कभी सोचा है, जो भी पढ़ा क्यों पढ़ा

बच्चे तो बच्चे, मैंने अक्सर बड़े-बूढों को भी यह शिकायत करते पाया है कि उन्हें विद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले अनेक विषय (subjects) व्यावहारिक रूप से ज़िन्दगी में कभी काम नहीं आए.

पढ़ाई के महत्व की जब भी बात हो, तो उनकी सीधी सादी समस्या बड़े सरल रूप में सामने आ जाती है – अंग्रेजी और हिंदी विषय के इतने अध्याय पढ़ कर, न जाने कितने जवाब रटे होंगे. गणित के अनगिनत सवालों में उलझे-उलझे कितना समय गंवा दिया होगा, परंतु कई सवाल एक सत्र के बाद, उसी विषय की परीक्षा में भी दोबारा कभी नहीं पूछे गए.

वास्तव में देखा जाए तो हल इनकी समस्या में ही छिपा हुआ है. जो आप पढ़ रहे हैं, उसके महत्व को ना समझ पाने का सबसे बड़ा कारण उस विषय के प्रति आपका दृष्टिकोण का है.

जैसे-जैसे आप ऊपर की कक्षा में जाते हैं, अमूमन यह भी देखा जाता है कि अभिभावक खुद ही कुछ विषय (जैसे विज्ञान) को अन्य विषयों (जैसे हिंदी, अंग्रेजी) से अधिक महत्व देने लग जाते हैं. इससे बच्चे की पढ़ाई में रूचि पर भी काफी असर पड़ता है.

जब कागज़ पर लिखे जटिल से जटिल सवाल के जवाब बिना सुलझाए नहीं आते, तो ज़िन्दगी में आने वाले उतार चढ़ाव आसानी से या खुद ब खुद कैसे हल हो जाएंगे

कभी पाठयक्रम के भार, तो कभी किसी और वजह से विद्यार्थी यह समझने का प्रयास ही नहीं करते कि जो भी वह पढ़ रहे हैं, उसे क्यों पढ़ रहे हैं. किसी भी विषय के किसी भी अध्याय को पढ़ने के पूर्व इस सवाल का जवाब जानना अत्यधिक महत्वपूर्ण है.

जब हर अध्याय के साथ आप अपने इस प्रश्न का जवाब ढूंढेंगे, तो हर अध्याय के साथ-साथ आपके इस प्रश्न का जवाब भी बदलता जाएगा, यानी जितने अध्याय, उतनी ही विशिष्ट उनकी अहमियत भी होगी.

यदि बात साहित्य की हो, तो शायद आप भी इस बात से सहमत होंगे कि विद्यालय स्तर पर अन्य विषयों के बीच अक्सर साहित्य को कम महत्व दिया जाता है.

जीवन के सार जिस बखूबी से कहानियों के माध्यम से समझे जा सकते हैं, वह शायद ही किसी और तरीके से संभव हो.

कहानियां ना केवल मनोरंजक होती हैं, बल्कि हर एक पंक्ति में हज़ारों बातें बड़े ही सरल रूप में अपने अंदर सजोए रखती हैं.

यदि आप कहानियों को पढ़ने के साथ-साथ उन्हें समझने का प्रयास भी करें तो रट्टा मारने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी.

गणित की जो उलझनें आपको अपने में उलझाए रखती हैं, आपका इतना समय लेती हैं, वह जीवन में आई उलझनों के सुलझान की तरफ भी तो इशारा करती हैं. जब कागज़ पर लिखे जटिल से जटिल सवाल के जवाब बिना सुलझाए नहीं आते, तो ज़िन्दगी में आने वाले उतार चढ़ाव आसानी से या खुद ब खुद कैसे हल हो जाएंगे.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी