औरत प्रधान फिल्में बनाना और वह भी बिना किसी चोटी के अभिनेता को लिए, यह बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं के लिए आत्मघात से कम नहीं समझा जाता है. इसके बावजूद 2012 में आई सुजॉय घोष द्वारा निर्देशित फिल्म कहानी जिसने बॉलीवुड के हिंदी सिनेमा का रुख बदल दिया. रहस्यमयता से भरपूर इस थ्रिलर में विद्या बालन मुख्य किरदार में नज़र आईं थीं. गौरतलब है कि कहानी में विद्या बालन के विपरीत कोई भी बड़ा हीरो नहीं था. परमब्रता चटर्जी और नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी लघु भूमिका में ही उनके साथ दिखे.
इससे पहले विद्या बालन द डर्टी पिक्चर में भी काम कर चुकी थीं जो कि महिला प्रधान फिल्म थी. यह दिलचस्प है कि लिंगवादी फ़िल्मी जगत ने विद्या बालन को हीरो की उपाधि दे दी. बहरहाल, कहानी के साथ दर्शकों ने महिला प्रधान फिल्मों को अपनाना शुरू तो किया. और उसी साल आई गौरी शिंदे द्वारा निर्देशित फिल्म इंग्लिश विंगलिश. इसे भी खूब सराहना मिली. इंग्लिश विंगलिश श्रीदेवी की कमबैक फिल्म थी.
फिर, 2014 में आई कंगना रनौत की क्वीन जिसे समीक्षकों और दर्शकों ने बेहद पसंद किया. और इसी के साथ कंगना को बॉलीवुड की क्वीन का टैग मिला.
मदर इंडिया (1957), आंधी (1957), भूमिका (1977), अर्थ (1982), मिर्च मसाला (1987) और दामिनी (1993) महिला प्रधान फिल्में थीं लेकिन इनमें चोटी के नायक भी रखे गए थे.
- हमेशा से बॉलीवुड पर पुरुष प्रधान होने का आरोप लगता रहा है.
- हिंदी फिल्मों के नायक हमेशा लार्जर दैन लाइफ होते रहे हैं.
- बॉलीवुड में कोई ही मैन, तो कोई एंग्री यंग मैन और कोई रोमांस का बादशाह बनता है लेकिन नायिकाओं के लिए ऐसे शब्द कभी कभार ही मिलते हैं.
बॉलीवुड में अब धीरे-धीरे हिंदी सिनेमा में महिला प्रधान फिल्मों की लहर दिखने लगी है. जहां कहानी-2, अनारकली ऑफ आरा और पार्च्ड ने इस शैली को मज़बूती प्रदान की है वहीं नाम शबाना जैसी फिल्म भी बन रही है.