डाइट (diet) कल्चर एक ऐसी प्रणाली है जिसमें खाद्य सार्वजनिक नैतिकता का एक मुद्दा बन जाता है. आमूमन यह देखा जाता है कि शरीर को मोटापे की अपनी डिग्री के आधार पर स्वस्थ या अस्वस्थ के रूप में मूल्यांकन कर दिया जाता है, जबकि यह गलत है.
ऐसे में लोग अंधाधुंध तरीके से फिटनेस फ्रीक (fitness freak) बनने की आड़ में जुट जाते हैं और भारी मात्रा में पैसे लुटाने को आसानी से तैयार हो जाते हैं. उनका लक्ष्य होता है, पतला (slim) होना, जो कि उन्हें पूरी उम्मीद होती है कि डाइट कल्चर से प्राप्त किया जा सकता है.
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आज की तारीख में डाईट कल्चर मात्र पूंजीवादी प्रतिक्रया बन कर रह गया है. पूंजीवाद को बढ़ावा देने से भी हानिकारक है लोगों के मन में यह धारणा बैठ जाना कि यदि वे पतले हैं, तभी वह स्वस्थ भी हैं.
हर व्यक्ति के शरीर की रचना और उसकी मांगें अलग-अलग होती हैं
बॉडी इमेज
अक्सर लोगों के मन में यह धारणा पैदा हो जाती है कि स्लिम होना फिटनेस की निशानी है. मर्दों के लिए ऐब्स और मसल्स (abs and muscles) बनाना और औरतों के लिए एक आवरग्लास फिगर यानी 36-24-36 हासिल कर पाना लंबे अरसे से एक आइडीयल बॉडी टाइप माना गया है.
फिल्मों और विज्ञापनों के साथ-साथ हमने खुद ही इस धारणा को वक्त के साथ और सशक्त बनाया है. सहकर्मी दबाव और सामाजिक अपेक्षाएं उन व्यक्तियों को डिप्रेशन (depression) की ओर धकलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं जो मोटे होने या किसी स्वरचित आइडीयल बॉडी इमेज में फिट ना होने की वजह से पहले से ही स्ट्रेस (stress) से जूझ रहे होते हैं.
वास्तव में हर व्यक्ति के शरीर की रचना और उसकी मांगें अलग-अलग होती हैं. हमें दूसरों से ज्यादा खुद से प्यार करने की आवश्यकता है. यह समझना ज़रूरी है कि लक्ष्य बनाना और उसे हासिल करने के लिए मेहनत करना वाकई सराहनीय है, पर इस वजह से नहीं कि आप पहले से ही ‘परफेक्ट’ नहीं हैं.
वह इतना जंक खाती है, फिर भी फिट कैसे है?
इस बात को समझना ज़रूरी है कि वेट ट्रेनिंग (weight training) से वजन बढ़ता है. एक पतला इंसान 60 किलो का हो सकता है, यदि वह फिट है. वहीं एक मोटा व्यक्ति भी 60 किलो के वजन का हो सकता है. मांसपेशियों का वजन अच्छा वजन माना जाता है. यदि वजन वसा यानी फैट की वजह से बढ़ता जा रहा है, तब वह मोटापा कहलाता है.
मोटे या पतले होने में कोई दिक्कत नहीं है, इसलिए इन बातों को फिटनेस से ना जोड़ें. हां, यदि बहुत खाना खाने पर भी कोई अत्यधिक पतला हो, तो पेट में कीड़े होने की संभावना होती है. और यदि मोटापा बढ़ते-बढ़ते ओबेसिटी (obesity) बन जाए तो शारीरिक समस्याएं पनपने लगती हैं. इन दोनों ही परिस्थितियों में आप फिट नहीं कहलाएंगे.
स्वस्थ जीवन जीने के लिए भारी रकम चुकाना हमेशा ज़रूरी नहीं होता
फिर फिटनेस क्यों?
