पुराने समय में घरों में पानी ठंडा रखने के लिए मटके का इस्तेमाल होता था. यदि आपने मटके का पानी प्रयोग किया है तो आप फ्रिज के ठंडे पानी और मटके के पानी में बहुत आसानी से अंतर महसूस कर सकते हैं.
मटके के पानी में एक सोंधी और भीनी-भीनी सी खुश्बू होती है जो पानी को प्राकृतिक रूप से स्वादिष्ट बना देती है. इस पानी को पीने का आनंद ही कुछ और होता है. इसके अलावा मटके का पानी सेहत के लिए भी फायदेमंद है.
खाना खाने के बाद यदि फ्रिज का ठंडा पानी (cold water) पीते हैं तो इस आदत को तुरंत बदल डालें क्योंकि ऐसा करने से खाना देर से पचता है. और एसिडिटि (acidity), इनडाइजेशन तथा गैस (gas) की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.
जबकि मटके का प्राकृतिक ठंडा पानी पीने से मेटाबोलिज्म या पाचन क्रिया बेहतर होती है.
आम तौर पर गर्मी में ठंडा पानी पीने की तलब होती है और हम फ्रिज का ठंडा पानी पी लेते हैं. लेकिन ठंडा पानी हमारे गले और बाकी अंगों को नुकसान पहुंचाता है.
ऐसा करने से गले की कोशिकाओं का ताप अचानक गिर जाता है जिससे गले में दर्द और टॉन्सिल्स की समस्या हो सकती है. जबकि घड़े या मटके (earthen pot) का पानी गले पर कोई बुरा प्रभाव नहीं डालता है.
फ्रिज या बर्फ का पानी पीने में तो ठंडा होता है लेकिन इसकी तासीर गरम होती है. इस पानी से प्यास नहीं बुझती. बल्कि ऐसा पानी पीने से कब्ज (constipation) हो जाती है, तथा यह वात को बढ़ाता है. जबकि मटके का पानी वात को नहीं बढ़ाता और प्यास को शांत करता है.
मटके को रंगने के लिए गेरू का इस्तेमाल होता है जो गर्मी में शीतलता देता है.
मिट्टी में सोखने की क्षमता होती है. इस कारण मटका पानी की अशुद्धियों को सोख लेता है. इस पानी को पीने से शरीर की इम्यूनिटी (immunity) बढ़ती है. जबकि फ्रिज में प्लास्टिक की बोतलों में पानी रखने से प्लास्टिक की अशुद्धियां पानी के अंदर आ जाती हैं.