पुलवामा हमले के बाद

कश्मीर के पुलवामा में 40 भारतीय मारे गए. उन्हें आत्मघाती हमले में निशाना बनाया गया. वे सभी केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के सैनिक थे. वे छुट्टियां मनाकर ड्यूटी पर लौट रहे थे जब उन्हें रास्ते में ही आत्मघाती हमले में उड़ा दिया गया.

एक झटके में 40 जवान शहीद. कितना शक्तिशाली हमला था वह? कैसे हुआ यह सब? किसने किया यह हमला, और अब क्या होगा? गृह मंत्री राजनाथ सिंह पर सबसे ज्यादा दबाव दिख रहा है. उनके साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, गृह सचिव राजीव गउबा और इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक राजीव जैन पुलवामा हमले की बारीकियों को समझने में लगे हैं.

The Union Home Minister, Shri Rajnath Singh chairing a meeting of floor leaders of political parties in both houses of parliament, to hold consultations in the wake of the Pulwama attack, in New Delhi on February 16, 2019.

जिन परिवारों के सदस्य शहीद हुए हैं, वे हर क्रंदन पर प्रलय सोचने को मजबूर हैं. सुरक्षा से किसी भी तरह का संबंध रखने वाले लोग ‘स्टेट ऑफ़ शॉक’ में हैं. यहां कूपर्स कलर कोड का विश्लेषण ज़रूरी है.

क्या है कूपर्स कलर कोड

कूपर्स कलर कोड जेफ़ कूपर द्वारा रचित एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जिसका उपयोग सशस्त्र होने या ना होने- दोनों ही स्थितियों में उचित होता है.

कंडीशन वाईट में, आप तनावमुक्त रहते हैं और इस बात से अनजान रहते हैं कि आपके आसपास क्या चल रहा है. आदर्श रूप से, एक पुलिस अधिकारी केवल सोते समय ही कंडीशन वाईट में होता है.

कंडीशन येलो में आप तनावमुक्त रहते हैं, लेकिन इस बात से अवगत होते हैं कि आपके आसपास कौन और क्या है. इस स्थिति में यदि हमला होता है, तो उसका जवाब कुछ हद तक पूर्व निर्धारित होना चाहिए.

कंडीशन औरेंज में कुछ ऐसी चीज़ों की पहचान शामिल है जो खतरे के रूप में साबित हो सकती हैं. इस हालत में एक हमलावर का सामना करने के लिए तैयार रहें.

कंडीशन रेड में आपका ध्यान संभावित खतरे के बजाए संभावित लक्ष्य पर होता है. इस स्थिति में हथियारों के साथ या बिना रक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार होना ज़रूरी है.

कुछ प्रशिक्षक काले रंग का उपयोग पूरी तरह से घबराहट के माहौल का वर्णन करने के लिए भी किया करते हैं, जबकि कूपर्स कलर कोड इस स्थिति को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

सुरक्षा से जुड़े अधिकारी क्यों हैं हैरान

पुलवामा का आतंकी हमला एक अनोखी घटना है. यह अनोखी घटना इसलिए है कि किसी भी एंगल से देखा जाए तो अबतक ऐसा नहीं हुआ था, जैसा पुलवामा में हुआ है.

भारत में पाकिस्तान-समर्थित आतंकवाद पिछले तीन दशकों से जारी है. इस दौरान भाड़े के आतंकियों से लेकर पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई ने कश्मीर में या फिर भारत के किसी अन्य जगह वह तरीका कभी नहीं आपनाया जो 14 फ़रवरी को पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में आजमाया गया.

विस्फोटकों से भरी एक मोटर कार के सुरक्षाबलों के एक काफिले में चल रही एक बस से टकराने से बड़ा धमाका हुआ, जिसे कई किलोमीटर दूर तक सुना गया. ऐसा पहली बार हुआ जब एक आत्मघाती आतंकी ने विस्फोटकों से भरी गाड़ी को सैनिकों की गाड़ी से जा दे मारी.

इस घटना की जिम्मदारी लेने वाले संगठन जैश-ए-मोहम्मद के अलावा लश्कर-ए-तैयबा सहित अन्य आतंकी संगठनों ने आत्मघाती हमले किए हैं जिनमें विस्फोटकों से भरी गाड़ियां किसी गेट या इमारत से टकराई हैं या फिर किसी आतंकी ने अपने शरीर में विस्फोटक बांधकर आत्मघाती कारनामों को अंजाम दिया है. लेकिन, पुलवामा हमले में आतंकियों ने विस्फोटक सामग्रियों से भरी गाड़ी को जिस तरीके से सुरक्षाबलों के वाहन से टकराकर भारी नुकसान पहुंचाया है, उससे समूचे सुरक्षा तंत्र की नींद उड़ गई है.

