सबसे पुराना अनशन खत्म

एक नौजवान लड़की, उसकी निजी हसरतें रही होंगी. उसने जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण साल एक संघर्ष को दे दिए. हिंदुस्तान अख़बार के संपादक शशि शेखर कहते हैं, आज़ादी शब्द के अर्थ-अनर्थ का असली मतलब समझना है, तो इरोम शर्मिला के सफरनामे को गौर से परखिए.

मणिपुर में 1980 से लागू कानून आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (अफ्स्पा) के खिलाफ इरोम शर्मिला ने नवंबर 2000 में आमरण अनशन शुरू किया था. आयरन लेडी के नाम से मशहूर मणिपुर की यह महिला जब तक आमरण अनशन करती रहीं, तब तक जो सवाल उठे उनका जवाब न तो सरकार के पास था न जनता के पास.

इरोम द्वारा अनशन शुरू करने का तात्कालिक कारण था अफ्स्पा के अंतर्गत प्राप्त अधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुरक्षा बलों द्वारा कथित रूप से मणिपुर की राजधानी इम्फाल में बेकसूरों की हत्या. इतने वर्षों से यह मुद्दा लगातार सुर्खियों में है. लेकिन मणिपुर सरकार से लेकर केंद्र तक ने इरोम अनशन को देश के अन्य हिस्सों में होनेवाले अनशन के रूप में नहीं लिया.

यदा-कदा ही यह मामला कभी संसद में गूंजा. केंद्र सरकार और राज्य सरकार की मानें तो अलगाववादी तथा उग्रवादी हिंसा पर काबू पाने के लिए अफ्स्पा लागू किया गया है. पूर्वोत्तर राज्यों में सबसे ज्यादा हिंसाग्रस्त राज्य मणिपुर है, जहां दो दर्जन से ज्यादा उग्रवादी संगठन हिंसा की बदौलत आत्मनिर्णय का अधिकार हासिल करने पर अड़े हैं.

ऐसे में, सिर्फ हिंसा पर भरोसा करने वाले मणिपुरियों के बीच से एक महिला का शांति और अहिंसा का रास्ता अपनाना जितनी बड़ी बात होनी चाहिए वैसी बनी नहीं.

Irom Sharmila
इरोम शर्मिला

अपने ही देश की सरकार और कानून के खिलाफ 16 साल तक अनशन करने की दूसरी मिसाल दुनिया में और कहां मिलती है?

अपने संघर्ष को जारी रखते हुए, इरोम शर्मिला ने 2016 में नौ अगस्त को ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दिन यह कहकर अनशन तोड़ा कि अब वे अपने राज्य को अफ्स्पा से मुक्त कराने के लिए सक्रिय राजनीति में आएंगी.

70वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के दिन लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उग्रवादियों को मुख्यधारा में शामिल होने के लिए कह रहे थे और स्वराज्य को सुराज में बदलने का एलान कर कर रहे थे.

लेकिन उनकी सरकार ने दो साल में पूर्वोत्तर की विकास योजना बनाने के समय इस बात की समीक्षा करने की जरूरत नहीं समझी कि अफ्स्पा लागू रखना जरूरी है या नहीं.

समझने की जरूरत है की पूर्वोत्तर के युवाओं को भारतीय मुख्यधारा से जुड़ने में यही अफ्स्पा कानून बाधक है. कहते हैं, लोग वहां सेना से आतंकित हैं और इसलिए उग्रवादी ही उन्हें अपने लगते हैं.

Shashi Shekhar
अगर इरोम अपने नए इरादे में सफल हो जाती हैं, तो यह हिन्दुस्तानी राजनीति में बदलाव का अहम मोड़ साबित होगा. – शशि शेखर, संपादक, हिंदुस्तान.

अन्याय और उत्पीड़न का प्रतीक बने अफ्स्पा के खिलाफ साल 2000 में जब इरोम शर्मिला ने अनशन शुरू किया, तब केंद्र में बीजेपी की सरकार थी.

आज जब इरोम ने अनशन तोड़ा है, तब भी केंद्र में बीजेपी सरकार है. इतना तो स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी सबसे पहले पूर्वोत्तर में सत्ता परिवर्तन चाहते हैं. असम में बीजेपी की सरकार बनने के बाद उनकी नजर अब मणिपुर पर है.

बहरहाल, इरोम शर्मीला के अनशन तोड़ने से विश्व का सबसे पुराना अनशन खत्म हो गया है. पर ध्यान रहे, उनका आंदोलन जारी है.

वह तथाकथित खूनी अफ्स्पा को उखाड़ फेंकने के लिए अपने राज्य मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं जिसके लिए वह निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ेंगी.

उन्हें 20 ऐसे नौजवानों की दरकार है, जो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर चुनाव लड़़ें और जीतें.


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