प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के दो साल पूरे होने पर साउथ एशिया स्टडीज प्रोजेक्ट के निदेशक तुफैल अहमद ने उन्हें एक खुला पत्र लिखा है. पेश है उस पत्र के कुछ अंश.
“मैं उस समस्या की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ जो कभी भारतीय सभ्यता में थी ही नहीं. अपने भारत भ्रमण के दौरान लगभग हर जगह मैंने बस स्टॉप, रेलवे स्टेशन, मार्केट, रेस्टोरेंट के बाहर और सड़क के बीच ट्रैफिक लाइट्स पर हाथ फैलाए बच्चे, बच्चियां, महिलाएं, पुरुष, अपाहिजों को भीख मांगते देखा है.
मेरा दिल उस समय कराहने लगता है जब मैं उन्हें फटे-चिथड़े कपड़े, नंगे पैर कुछ सिक्कों के लिए, खाली पेट दो रोटी के लिए हाथ फैलाते देखता हूँ. किस तरह ये बच्चे विदेशियों और देशी बाबुओं की कार के आगे अपने पिचके पेट और लार टपकते मुंह को दिखाते हैं, दया आनी तो स्वाभाविक है.
सिर्फ और सिर्फ गरीबी के कारण यह हाथ नहीं फैलाते हैं. बच्चों को भिखारी बनाकर पैसा कमाने का एक पूरा संगठित अपराध उधोग खड़ा हो चुका है.
पिछले सात दशकों से भारतीय अमीर, नौकरशाह (सरकारी बाबू), तथाकथित बौद्धिक और बड़े अखबारों और टीवी चैनलों के संपादक, जो कान्वेंट स्कूल में पढ़कर, सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़कर बड़े साहब बने हैं, वो भी इसी हाशिए के समाज या कहें आखिरी विपन्न आदमी के साथ रहते हैं, लेकिन उनका जमीर कभी यह नहीं कहता है कि इस हाशिए के लोग या आखिरी विपन्न आदमी के बेहतरी के लिए कुछ लिखा जाए या कुछ करा जाए.
अब जब आप प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं और खास बात यह है कि आपने यह मुकाम नीचे से ऊपर उठकर हासिल किया है तो हमारे लिए यह एक खास मौका है कि आपसे इस दिशा में सक्रिय हस्तक्षेप कर हमेशा के लिए भारत को भिखारी मुक्त करने की अपील कर सकूं.”
बहरहाल, पेट के लिए भीख मांगने की परंपरा और संस्कृति कभी भी भारतीय सभ्यता की पहचान नहीं रही है.