रोना कितना सही है? सच बताएं, आपको कब-कब रोना आता है?
कितनी बार आपने ये सुना होगा, या खुद कहा होगा – अच्छे बच्चे रोते नहीं. आपने यह भी सुना होगा – रोने से सब ठीक तो नहीं हो जाएगा. कुछ तो यह भी कहते हैं – कितना रोती है ये लड़की.
समाज में रोना (crying) अक्सर कमजोरी की निशानी के रूप में देखा जाता है. हालांकि एक सीमा तक रोना सेहत के लिए लाभदायक होता है.
यह समझना ज़रूरी है कि हर व्यक्ति का, किसी परिस्थिति को समझने एवं उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने का तरीका अलग हो सकता है.
जो बात किसी एक को बहुत ठेस पहुंचाती है, वहीं उसी बात से किसी दूसरे को शायद फर्क भी ना पड़ता हो.
हमारे जीवन में अनेक समस्याएं हो सकती हैं, और उनसे निपटने के लिए हम सभी के पास अलग-अलग तरीके भी होते हैं.
किसी भी परिस्थिति में रोना या ना रोना, अक्सर हमारे हाथ में नहीं होता. रोना तो बस आ जाता है.
कई बार हम रोने से बचते हैं, या किसी के सामने आंसू छलकाने से डरते हैं, ताकि कोई हमें कमज़ोर समझ कर मजाक न बना दे.
यह नतीजा है उन बातों का जिन्हें सुन-सुनकर हम बड़े हुए हैं. ये वही बाते हैं जिन्होंने हमें रोने को एक कमजोरी के रूप में देखना सिखाया है.
रोना दरअसल हिम्मत की निशानी है
कोई फिल्म देखते-देखते या कोई उपन्यास पढ़ते-पढ़ते, क्या हमारी आंखें नम नहीं हो जाती हैं? तब कहीं-न-कहीं हमें एहसास होता है कि किसी किरदार या कहानी में हम खुद को देख पा रहे हैं.
ऐसे में रोना हमारे अंदर की सच्चाई का प्रतीत होता है, जहां एक काल्पनिक किरदार के साथ हो रही घटनाएं हम पर असर करने लगती हैं. यह प्रक्रिया व्यक्ति के उस पहलु को छू जाती है जिससे कई बार वह खुद भी रोजाना की ज़िन्दगी में भुला चुका होता है.
अनुसंधान और अध्ययन भी बताते हैं कि रोने से व्यक्ति का तनाव कम होता है और मन का बोझ हल्का हो जाता है.
रोते समय हमारे शरीर से कुछ केमिकल भी रिलीज़ होते हैं, जिससे शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा में राहत मिलती है.
आंसू सिर्फ गम के नहीं होते, और खुशी में रोना कोई बुरी बात नहीं है. इससे हमारा भावुक संतुलन बरकरार रहता है. यह एक सामान्य एवं स्वस्थ प्रतिक्रया है.
यदि रो कर अपने भाव प्रकट करना चाहें, तो उससे न खुद कतराएं ना दूसरे को असहज महसूस होने दें.
यदि आपको लगता है कि आप ज़रूरत से ज्यादा ही रो रहे हैं, तो घबराएं नहीं. किसी परिस्थिति में रीऐक्ट करने कि यह आपके शरीर की अपनी प्रतिक्रिया हो सकती है. फिर भी अगर ज़रुरत हो तो एक काउंसलर, साइकलोजिस्ट, या डॉक्टर की सलाह ली जा सकती है.