लंबे जीवन से ज्यादा ज़रूरी है स्वस्थ जीवन, और इन दोनों को ही कायम रखने के लिए आवश्यकता है एक स्वस्थ लाइफ स्टाइल फॉलो करने की. इसे एक विशेषाधिकार, यानी प्रिविलेज के रूप में भी देखा जा सकता है, जिसका लुत्फ़ कुछ चुनिंदा लोग ही ले पाते हैं. पर स्वस्थ जीवन जीने के लिए भारी रकम चुकाना हमेशा ज़रूरी नहीं होता.
आवश्यकता है समय और दृढ संकल्प की. रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में अपने लिए कुछ वक्त निकाल पाने की. अपने तन और मन को स्वस्थ रखने के लिए कई अमूल्य तरीके भी हैं, जिनकी शायद आपको तत्काल आवश्यकता महसूस ना हो, पर इन्हें अपनाने पर लोगों ने अपने जीवन में अक्सर एक सकारात्मक बदलाव पाया है.
क्या स्पॉट रिडक्शन संभव है?
वर्क आउट से जुड़े सभी मिथकों में सबसे बड़ा मिथक है स्पॉट रिडक्शन (spot reduction). स्पॉट रिडक्शन का मतलब है शरीर के किसी एक हिस्से से मोटापा कम कर देना. लोग पतली कमर चाहते हैं पर बाकी किसी अंग की एक्सरसाइज़ (exercise) नहीं करते. फिर शिकायत करते हैं कि एक्सट्रीम वर्कआउट के बावजूद बेली फैट नहीं घटा.
ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि यह संभव ही नहीं है. तोंद कम करने के लिए जितनी ज़रूरी पेट की एक्सरसाइज़ है, उतनी ही ज़रूरी है कमर, जांघ एवं कुंदों की एक्सरसाइज़. यह दुःख की बात है कि लोगों को लगता है कि कमर पतली हो तो वे फिट हैं. जबकि फिटनेस से इसका कोई संबंध नहीं है. शरीर का एक हिस्सा कैसा दिखता है, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि शरीर के बाकी हिस्से कैसे दिखते हैं.
फिटनेस क्या है?
स्वास्थ्य और तंदरुस्ती की स्थिति सामान्य फिटनेस के अंतर्गत आते हैं. शारीरिक फिटनेस व्यायाम, सही आहार और पर्याप्त अराम से हासिल किया जा सकता है. यदि आप बिना अधिक थकान के दिन भर की गतिविधियां पूरी कर पा रहे हैं और जल्दी जल्दी बीमार नहीं पड़ रहे, तो भी आप फिट कहलाने के योग्य हैं.
फिटनेस की ज़रूरत यूं तो हमें महसूस नहीं होती, परंतु थोड़ी सी सीढियां चढ़ने में भी जब सांस फूलने लग जाए, या मौसम बदलते ही बीमार पड़ने लगें, पाचन प्रक्रिया में दिक्कतें हों या अत्यधिक सुस्ती घेरे रहे, तो यह हिंट ले लेना चाहिए कि शरीर पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
महिला होकर वेट ट्रेनिंग?
जिम में प्रैक्टिस कर रही एक महिला ने बातचीत में बताया कि उन्हें यह कहने में गर्व से ज्यादा दुःख होता है कि वह अपने जिम की एकलौती महिला हैं. उन्होंने कहा, “शुरुआत में मुझे अजीब लगता था, पर अब नहीं. लोग अक्सर यह भी पूछते हैं कि यदि मैं पतली हूं, तो मुझे जिम जाने की क्या ज़रूरत है? उन्हें इस बात का डर भी है कि कहीं वजन उठाते-उठाते मैं मर्दों की तरह ना दिखने लग जाऊं. सच बताऊं तो जिम में मैं बहुत आम एक्सरसाइज़ ही करती हूं. फिट रहना चाहती हूं, जंक फ़ूड के बजाए घर का खाना खाती हूं, पैसे बचा पाती हूं, इसलिए जिम जाती हूं. पंजा लड़ाने में कुछ लड़कों को हरा लेती हूं, अच्छा महसूस होता है, इसमें कोई बुराई है क्या?”
कैसे रहें फिट?