आतंकी हमला खुफिया विभाग की विफलता

अमूमन लाइन ऑफ एक्शन पर यानी लड़ते-लड़ते सैनिक शहीद होते हैं. जब एक सैनिक अपने दुश्मनों से लड़ रहा होता है, या जब वह किसी ऑपरेशन में होता है तो अलर्ट रहता है, पूरा चौकन्ना होता है.

अलर्ट रहने के भी कई स्टेज होते हैं. वह लगातार 24 घंटे चौकन्ना रहता है या फिर सिर्फ अपनी ड्यूटी के दौरान. लंबे ऑपरेशन में वह कई दिन तक लगातार चौकन्ना बना रहता है.

लेकिन, पुलवामा में तो सैनिक अपने-अपने घरों से छुट्टियां काटकर श्रीनगर के लिए बसों में रवाना थे. किसी को कोई इल्म नहीं रहा होगा कि जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर क्या हादसा उनका इंतज़ार कर रहा है. जब इस तरह सैनिक मूवमेंट होता है या कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति या काफिला किसी मार्ग से गुजरने वाला होता है तब रोड ओपनिंग पार्टी (आरओपी) घंटों पहले से सड़क के दोनों ओर व रास्ते में आने वाली पुलिया-पुल-नाले की टोह लेकर हरी झंडी देती है.

पुलवामा घटना के बाद अब सुरक्षा इंतज़ाम में लगे व्यक्तियों के लिए बड़ी चेतावनी है कि आम नागरिकों व गाड़ियों के परिचालन पर वे कैसे नज़र रखेंगे.

सुरक्षा तंत्र को यह भी नहीं पच रहा कि आत्मघाती हमला करने वाला व्यक्ति पुलवामा का स्थानीय नागरिक बताया जा रहा है. आतंकवादी संगठन अब तक पाकिस्तानी नागरिक या भाड़े के विदेशी का इस्तेमाल कर आत्मघाती हमले करते रहे हैं, चाहे वह नई दिल्ली में संसद पर हुआ हमला हो या मुंबई आतंकी हमला.

पुलवामा के बाद क्यों बढ़ा गुस्सा

जम्मू कश्मीर में ख़ास तौर पर आतंकी घटनाएं होती रहीं हैं. कभी एक, कभी दो तो कभी उरी जैसी घटनाओं में 16 लोग मारे गए. देश तब भी आतंक के विरूद्ध लड़ाई तेज करने और सीधे तौर पर पाकिस्तान पर आक्रमण करने की बातें करता रहा है.

पुलवामा का आतंकी हमला 40 सैनिकों को निहत्था शहीद कर गया. ये 40 शहीद देश के अलग-अलग जगहों के नागरिक थे. नतीजतन शहीदों का शव पूरे देश में जगह-जगह जब पहुंचा तो हर किसी को यह घर-घर की कहानी लगी. देखते-देखते देश भर में पहले मातम और फिर गुस्सा फैल गया.

एक सवाल यह है कि इतनी बड़ी मात्रा में बारूद कहां से आया और उसे कैसे हैंडल किया गया. दूसरा सवाल उठता है कि हमारे जवान आम बसों पर क्यों सवार थे. और अंत में घूम-फिर कर यह भी सवाल उठता है कि जिस आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा हमले की ज़िम्मेदारी ली है उसका सरगना मौलाना अजहर मसूद अब तक क्यों खुला घूम रहा है.

पुलवामा की घटना को अंजाम देने के बाद आतंकियों के मंसूबे और बढ़ गए होंगे. लेकिन, भारतीय नेतृत्व पुलवामा हमले के बाद अचूक तैयारियों के साथ कई अभियान चला सकता है, ताकि आतंक, आतंकियों व सीमा पार से जारी भारत विरोधी अभियानों की नई चुनौती से मुकाबला किया जा सके, उनका यथोचित जवाब दिया जा सके.

बहरहाल, विभिन्न पक्ष बदला-बदला जैसी मांग जितनी ज्यादा करेंगे, सरकार के लिए दोषियों को सबक सिखाना उतना ही दुश्वार होता जाएगा. एक सरकारी अधिकारी समझदारी बरतने की बात करते हुए कहते हैं कि लोगों को भावनाओं पर काबू रखना चाहिए और उत्तेजक बयानों पर तालियां बजाने की बजाय धैर्य दिखाना चाहिए और सेना को अपने ढंग से रणनीति बनाने देना चाहिए. ऐसी घटनाओं का दंश सिर्फ शहीदों के परिवार अकेला झेलते हैं और बाकी सब बेमानी है.


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भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी