लगन के सामने रुकावटें हार जाती हैं

भारत कलाकारों की भूमि रही है. यहां कई कलाकारों ने जन्म लिया और अपनी कला के रंग इस धरती पर बिखेरकर इसके रंग रूप को और अधिक निखार दिया. इनमें से एक हैं श्रीकांत दुबे. उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले के खानीपुर गाँव के एक साधारण परिवार में जन्मे श्रीकांत दुबे को बचपन से ही चित्रकारी करने का शौक रहा है. आपने अपने ज़िन्दगी में संघर्षों की पटरी पार करते हुए भी चित्रकारी में अपना एक विशेष स्थान बनाया है. पिछले दस वर्षो में वे हजारों पेंटिंग्स बना चुके हैं. उनकी पेंटिंग्स के प्रशंसक भारत के अलावा विदेशों में भी हैं. प्रस्तुत है ‘भारत बोलेगा’ से उनकी बातचीत.

आपने चित्रकारी की शुरूआत कब की ?
मुझे बचपन से ही चित्रकारी करने का शौक रहा है. जब भी कोई विचार मन में आता था मैं तभी उसे कागज़ पर उतार देता था.

क्या आपने यह विद्या कहीं से ग्रहण की है ?
मुझे जो भी ज्ञान मिला वह सब अपने स्कूल से ही मिला और जो सीखा वह रंगों के माध्यम से धरती पर बिखेरना शुरू कर दिया.

आपकी पेंटिंग से क्या संदेश होता है ?
मैं अपनी पेंटिंग से लोगों को भारतीय संस्कृति से रूबरू कराना चाहता हूँ विशेषकर उन लोगों को जो लोग आज भारतीय कला को भूलते जा रहें हैं.

आपकी पेंटिंग दुसरे चित्रकारों की पेंटिंग से अलग कैसे है ?
मेरी पेंटिंग की सबसे बड़ी विशेषता है कि मेरी पेंटिंग में सभी की आंखें एक जैसे ही होती है, चाहे वह पेंटिंग किसी भगवान की हो, इंसान की हो या फिर खुद मेरी ही क्यों न हो. मैं अपने चित्रों में आयल और पानी के रंगों का प्रयोग करता हूँ.

आप किस माहौल में चित्रकारी करना पसंद करते हैं ?
मुझे चित्रकारी करने के लिए एक दम शांत वातावरण पसंद है. हां पेंटिंग बनाते समय गाने जरूर सुनता हूँ. एक बार तो मेरी पेंटिंग इतनी अच्छी बनी कि मैं खुद ही गाने पर झूम कर नाचने लगा.

क्या चित्रकारी ही आपकी जीविकोपार्जन का साधन है या किसी और क्षेत्र में भी आप कार्यरत है ?
मैं चित्रकारी सिर्फ मनोरंजन करने के लिए करता हूँ लेकिन अब यह कहीं-न-कहीं जीविकोपार्जन का साधन बन गया है. इसके साथ-साथ में इंस्टिट्यूट और स्कूलों में निजी रूप से कला शिक्षा भी देता हूँ.

आपकी ज़िन्दगी का कोई एक ऐसा वाकया जो आपके दिल को झकझोर कर रख देता हो?
मैं कक्षा नौ में पढ़ता था. एक दिन तूफ़ान और बारिश में अपनी भैंस बाहर खुले आंगन से लेने के लिए जैसे ही बाहर निकला तेज आंधी के कारण बिजली का तार टूटकर मेरे सीधे हाथ पर गिर गया. उस समय मुझे कोई होश नहीं रहा. उसी भयंकर हादसे में मेरा एक हाथ बेजान हो गया. मैं लगातार 6 महीनों तक अस्पताल में रहा फिर भी मैने हिम्मत नहीं हारी.

ज़िन्दगी की कोई-न-कोई घटना आपको कुछ सिखाती है और यही हुआ मेरे साथ. मेरा हाथ बेजान होने की वजह से मेरे चित्रकला के अध्यापक ने मुझे चित्रकारी से दूर रहने के लिए कहा लेकिन मैंने तभी संकल्प किया कि मैं उनकी यह ग़लतफ़हमी दूर करके ही रहूंगा.

मैंने लगातार तीन महीनों तक अभ्यास किया और अपने विद्यालय में चित्रकला प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया. तब से लेकर आज तक लगातार पेंटिंग बनाता आ रहा हूँ.

सच. बुलंद हौसलों और सच्ची लगन के सामने बड़ी रुकावटें भी परास्त हो जाती हैं.

– पूनम शर्मा


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी