जानलेवा होती जा रही है गर्मी

धूप व उमसभरी गर्मी से सभी परेशान हो जाते हैं. 37 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान झेलने के लिए हमारा शरीर नहीं बना. लेकिन, अब गर्मियों में कम से कम 42 डिग्री सेल्सियस में हम रोजाना रहते हैं.

सुबह और रात का तापमान भी पसीने देने वाला होता है. लू यानी हीटवेव की चपेट में जो आ गए उन्हें ईश्वर बचाए, क्योंकि पर्यावरण में हो रहे बदलाव पर नियंत्रण कसने के लिए कोई मशनरी कामयाब होती नहीं दिख रही.

संयुक्त राष्ट्र की मौसम विज्ञान एजेंसी (WMO) की मानें तो अगले पांच वर्षों में, वार्षिक वैश्विक तापमान के कम से कम एक डिग्री सेल्सियस (0.9 डिग्री सेल्सियस से 1.8 डिग्री सेल्सियस तक के बीच) ज़्यादा रहने की सम्भावना जताई गई है.

बताया गया है कि वर्ष 2021-2025 की अवधि में 90 फ़ीसदी सम्भावना है कि कम से कम कोई एक वर्ष अब तक का सबसे गर्म साल साबित होगा.

‘Global Annual to Decadal Climate Update’ नामक रिपोर्ट दर्शाती है कि ऐसी स्थिति में, वर्ष 2016 पीछे रह जाएगा, जोकि अब तक सबसे गर्म साल रहा है.

तो तय है कि भविष्य में गर्मी के दिनों की संख्या बढ़ेगी. यह इसलिए भी होता दिख रहा है क्योंकि इसका इलाज ढूंढने के लिए न तो अब तक सरकारी प्रयास किए गए हैं और न ही इस संबंध में अब तक ठोस शोध किए जा रहे हैं.

यदा कदा कोई वक्तव्य या कोरा कागज़ जारी कर दिया जाता है. फिर थोड़ा शोर मचता है, पर्यावरण पर ‘चिंतित’ लोगों के लेख छपते हैं, उनके इंटरव्यू दिखाए जाते हैं. कुछ दिन बाद सभी चुप हो जाते हैं.

Heat Summer Temperature due to global warming
फोटो: प्रभात पांडे

पहले पृथ्वी में जितनी ऊर्जा आती थी, उतनी ही वापस जाती थी, जिस कारण हमारा एक वैश्विक तापमान संतुलित रहता था. लेकिन वर्तमान में कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में काफी बढ़ चुका है. नतीजतन एनर्जी बैलेंस दूसरी दिशा में चला गया है और वैश्विक तापमान (Global Warming) में वृद्धि हो गई है.

भारत में हीटवेव तीसरी ऐसी आपदा है जिसमें सबसे अधिक मौतें होती हैं

तापमान में बढ़ोत्तरी का अर्थ, ज़्यादा मात्रा में हिम का पिघलाव होना, समुद्री जल स्तर बढ़ना, ज़्यादा गर्म हवाएं और अन्य चरम मौसम हैं, और खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और टिकाऊ विकास पर कहीं ज़्यादा असर है.

भारत को इस बात की अगुवाई करनी होगी कि सभी देश उन सेवाओं का विकास जारी रखें जिनसे जलवायु परिवर्तन के नज़रिये से सम्वेदनशील सैक्टरों में अनुकूलन प्रयासों को समर्थन देना ज़रूरी हो, विशेषकर स्वास्थ्य, जल, कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा.

साथ ही समय रहते चेतावनी देने वाली प्रणालियों को बढ़ावा देने की भी ज़रुरत है ताकि चरम मौसम की घटनाओँ के दुष्परिणामों को कम किया जा सके. प्रकृति के साथ शान्ति स्थापित करना 21वीं सदी की निर्धारक ज़िम्मेदारी है. यह हर स्थान पर, हर किसी के लिये शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए.

कुछ विशेषज्ञों की राय ‘डाउन टू अर्थ’ (Down To Earth) पत्रिका ने जाननी चाही तो उसमें एक दिलचस्प बात सामने आई. वह यह कि लोग यह नहीं मानते हैं कि हीटवेव (Heat Wave) इंसानों और जानवरों को मार देती है. हीटवेव की तुलना में बाढ़ और चक्रवात जैसी आपदाओं से निपटने के लिए हम बेहतर रूप से तैयार हैं.

लेकिन हम यह क्यों नहीं सोचते कि हीटवेव देश की एक बड़ी आबादी को प्रभावित करने वाली कारक बन गई है. और तो और, देश के आधे से अधिक राज्य हर गर्मियों में हीटवेव से प्रभावित रहने लगे हैं.


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