गिरीश कर्नाड नहीं रहे. उनके निधन से फिल्म, रंगमंच एवं साहित्य जगत में शोक लहर फ़ैल गई. जन सामान्य स्तब्ध हो गया. वे एक बहुमुखी अभिनेता, प्रतिभाशाली सांस्कृतिक प्रशासक, प्रसिद्ध संचारक और व्यापक उपलब्धियों और रुचियों के व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे.
गिरीश कर्नाड एक निडर सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ अपने साहित्यिक कौशल का उपयोग बखूबी करते थे. हालिया समय में वे धार्मिक कट्टरवाद से लड़ने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने के हर मंच पर उपस्थित होते थे.
मौत की धमकियों के बावजूद वे कभी भी अपने विचार व्यक्त करने से पीछे नहीं हटे. गत वर्ष वे ‘आई ऐम अर्बन नक्सल’ और ‘नॉट इन माई नेम’ जैसी तख्ती गले में लटकाए दिखे थे.
अपने विचार रखने से वे हिचकते नहीं थे, क्यों ना सरकार के खिलाफ ही बोलना हो. पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद गिरीश कर्नाड अपने समकालीन से कहीं ज्यादा मुखर दिखे थे.
ज्ञानपीठ अवार्ड से सम्मानित गिरीश कार्नाड का जन्म 19 मई 1938 को माथेरान, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्हें पद्मश्री, साहित्य अकादमी और पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.
अभिनय की शुरुआत उन्होंने कन्नड़ फिल्म संस्कार (1970 ) से की, जबकि कई हिंदी फिल्मों में उन्होंने कमाल का अभिनय किया. गिरीश कर्नाड की आखिरी फिल्म अपना देश (कन्नड़) 26 अगस्त 2019 को रिलीज होगी.
गिरीश कार्नाड द्वारा रचित तुगलक सहित कई नाटक काफी लोकप्रिय हुए और उनका अन्य भाषाओँ में अनुवाद व मंचन हुआ.
उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए डा. नम्रता गौतम ने कहा कि गिरीश कर्नाड की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता. सुर संगम फिल्म में वे एक अनुशासित गुरु की भूमिका में सर्वश्रेष्ठ दिखे. फिल्म जगत में बहुत कलाकारों को पुरस्कृत किया जाता है लेकिन ऐसे जीवंत कलाकारों को पुरस्कारों की आवश्यकता ही नहीं होती.
81 वर्षीय गिरीश कर्नाड लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, जिसके बाद उन्हें बेंगलुरु के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था.