गुरमेहर कौर कॉलेज की एक लड़की है. उससे डरने की क्या जरूरत है? लेकिन देश के मंत्री तक अपने वफादारों के साथ मिलकर गुरमेहर को चुनौती के लिए ललकार रहे हैं.
भारत-पाक शांति की कई कोशिशें होती रही हैं. प्रधानमंत्री स्तर से लेकर अमन की आशा जैसे संगठन द्वारा भी. हमारे एक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तो बस में बैठ कर लाहौर गए थे.
एक और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिना पूर्व सूचना के ही एक हाई-लेवल शादी अटेंड करने पहुंच गए थे. वह भी क्या सरप्राइज था…!
अगर शांति, अमन और भाईचारे की ये कोशिशें सही हैं तो कॉलेज की एक छात्रा गुरमेहर कौर की कोशिश गलत कैसे कही जा सकती है? दोनों देशों की बीच दुश्मनी पनपती रहे, ऐसा कौन चाहता है?
जो बातें गुरमेहर कह रही है वही अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कहें या अमन की आशा जैसे शांति के संदेश फैलाने वाले आयोजक कहें तो प्रशंसा की जाएगी.
लेकिन, गुरमेहर ने चूंकि सत्ताधारी बीजेपी के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् को निशाना बनाया है इसलिए इस लड़की पर संख्या में लोग टूट पड़े हैं.
गुरमेहर का गुनाह ये है कि उसने मौत के वजहों की बात की है. इन वजहों को जंग के यतीमों, अनाथों और विधवाओं से ज्यादा कौन जान सकता है जिन्होंने सियासी लड़ाई में परिवार उजड़ते देखे हैं.
सूझबूझ से लबालब और दार्शनिक जैसा दिखने वाले लोग भी गुरमेहर की इस बात से खफा हैं कि उसने तंज में अपने शहीद पिता को जोड़कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की.
गुरमेहर ने अगर रातों रात प्रसिद्द होने के लिए अपने शहीद पिता का नाम इस्तेमाल किया तो अब क्या कोई ऐसा नेता है जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम भुनाने की कोशिश नहीं की है?
गुरमेहर को मीडिया में काफी तरजीह मिली चूंकि देश लगातार चुनावी माहौल में बना हुआ है. इस संदर्भ में आए दिन राष्ट्रभक्ति और अंध राष्ट्रभक्ति का दौर चलता रहता है.
फ्रीडम ऑफ स्पीच का विरोध करते हुए लोग भजन-कीर्तन और कव्वाली-रॉक से भी ऊपर उठ जाते हैं, और तब शुरू होता है फ्रीडम ऑफ वायलेंस.
ऐसे लोगों के गले में घंटी बांधना समय की मांग है ताकि इन्हें हिंसा करने की स्वतंत्रता नहीं मिल सके.