फोटोग्राफी: जहां हर कोई है बाज़ीगर

फोटोग्राफी एक जुनून से कम नहीं. कई लोग इसे बहुत मंहगा पेशा मानते हैं. जबकि नए दौड़ में जिसे देखो वही तस्वीर खींच रहा है.

एक ज़माना वह भी था जब बड़ों से डांट पड़ती थी अगर एक ही पोज़ में किसी ने दो तस्वीरें खिंचवा ली तो. क्योंकि तब पूरे कैमरा रोल में 30 से कुछ अधिक फोटो खींच पाती थीं.

तस्वीर खींचने का जिन्हें कुछ अनुभव हो, वही कैमरा उठाने का जिम्मा उठाते थे – चाहे पिकनिक हो या आउटिंग, कहीं की यात्रा हो या शादी. लेकिन, आज हर कोई इस खेल में बाज़ीगर है.

ये सेल्फी का ज़माना जो ठहरा. अब तस्वीर कैसी भी हो, टेढ़ी मेढ़ी उल्टी सीधी, बस खींच ली जाती है और दोस्तों परिवारों में शेयर भी होती है.

अपनी किसी सेल्फी में देखा नहीं आपने, फोटो खींचने वाले का मुंह अजीब सा चमक रहा होता है. सबसे आगे दिख रहा व्यक्ति मोटा लगता है. कोई टेढ़ा दिखता है तो कोई आधा. पीछे खड़े हुए लोग छोटे बड़े दिखते हैं. और सेल्फी भी तड़ाक – तड़ाक कई खींच ली जाती है.

यह भी बहुत आम बात है कि हर चीज़ की कई तस्वीर खींची जाती है. और सब कुछ सोशल मीडिया पर पोस्ट भी होता है. एक ही जगह पर एक ही पोज़, एक ही कपड़ा पहने एक ही चेहरा बार बार कई तस्वीरों में.

अब जब इतनी सारी तस्वीरें लेंगे तो उन्हें रखेंगे कहां? आजकल तो स्टूडियो में कम ही तस्वीरें डेवलप करवाई जाती हैं. कैमरा और फोन की मेमरी का क्या करें?

इसका एक अलग पहलू यह है कि फोटोग्राफी खुद को व्यक्त करने का एक माध्यम है. 

जी कैफे क्रिएटिव एजेंसी के फोटोग्राफर जॉनी घोष कहते हैं, “फोटोग्राफी व्यक्ति के अंदर छुपी कला और रचनात्मकता की अभिव्यक्ति का जरिया है. अपनी भावनाओं को चि‍त्रित करने के लिए कुछ लोग शौकिया फोटोग्राफी करते हैं और आगे चलकर अक्सर वे अपने इस शौक को ही अपना करियर बना लेते हैं. ध्यान रहे कि जबरदस्त तस्वीरें इंसान को भीतर तक हिला देती हैं चूंकि वे बेबाक और हैरान करने वाली होती हैं.”

तस्वीरें आज भी कल भी

फोटोग्राफी…! कैसी फोटोग्राफी? यह काफी महंगी है और मैंने वास्तव में इसका कोई कोर्स नहीं किया है. मैं एक योग्य फोटोग्राफर नहीं हूँ. मेरे पास अच्छा कैमरा भी नहीं है… पहले यही सब कुछ लोगों से सुनने को मिलता था.

इस दीवार को डिजिटल बूम ने खूब तोड़ा है. अब सभी के पास कैमरा से लैस स्मार्टफोन आ गया है.  

जहां कभी गिने चुने सभ्रांत समझे जाने वाले परिवार में कैमरा हुआ करता था वहीं अचानक ही सब कुछ बदल गया है. डी.एस.एल.आर. कैमरों व स्मार्टफोन के उच्च मेगापिक्सेल कैमरों की मदद से अधिक किफायती एवं आधुनिक तकनीक हर किसी के हाथ में आ गई है.

क्या आप भी खुद को बेहतर फोटोग्राफर नहीं मानते?

चलते फिरते सभी फोटोग्राफी करना सीख गए हैं. हर छोटी बड़ी चीज़ की तस्वीर खट से सोशल मीडिया पर लाइक और कमेंट के लिए पोस्ट की जा रही है.

इस युग में हर आदमी एक फोटोग्राफर है. लेकिन, क्या यह सचमुच ऐसा है? क्या यही फोटोग्राफी का असली स्वरुप है?

