क्या आप भी करते हैं लड़का-लड़की में भेद?

अपने बच्चे (children) के विषय में आप क्या सोच रखते हैं, यह बहुत ज़रूरी है. मेरी तीन बेटियां हैं. एक का फेवरेट रंग काला है, दूसरी का पीकॉक ब्लू, और तीसरी बेटी को मैरून पसंद है. ये कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है कि तीनों ही बेटियां वैसे तो हर रंग के कपड़े शौक से पहनती हैं, पर गुलाबी रंग उन्हें कुछ खास पसंद नहीं.

मॉडर्न पैरेंट्स बनने का मतलब बच्चों को सिर्फ टेक्नोलाजी सिखाना या खुली छूट देना नहीं होता

मैंने पाया है कि सोशल मीडिया पर बच्चे के जन्म से पहले ही उसकी लिंग भांपने की कुछ अलग ही कोशिश हो रही है.

प्रक्रिया कुछ इस प्रकार होती है – सामने रखे एक डिब्बे को होने वाले माता पिता खोलते हैं. उसमें से यदि गुलाबी गुब्बारा एवं रिबन निकले, तो समझ लीजिए कि लड़की का जन्म होने वाला है. यदि नीला गुब्बारा निकले तो एक लड़के का. लड़के और लड़की के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं.

बच्चे के जन्म से पहले कुछ लोग यह भी तय करने लग जाते हैं कि जन्म के बाद उसे कौन सा रंग भाएगा. नीले और गुलाबी रंगों में लोग नया संसार बुनने लगते हैं.

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बच्चे के जन्म के बाद उसके कमरे को भी उसके लिंग के अनुसार सजा दिया जाता है. इस तरह का मानसिक अनुकूलन बच्चे के सामने सिर्फ दो ही विकल्प प्रदान करता है – या तो वह लड़की हो और गुलाबी रंग उसे भाए, या फिर लड़का जिसे नीला रंग भाए.

लड़की हो तो सुंदर बनकर रहे, सजे-संवरे, तमीज से उठे-बैठे, प्यार से बात करे, बार्बी गुड़िया से खेले और संवेदनशील बने. लड़का हो तो खेले कूदे, बलवान बने, बहन की रक्षा करे और कभी भी कमज़ोर ना बने.

लेकिन, आप अपनी सोच के दायरे को थोड़ा बढ़ाने का प्रयास करें. मॉडर्न पैरेंट्स बनने का मतलब बच्चों को टेक्नोलाजी सिखाना या खुली छूट देना नहीं होता, बल्कि उनकी सोच के तरीकों को एक बेहतर ढांचा देना होता है. इसके लिए ज़रूरी है कि अभिभावक खुद पहले इन लिंगभेद के मुद्दों से बाहर निकलें, और बच्चे को खुद को समझने और अपनी पसंद-नापसंद का चुनाव करने का अवसर दें.


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