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शेखर कपूर: मैं क्या कर रहा हूं

प्रतिभा के धनी शेखर कपूर हमेशा से सुर्खियां बटोरते रहे हैं. चाहे वे डिगजैम ब्रांड की मॉडलिंग करें या बैंडिट क्वीन जैसी फिल्में बनाएं.

शेखर कपूर को उनके हर काम के लिए तारीफ़ मिलती है.

टीवी श्रृंखला ‘उड़ान’ में रोमांटिक नायक के रूप में या ‘एलिजाबेथ’ व ‘मासूम’ जैसी अंतरराष्ट्रीय स्तर की फिल्मों के निर्माता-निर्देशक के रूप में, उन्हें एक तेज दीमाग वाले व्यक्ति के तौर पर पहचाना जाता रहा है.

दाढ़ीदार शेखर कपूर की दो बातें जानें यहां – भारत बोलेगा पर.

शेखर कपूर कौन हैं?

पीछे की बात की जाए तो शेखर कपूर एक औसत शिक्षा व्यवस्था का शिकार रहे हैं. इसलिए उन्होंने भारत की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा प्रणाली से बाहर निकल कर प्रयोग किया. उन्होंने एक ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश की जिसमें वे पता लगा सकें कि “मैं कौन हूं और क्या कर रहा हूं.”

क्या हर कोई ऐसे प्रयास कर सकता है?

किसी भी क्षेत्र में सच्ची रचनात्मकता का प्रयास किया जा सकता है, जिससे हर कोई बेहतर वातावरण में रह सके. यह आपको तय करना होगा कि आप किस व्यवस्था में, कैसे वातावरण में रहना चाहते हैं. शेखर कपूर का मानना है कि “कुछ बनाने से ही कुछ बन सकता है. प्रयास तो करना ही होगा.”

इससे भविष्य कितना सुरक्षित हो सकता है?

“सही वातावरण में ही सही बातें उभर कर बाहर आती हैं.” शेखर कपूर का इसलिए मानना है कि “अपने मस्तिष्क के बाएं व दाएं भाग के बीच सही संयोजन बैठाने से यह संभव है.” भविष्य में अधिकतम क्षमता वाले छात्रों और लोगों को ही यथोचित स्थान मिल सकेगा. वही समाज में अधिक से अधिक योगदान कर पाएंगे. वे कहते हैं, “आखिर आप कब तक खुद को विकास से वंचित रख सकते हैं. आने वाले समय में तो शिक्षा के साथ कार्यस्थलों और संस्थाओं में भी बदलाव होंगे. उस परिस्थिति में अगर आप खुद को अप टू डेट नहीं रखेंगे तो पिछड़ जाएंगे.”

अच्छी शिक्षा क्यों जरूरी है?

इस बारे में शेखर कपूर कहते हैं, “जहां शिक्षा ख़त्म होती है, वहीं से आपका करियर शुरू होता है. अब आप समझ लें कि आपको कैसा करियर चुनना है, कौन नियोक्ता आपको नौकरी देगा, या फिर कहां आप नौकरी करने में सक्षम हो सकेंगे. इसलिए यह जरूरी है कि बेहतर से बेहतर शिक्षा हासिल की जाए.”

तो क्या शेखर कपूर यह कहना चाहते हैं कि छात्र विद्रोह करें?

नहीं, उनका कहना है कि “हमें छात्रों को शोध में लगाना है. उन्हें मालूम होना चाहिए कि वे क्या पढ़ रहे हैं, क्यों पढ़ रहे हैं. वह जो पढ़ रहे हैं, उससे क्या हो सकता है? इस तरह उनमें रचनात्मकता आएगी जो उनकी सफलता का मूलभूत ड्राइवर बनेगी.”

मगर, देश तो प्रगति कर रहा है….

“आर्थिक विकास, जैसा कि अब परिभाषित किया गया है, अक्सर हमारे भविष्य को देखने के लिए सबसे अच्छा शब्द नहीं हो सकता है. मैं क्रिएटिव कल्चर में विकास देखना चाहता हूँ ताकि हमारे बच्चों का, नागरिकों का भविष्य सुरक्षित हो सके, इसी से आर्थिक और समावेशी दोनों ही विकास को बढ़ावा मिलेगा. आधुनिक तकनीक और डिजिटल दुनिया में क्रिएटिविटी को ही तवज्जो दी जा रही है.”


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी
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