फिटनेस की तरफ अग्रसर होना एक धीमी, क्रमिक विधि है जो रातों-रात संभव नहीं. फिट रहने के लिए हर रोज जिम जाना या महंगे फ़ूड आइटम्स ही अपने डाइट में शामिल करना हमेशा ज़रूरी नहीं होता. मशीनों पर कम से कम निर्भरता, अधिक पानी पीना, धूम्रपान का सेवन ना करना, समय और भूख अनुसार भोजन ग्रहण करना कुछ अच्छी आदतें हैं. बच्चों को तो आज से ही मोबाइल एवं वीडियो गेम्स से ज्यादा आउटडोर गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करें.
सामान्य तौर पर यदि आप एक ऐक्टिव लाइफ स्टाइल फॉलो करते हैं, तो अलग-अलग आसन करने एवं सीखने में ज्यादा वक़्त नहीं लगता. अपने फिटनेस लक्ष्यों को पूरा करने के लिए व्यावहारिक ताकत और मांसपेशियों को टोन करने की आवश्यकता होती है. इन व्यायामों में फैंसी एवं महंगे उपकरणों की भी ज़रूरत नहीं होती.
महिला हों या पुरुष, मस्क्युलर फिटनेस एवं स्ट्रेंथ (muscle fitness and strength) के लिए कुछ गिनी चुनी एक्सरसाइज़ नियमित रूप से घर में ही कर सकते हैं. यह व्यायाम शरीर के हर हिस्से को प्रभावित करते हैं. पुश-अप, स्क्वाट्स, लंजेस, बेंटओवर, क्रंचेस और बेंच प्रेस कुछ महत्वपूर्ण एक्सरसाइज़ हैं. डेडलिफ्ट (dead lift) उन अनोखे व्यायामों में से एक है जिससे शरीर के हर एक अंग पर प्रभाव पड़ता है. डेडलिफ्ट करने के अनेक तरीके हैं. इसमें से एक प्रचलित तरीका है हाथ में वेट उठाकर ऊठक बैठक करना. बेहतर और स्पष्ट जानकारी के लिए किसी फिटनेस ट्रेनर को संपर्क करें, अन्यथा कुछ भरोसेमंद वीडियो का सहारा लें.
कैसे चुनें सही फिटनेस ट्रेनर?
फिटनेस के लिए सिर्फ एक्सरसाइज़ करके पसीना बहाना काफी नहीं, सही तरीके से व्यायाम ज़रूरी है. एक सज्जन ने करीबन एक वर्ष घर में ही वर्क आउट (work out) किया. उन्होंने काफी फर्क महसूस किया परंतु जिम (gym) ज्वाइन करने पर उन्हें मालूम हुआ कि छोटी से छोटी गलतियां एक्सरसाइज़ के प्रभाव को कैसे कम या ज्यादा कर सकती हैं. हाथ ज़रा से ऊपर हुए तो किसी और अंग पर जोर पड़ने लगता है, ज़रा सा नीचे हुए तो किसी और अंग पर. डंबल पकड़ने के तरीके से लेकर, हाथ की एक्सरसाइज़ में पैर की पोजीशन तक बारीक से बारीक हरकतें मायने रखती हैं.
यदि आप फिटनेस को थोड़ा ज्यादा गंभीरता से लेना चाहें तो किसी अनुभवी व्यक्ति की सलाह एवं निगरानी की आवश्यकता पड़ेगी. अच्छे फिटनेस ट्रेनर आपके शरीर की आवश्यकताओं एवं आपकी क्षमताओं को समझ कर ही आपसे वर्क आउट करवाते हैं. वह समय-समय पर स्वास्थ्य संबंधी टिप्स देते रहते हैं, जिससे आप अपने जीवन में एक सकारात्मक बदलाव महसूस करते हैं. आप वर्क आउट किस समय करते हैं, आपके शरीर की क्या क्षमताएं हैं एवं आपके फिटनेस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ही वे आपको वर्क आउट से पहले एवं बाद में खाने की सलाह देते हैं. एक अच्छा ट्रेनर ये जानता है कि जो एक्सरसाइज एक क्लाइंट को सूट करेगी, ज़रूरी नहीं कि वो दूसरे क्लाइंट पर भी वैसे ही असर दिखाए.