फोटो कंस्ट्रक्शन, खींचने वाले की सोच, कल्पना, सब्जेक्ट व लाइट का क्या?

जब आप लोगों की रंगीन तस्वीर लेते हैं तब आप बस उनके कपड़ों की तस्वीर लेते हैं. लेकिन, जब आप ब्लैक एंड व्हाइट मोड में लोगों की तस्वीर खींचते हैं, तो आप उनकी आत्माओं को चित्रित करते हैं.

फोटोग्राफी बस एक परिप्रेक्ष्य है जहां हर कोई सब कुछ देखता है. सच्चा फोटोग्राफर वो है जो सबसे परे अपनी नज़र से एक फ्रेम की पहचान करता है.

बेहतर उपकरणों पर चाहे जितनी बहस कर लें, लेकिन यह समझ लें कि सिर्फ हाई टेक डिजिटल उपकरण से उच्च क्लास की फोटोग्राफी की गारंटी नहीं मिल सकती.

यह सच है कि आज एक कैमरे की क्षमताओं में कई गुना सुधार हुआ है, लेकिन एक कला के रूप में फोटोग्राफी अभी भी सीखना बाकी है.

पुराने दिनों की तरह ही फोटोग्राफी एक हमेशा विकसित होने वाली कला है, जिसने कई तरह से कलाकारों की सहायता करने और कलाकार को अलग-अलग परिप्रेक्ष्य, रचनाओं और लाइटिंग का उपयोग करके उस तकनीक का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने में मदद की है. एक सही शॉट पर क्लिक करना अभी भी कला है जो सीखना ज़रूरी है.

आजकल का चलन – फोनोग्राफी

एक यादगार तस्वीर बनाने के लिए आवश्यक तत्व हैं विषय, प्रकाश, संरचना और कैमरे की तकनीक. इसके साथ महत्वपूर्ण है आपकी अद्वितीय दृष्टि, यानी वो देख पाना जो और कोई न देख पाए ताकि एक अच्छी तस्वीर को आप जन्म दे सकें.   

इसलिए फोटोग्राफी को फोनोग्राफी से बदला नहीं जा सकता है (जो इन दिनों एक आम बात है). यह बात तो माननी पड़ेगी कि हम आसानी से मोबाइल फोन ले सकते हैं और एक दिन में कई क्षणों को कैद कर सकते हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर साझा करने में सक्षम हैं, लेकिन वास्तविकता में हम अपना कीमती समय एक फोन के लेंस के पीछे बिता देते हैं.

वास्तव में फोटोग्राफी एक कला है जिसमें आपके विषय को सावधानीपूर्वक चुनने में पहले धैर्य की आवश्यकता होती है और फिर उस विषय को सबसे बेहतर तरीके से कैद किया जाता है.

फोटोग्राफर तो सही लाइट के लिए पता नहीं कितना इंतज़ार करते हैं, वहीं स्मार्टफोन लिए व्यक्ति एक झटके में कहीं भी कुछ भी खींचता रहता है. यह जरूरत पर भी निर्भर करता है. अब आप हर फोटो के लिए फोटोग्राफर तो नहीं बुलाएंगे. ना ही आप प्रकाश के सही होने तक इंतजार करेंगे.

आप तो हर क्षण को कैद करने के लिए बेचैन हैं. जबकि एक मंजा फोटोग्राफर अपनी मनचाही तस्वीर के लिए कितना ही घूमता रहता है. ये मुमकिन है कि कई दिन तक उसके हाथ कुछ भी नहीं लगता. लेकिन, जब वह उसे ढूंढ लेता है, तो वह ऐसी छवि बनाता है जो जादू से कम नहीं है.

और हां. फोटोग्राफी सौ फ्रेम शूट करने की कला नहीं है, लेकिन, धैर्यपूर्वक एक सही शॉट पाने के लिए इंतजार करना एक कला ज़रूर है. कला और तकनीक के मिलन के परिणामस्वरूप ही एक महान फोटोग्राफी जन्म लेती है और इसकी प्रामाणिकता खोने का कोई खतरा नहीं रहता है.

आज कंप्यूटर ग्राफिक्स मूल कला के लिए एक खतरा पैदा कर रहे हैं. यकीन मानिए, किसी पल का गवाह होना और शारीरिक रूप से वहां उपस्थित होने का रोमांच, कंप्यूटर पर एक डिजिटल तस्वीर बनाने की बराबरी कभी नहीं कर सकता.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी