आम आदमी के फिल्मकार बासु चटर्जी भी चले गए

आपको कभी भी अंदर तक गुदगुदाने का मन करे तो आप बासु चटर्जी की फिल्‍में देख सकते हैं.

Basu Chatterjee

बॉलीवुड में 70 और 80 के दशक में बासु चटर्जी ऐसी पारिवारिक और दिल के तार झकझोर देने वाली फिल्में लेकर आए थे जो तपती धूप में पीपल की घनी छांव जैसी राहत देती थीं.

ज्ञात हो कि वह मसाला फिल्मों, मल्टी स्टारर फिल्मों और एक्शन फिल्मों का दौर था, फिर भी बासु चटर्जी ने अपनी अलग मिसाल पेश की.

आजकल वेब सीरीज का ज़माना है जब लोगों को पारिवारिक फिल्में देखने को नहीं मिल रही हैं. ऐसे में बासु चटर्जी के निधन ने बॉलीवुड में एक शून्य पैदा कर दिया है.

बासु कोरोना के समय में चार जून को दुनिया से अलविदा हो गए, लेकिन आम आदमी को लेकर बनी उनकी फिल्में हमेशा हमारे दिलों को गुदगुदाती रहेंगी.

मध्यमवर्गीय परिवारों को खूबसूरती से रूपहले पर्दे पर सजाया

बासु चटर्जी हमेशा छोटी सी बात के लिए गुदगुदाते रहेंगे जिसमें अशोक कुमार ने भोले-भाले अमोल पालेकर को ऐसा बदला कि अमोल ने असरानी की चालों का मुंहतोड़ जवाब दिया. अमोल और उनकी प्रेमिका विद्या सिन्हा साधारण थे और उस समय के मध्यम वर्गीय परिवार का प्रतिनिधित्व करते थे. असरानी तेज तर्रार और स्मार्ट थे और हर किसी को उल्लू बनाने की फिराक में लगे रहते थे. अमोल अपनी किस्मत बदलने के लिए अशोक कुमार के पास गए जिन्होंने अमोल को जीवन की चालों के बारे में सिखाया, जिसके बाद अमोल ऐसा बदले कि असरानी चक्कर खाते रह गए. फिल्म के सभी गीत सुपरहिट थे. जानेमन जानेमन तेरे ये दो नयन, ना जाने क्यूं होता है ये जिंदगी के साथ, ये दिन क्या आए, आज भी गुनगुनाए जाते हैं. अमोल और विद्या का रोमांस आम आदमी की जिंदगी का रोमांस है, जो छोटी-छोटी बातों में जीवन की ख़ुशी को ढूंढता है.

फिल्मों में हिंसा और अश्लीलता के बढ़ते दौर के समय बासु दा एक खुशनुमा हवा के झोंके की तरह आए थे और कई खूबसूरत फिल्में देकर चले गए.

हिंदी-बंगाली सिनेमा के विख्यात पटकथा लेखक और निर्देशक थे

बासु दा ने अपना करियर कार्टूनिस्ट के तौर पर शुरू किया था और इसी तरह वह लोगों को हंसाते रहे तथा जीवन की कठिनाइयों को हल्का करते रहे.

बासु दा ने 1969 में सारा आकाश से सिनेमा का सफ़र शुरू किया था. 1970-80 के दशक में उन्होंने छोटी सी बात, बातों बातों में, मंजिल, खट्टा मीठा, चमेली की शादी, रजनीगंधा, चितचोर, पिया का घर, सारा आकाश, स्वामी, शौकीन, एक रुका हुआ फैसला जैसी बेहतरीन फिल्में दीं.

उन्होंने हमेशा परिवार के लिए फिल्में बनाईं जो उन्हें हमेशा भारतीय परिवारों में अमर रखेंगी.

बासु चटर्जी ने 30 से अधिक हिंदी फिल्मों का निर्देशन किया और साथ ही कई बंगला फिल्में भी डायरेक्ट कीं.

दूरदर्शन के लिए उन्होंने रजनी, दर्पण, कक्काजी कहिन और ब्योमकेश बक्शी जैसे धारावाहिकों का निर्माण किया.

न जाने क्यूं, होता है ये ज़िंदगी के साथ… अचानक ये मन किसी के जाने के बाद, करे फिर उसकी याद, छोटी छोटी सी बात, न जाने क्यूं …


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