प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 3 मई, 2020 तक लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा की है. इससे पहले किया गया 21 दिनों का लॉकडाउन 14 अप्रैल, 2020 को समाप्त होने वाला था. अतः अप्रैल 14 को ही फिर एक बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपना वीडियो संदेश लेकर घर-घर पहुंचे.
मोदी की घोषणा पर सुनें दिल्ली से चंदन कुमार चौधरी का यह पॉडकास्ट
बहरहाल, जिनके पास घर हैं, घर में टीवी है, इंटरनेट सुविधाएं भी हैं, और जिनके पास सुविधाओं का भुगतान करने की क्षमता है, उन तक तो प्रधानमंत्री पहुंच ही गए.
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के उद्देश्य से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कई राज्यों, विशेषज्ञों और लोगों के सुझावों को ध्यान में रखते हुए ही लॉकडाउन बढ़ाने का निर्णय लिया गया है.
प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार 24 मार्च को रात 8 बजे राष्ट्र को संबोधित करते हुए कोरोनावायरस की वैश्विक महामारी को रोकने के लिए पूरे देश में कर्फ्यू-जैसा लॉकडाउन लगाया था.
लॉकडाउन बढ़ाने के लिए किया गया संबोधन लगभग 25 मिनट का था जबकि 24 मार्च को पहली बार राष्ट्र को दिया गया संबोधन लगभग 30 मिनट का था.
प्रधानमंत्री का नया संदेश भी भाषण से ही भरा था. प्रतीत हुआ जैसे प्रधानमंत्री किसी भी पीड़ित वर्ग का ज़िक्र भूलना नहीं चाहते थे. अपने पूर्व के वीडियो संदेशों की तरह ही उन्होंने पीड़ितों के लिए परेशानी ज़ाहिर की, पर उनकी समस्याओं का समाधान बताना भूल गए.
उन्होंने कहा कि कैसे इस विकट समय में दूसरों से तुलना करना सराहनीय नहीं है, पर अगले ही वाक्य में वे खुद भारत की तुलना अन्य देशों से कर बैठे.
एजेंडा फिर वही रहा – कैसे जताएं कि उन्हें सभी का ख्याल भी है, और बिना उनके लिए कुछ किए वे सही भी हैं.
अगर प्रधानमंत्री के पिछले कुछ भाषणों को सुना जाए, तो यह सोची-समझी तकनीक वे बार-बार अपनाते नज़र आए हैं. वे दुःख तो जताते हैं, लेकिन फिर लेकिन-किन्तु-परन्तु कर मुद्दे से हट भी जाते हैं.
धयान से देखें तो प्रधानमंत्री के भाषण में एक और पैटर्न दिखता है, जहां वे मंद स्वर में यह भी कह जाते हैं कि वे कुछ नहीं कर रहे, और जनता यह सुन लेती है कि मोदी जी सबके हित में ही सभी कुछ करते हैं.
चाहे शाम 5 बजे थाली बजवानी हो, या 9 बजे रात में दीया जलाना, या फिर ज़रूरतमंदों को खाना खिलाना, सभी गतिविधियां भोली और संपन्न जनता के नेक नीयत का प्रतीक हैं.
ऐसा करने पर वह जनता खुद पर गर्व भी महसूस करती है, और यह भी सोचती है कि मोदी सरकार ने इन अच्छे कर्मों से सभी को एक कर दिया.
गौरतलब है कि इसी जनता ने साल भर टैक्स भी भरा और अब पीएम केयर या रिलीफ फंड में दिल खोल कर दान भी दे रही है.
लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ाने की सूचना देने से पहले प्रधानमंत्री अनेक तरीकों से यह समझाने की कोशिश करते भी नज़र आए कि इस कोरोनावायरस महामारी के दौरान वह जो करते आए हैं, वही सही है.
उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि जो वे आगे करेंगे वह भी केवल उनकी मर्ज़ी नहीं होगी बल्कि जनता के अनुरोध का ही नतीजा होगा.
तो क्या 14 अप्रैल का प्रधानमंत्री का वीडियो संदेश लॉकडाउन बढाए जाने की घोषणा का कवर-अप था – डिस्क्लेमरों से भरा एक असंवेदनशील मज़ाक!
भारत बोलेगा यह जानना चाहता है कि प्रधानमंत्री जिन गरीबों की स्थिति बेहतर करने के ‘हर संभव प्रयास’ में जुटे हैं, वे प्रयास क्या हैं.
जब प्रधानमंत्री कहते हैं कि देश में अन्न आदि का ‘पर्याप्त भंडार’ है, तो भारत बोलेगा यह जानना चाहता है कि इस भंडार की चाभी किसके पास है?
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में गुजारिश की कि जनता सात बातों में उनका साथ दे- बुज़ुर्गों का ख़ास ख्याल रखें, लॉकडाउन के नियमों का पालन करें, आयुष मंत्रालय द्वारा जारी की गई जानकारी से अपनी इम्युनिटी का ख्याल रखें, आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करें, गरीबों का ख्याल रखें, किसी से रोज़गार ना छीनें, और पुलिस, डॉक्टर आदि कर्मचारियों का सम्मान करें.
जनता से सात बातों में सहयोग मांगकर, जब देश के प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि ‘यह सप्तपदी, विजय प्राप्त करने का मार्ग है’, तो भूख और बेरोज़गारी से परेशान जनता क्या नहीं समझेगी कि वे किसकी विजय की बात कर रहे हैं!