनल’ का फिल्मी रूपांतर शॉशांक रिडेम्पशन के नाम से निर्देशक फ्रैंक डेराबौन्ट ने 1994 में किया. ‘ऐप्ट प्यूपल’ का फिल्मी रूपांतर इसी शीर्षक के साथ ब्रायन सिंगर ने 1998 में किया. हालांकि तीनों ही फिल्में बेहतरीन हैं, शॉशांक रिडेम्पशन ने (रिलीज के कुछ वर्षों बाद) लोगों के दिलों में एक ख़ास जगह बनाई. परंतु क्या इसका फिल्मी रूपांतर स्टैंड बाय मी से बेहतर है, यह तय कर पाना थोड़ा मुश्किल है.

द रिमेन्स ऑफ द डे

साल 1989 में काजुओ इशिगुरो के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘द रिमेन्स ऑफ द डे’ का बेहतरीन फिल्मी रूपांतर 1993 में किया निर्देशक जेम्स आइवरी ने. उपन्यास की तरह, इस फिल्म में आधुनिकता और अभिजात वर्ग के टकराव पर बसे इंग्लैंड का चित्रण अविस्मरणीय है. जहां ‘द रिमेन्स ऑफ द डे’ ने काजुओ इशिगुरो को बुकर प्राइज दिलाया, वहीं इसके फिल्मी रूपांतर ने ‘100 ग्रेटेस्ट फिल्म ऑफ ट्वेंटीएथ सेंचुरी’ में अपनी जगह बनाई.

ऐसी ही कुछ अन्य बेहतरीन कहानियां और उनके बेहतरीन रूपांतर हैं – द गॉडफादर, टू किल अ मॉकिंग बर्ड, हार्ट ऑफ डार्कनेस, सेन्स ऐंड सेंसिबिलिटी, वुदरिंग हाइट्स, अमेरिकन साइको, शिंडलर्स लिस्ट, द शाइनिंग.


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