किन बातों का रखें खास ख्याल?
खास कर सर्दियों में आलस्य के कारण लोग अपने फिटनेस प्लान का पालन नहीं कर पाते हैं. हालांकि जनवरी महीने में सबसे भारी मात्रा में जिम में सब्सक्रिप्शन हुआ करते हैं, पर अगले ही महीने से जिम में भीड़ कम नज़र आने लगती है. यदि आप कोई फिटनेस प्लान बनाते हैं, और अपने लक्ष्य को लेकर गंभीर हैं, तो समयनिष्ठा एवं धीरज अतिआवश्यक हैं.
अपने इंस्ट्रक्टर का सम्मान करें, और जिम में जुबां से ज्यादा हाथ पैर चलाएं. ये ना भूलें कि आप जिम में एक्सरसाइज़ करने आते हैं, फैक्ट्री में मजदूरी करने नहीं. ये समझना जरूरी है कि यदि आप सप्ताह में दो दिन घंटों व्यायाम करते हैं, और पांच दिन आराम करते हैं, तो आपको इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा. वहीं अगर दूसरी तरफ आप पांच दिन आधे से एक घंटा भी व्यायाम कर लें तो फायदा ज्यादा होता है.
क्या स्ट्रेचिंग ज़रूरी है?
वर्क आउट से पूर्व वार्म-अप अति आवश्यक है. वार्म-अप में कार्डियो (cardio) के साथ स्ट्रेचिंग (stretching) भी लाभदायक होती है. इससे चोटों की रोकथाम होती है. सिर्फ वर्क-आउट से पूर्व ही नहीं, वर्क आउट के दौरान भी थोड़ी बहुत स्ट्रेचिंग करते रहना एक अच्छा सुझाव है.
यदि आप वेट ट्रेनिंग नहीं कर रहे हों तो भी स्ट्रेचिंग आपके शरीर को लचीलापन प्रदान करता है. स्ट्रेचिंग नर्तकियों एवं खिलाड़ियों के लिए तो आवश्यक है ही, रोजमर्रा की ज़िन्दगी में कमर दर्द इत्यादि से छुटकारा पाने के लिए भी लाभदायक है.
कई बार जिम ट्रेनर्स मशीनों पर एक्सरसाइज़ शुरू कराने से पहले कई दिन सिर्फ वार्म-अप एवं कार्डियो ही करवाते हैं. इसका कारण यह है कि स्ट्रेंथ एवं एंड्योरेन्स बढ़ा कर, वह आपके शरीर को वेट ट्रेनिंग के लिए तैयार करते हैं. शुरुआत में ही वह आपकी क्षमताओं को परख लेते हैं और उसी हिसाब से आपके लिए एक्सरसाइज़ का चुनाव करते हैं. यही वजह है कि कभी पहले हफ्ते में ही कुछ लोग पुल-अप्स इत्यादि करने लग जाते हैं, और कुछ लोग महीने भर बाद भी पुश-अप्स (push ups) तक करने में दिक्कत महसूस करते हैं.
यह पूरी तरह से नार्मल है, और अपने शरीर की क्षमताओं का ध्यान रखते हुए ही स्टेप-बाय-स्टेप आगे बढ़ना चाहिए. जिम के साथियों को अपना कंपटीटर ना समझें. आप कितने ही बड़े वेट लिफ्टर क्यों ना बन जाएं, स्ट्रेचिंग जैसे बेसिक्स लाभदायक होते ही हैं.
पीरियड्स के दौरान व्यायाम करें या नहीं?
