माना कि सबसे नाज़ुक रिश्ता है डॉक्टर और मरीज़ का, साथ में ये सबसे भरोसे वाला भी कहलाता है. एक अहम बात ये भी है कि इस रिश्ते के कुछ उसूल होते हैं जो हम सभी को निभाने चाहिए. इन बातों का जरूर रखें ध्यान:
जानकारी व सहमति
मरीज़ को पूरी सूचना मिले इसका ध्यान डॉक्टर को रखना है. कैसे इलाज होगा, कब होगा, कौन करेगा और उसके बाद क्या-क्या होगा, ये सब बताना ज़रूरी होता है. कुछ चीजें साफ़ होती हैं बिना कहे, जैसे – जांच के दौरान शर्ट ऊपर करना और सुई लगने के समय हाथ आगे करना.
बहुत से मरीज़ बीमारियों में इंटरनेट का सहारा लेते हैं, अपनी बीमारी को समझने के लिए. हमारे देश में लोग डॉक्टरों से सवाल करने से घबराते हैं और दोस्तों और रिश्तेदारों का सहारा लेते हैं. दूसरी तरफ लगभग सारे डॉक्टर काम के बोझ के मारे होते हैं और वे मरीज व उनके रिश्तेदारों के प्रश्नों का उतर नहीं दे पाते.
ध्यान रहे कि मरीज़ की मेडिकल कंडीशन की पूरी जानकारी डॉक्टर को अनिवार्य रूप से मालूम होनी ही चाहिए, चाहे मरीज़ के द्वारा या उसके सगों से.
मरीज़ का सहयोग
कुछ ऐसे मामले भी होते हैं जिनमें इलाज के कई तरीके हो सकते हैं और उनमें से एक तरीका चुनना मरीज़ के हाथों में होता है. ऐसे मामलों में डॉक्टर और मरीज़ साथ-साथ फैसला लें तो बेहतर होता है. यहां डॉक्टर की जिम्मेदारी बढ़ जाती है क्योंकि उन्हें इलाज का सबसे अच्छे रास्ता भी सुझाना पड़ता है.
रोग व जीवन-मृत्यु
कई बार डॉक्टर और मरीजों को ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता है जहां जीवन-मृत्यु का प्रश्न हो. ऐसे में बेहद नरमी से पेश आना पड़ता है. मरीज़ इस तरह की बुरी ख़बर को आसानी से नहीं संभाल पाता. इन परिस्थितियों में मरीज़ और उसके रिश्तेदार दोनों कई दौर से गुज़रते हैं, जैसे इनकार, क्रोध, मोलभाव, अवसाद और अंत में स्वीकृति.
बुरी खबर को स्वीकारना भी आसान नहीं होता है. दूसरी ओर ज्यादातर डॉक्टर ऐसे संगीन मुद्दों को संभालने के लिए कोई भी प्रशिक्षण प्राप्त नहीं कर पाते हैं.
मामला ख़राब हो जाए तो रिश्तेदारों को एक कंधा और एक निशाना चाहिए होता है, दागने के लिए. और अक्सर ये निशाना होता है डॉक्टर या अस्पताल.
मरीजों के लिए आवश्यक
डॉक्टर से मिलने के लिए अपने साथ एक रिश्तेदार को भी ले जाएं और अपने सारे प्रश्न लिखकर ले जाएं. अपने डॉक्टर पर भरोसा करें. खुल कर बीमारी का बखान करें और इलाज की प्रक्रिया को अच्छे से समझें. मेडिकल केयर आजकल एक सर्विस है जो मरीज़ खरीदता है. और ये मरीजों का हक है कि उनको इज्ज़त के साथ अच्छी सर्विस भी मिले.