तमिलनाडु और गुजरात से लोक सभा चुनाव 2019 के दौरान विभिन्न एजेंसियों ने सबसे ज्यादा नकदी व शराब की बरामदगी की है.
देश भर में प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा 3370 करोड़ रुपये की नकदी, शराब, ड्रग्स, नशीले पदार्थ, कीमती धातुएं और मुफ्त में बांटे जाने वाले सामान जब्त किए गए हैं.
बरामदगी के विश्लेषण से पता चलता है कि तमिलनाडु में अधिकतम 945 करोड़ रुपये की नकदी और सामान जब्त किए गए, जबकि गुजरात से 545 करोड़ रुपये की जब्ती की सूचना मिली.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से इस अभियान के दौरान 418 करोड़ रुपये की नकदी और सामान बरामद हुए.
इस विषय पर भारत का चुनाव आयोग विभिन्न मीडिया के माध्यम से लोगों को सचेत करता रहा है.
चुनाव आयोग के अनुसार, 7 मई 2019 तक कुल बरामदगी की रिपोर्ट 3370 करोड़ रुपये की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने मांगा विवरण
दिलचस्प बात यह है कि चुनाव आयोग के पास पिछले लोक सभा चुनाव 2014 के दौरान किए गए बरामदगी के मामलों से संबंधित कोई प्रासंगिक डाटा नहीं है.
तो उन छापों, बरामदगी, धन और मामलों का विवरण किसके पास है?
मामलों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के विवरण प्रस्तुत करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया है.
शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग द्वारा दर्ज की गई बेहिसाब नकदी के मामलों की पूरी सूची की स्थिति रिपोर्ट तलब की है.
चुनावों के दौरान नकद, शराब व कीमती सामान वोटर को लुभाने के लिए मुफ्त में दिए जाते रहे हैं जिसके खिलाफ चुनाव आयोग लोगों को सतर्क करता भी है.
पकड़े जाने पर दोषियों के खिलाफ मुक़दमे दर्ज किए जाते हैं. लेकिन चुनाव के बाद उन मामलों का क्या होता है – यह एक बड़ा सवाल है.
एक तर्क यह हो सकता है कि चुनावों के दौरान छापेमारी करने वाले सभी अधिकारी चुनाव के बाद अपने नियमित काम पर वापस लौट जाते हैं. ऐसे में कौन उन मामलों की पैरवी करे?
तो फिर, चुनाव आयोग द्वारा पैसे, शराब या मुफ्त में बंटने वाले सामान की धड़पकड़ होती ही क्यों है?