बड़े से बड़े फिटनेस एक्सपर्ट्स की सलाह मानें तो पीरियड्स के दौरान व्यायाम करने में कोई बुराई नहीं है. हर महिला का शरीर एवं उसकी क्षमताएं अलग हैं. यदि आप नियमित रूप से व्यायाम करती आई हैं, तो आप यह महसूस करेंगी कि पीरियड्स के दौरान पहले के अपेक्षाकृत दर्द और तकलीफ कम हो जाती हैं. यदि ऐसा नहीं होता, तो निःसंदेह अराम कर सकती हैं. यदि पीड़ा अधिक ना हो तो, पैरों और पेट के व्यायाम के अलावा बाकी सभी व्यायाम सामान्य तरीके से किए जा सकते हैं. खुद को ओवरस्ट्रेस ना करें, और चाहें तो बाकी दिनों के मुताबिक़ वेट्स हलके उठाएं. सुविधानुसार कार्डियो एवं जंप करने वाले व्यायाम टाले जा सकते हैं. गत वर्षों में चीनी स्विमर फू युआनहुई एवं ब्रिटेन की एथलीट लॉरा ट्रॉट जैसी कई महिला खिलाड़ी और कलाकारों ने पीरियड्स के दौरान सिर्फ परफार्म ही नहीं किया बल्कि खुल के इसपर चर्चा करती भी नज़र आईं. यह बिलकुल सामान्य बात है और इसे वर्क आउट के मामले में भी इससे सामान्य तरीके से ही डील किया जाना चाहिए.
प्रोटीन शेक से हार्ट अटैक?
जिम से जुड़े सवालों एवं मिथकों में शायद हर दूसरा सवाल प्रोटीन शेक (protein shake) से जुड़ा होता है. इसे कौन, किस उम्र में, कितनी मात्रा में, कितने बार ले सकते हैं, इसके साइड इफेक्ट्स, और इससे जुड़ी उलझनों की सूची काफी लंबी है. जितने जोर शोर से इसकी निंदा करते नहीं थकते लोग, वहीं दूसरी ओर, इसके समर्थकों की भी कोई कमी नहीं है.
प्रोटीन शेक से जुड़ी ऐसी खबरें भी आईं हैं कि यह अंदरूनी और्गंस (internal organs) को इस तरह इफेक्ट करता है कि इससे दिल का दौरा भी पड़ सकता है. वहीं प्रोटीन शेक का सेवन करने वालों का कहना है कि यदि सही मात्रा में सही तरीके से इसका सेवन किया जाए तो शरीर पर इसके कोई दुष्प्रभाव नहीं होते.
अक्सर हमारे खाने में प्रोटीन की कमी से कई समस्याएं हो सकती हैं. खास कर भारत की बात करें तो अधिकतर राज्यों में एक आम इंसान अपनी ज़रूरत की तुलना में काफी कम प्रोटीन ले पाता है. यदि आप वर्क आउट करते हैं, तो आपके शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता भी बढ़ जाती है. ऐसे में अच्छे प्रोटीन शेक्स मददगार होते हैं.
यदि आप वेगन (vegan) हैं, तो ये एहसास करेंगे कि वेगनिस्म अफोर्ड कर पाना कितना भारी पड़ सकता है. अपने ट्रेनर से आपसी सहमती कर एवं अपनी चॉइस के अनुसार अपना प्रोटीन शेक चुन सकते हैं. आपके वजन और वर्क आउट को ध्यान में रखते हुए आपके ट्रेनर प्रोटीन शेक लेने की मात्रा एवं तरीका बता सकते हैं. इसे दूध के बजाए पानी के साथ पीएं, एवं बहुत अच्छे से मिलाएं ताकि कोई गांठे ना रह जाएं. ऐसा करने से यह आसानी से डायजेस्ट हो जाता है. ध्यान रखें, ज्यादा प्रोटीन लेने से ज्यादा बॉडी नहीं बनती. सही मात्रा, सही तरीका, सही समय – इन सभी की भूमिका होती है.
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जानकारी भी, समझदारी भी. यही है भारत बोलेगा न्यूज़ वेबसाइट भारत बोलेगा डॉट कॉम की टैगलाइन. भारत बोलेगा कांसेप्ट वर्ष 2009 में विकसित हुआ और अब यह एक वेबसाइट के रूप में उभर कर सामने आया है. मकसद है कि आप तक सही जानकारियां बेधड़क पहुंचें. देश में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा हो.