भारत का इतिहास सफल महिलाओं के उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में ऊंचाइयों को छुआ है. इसके बावजूद भारत में बालिकाओं को आज भी अनेक परेशानियों से गुजरना पड़ता है.
इस बात को समाज और सरकार समझती है और इसके लिए विभिन्न योजनाएं भी लाती है. लेकिन अभी तक इस विषय पर गंभीरता से काम नहीं किया गया है.
जब देश में 43 प्रतिशत लड़कियां कुपोषित हैं तो हमारी कोशिश होनी चाहिए कि बालिकाएं जीवित रहें और पुरूष प्रधान समाज में गरिमा और सम्मान से रहें.
हमारी कोशिश होनी चाहिए कि –
- लड़कियों के सामने आने वाली असमानताओं को समाप्त किया जाए.
- बच्चों के लिंगानुपात को सामान्य बनाया जाए.
- बालिकाओं की भूमिका और उनके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए.
- बलिकाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण जैसे मुद्दों का निपटारा हो.
हमें वर्तमान मानसिकता को खत्म करके यह सुनिश्चिकत करना है कि लड़की के जन्म से पहले ही उसे बोझ न समझा जाए और वह हिंसा अथवा भ्रूण हत्या का शिकार न बने.
इन चुनौतियों से निपटने के लिए रक्षा, जागरूकता और सकारात्मक कार्य पर जोर देना होगा, जैसे गर्भावस्था के दौरान लिंग का पता लगाने पर रोक, बाल-विवाह पर रोक, गर्भवती महिलाओं की प्रसव-पूर्व उचित देखभाल, ग्रामीण इलाकों में लड़कियों को बेहतर जीवन-यापन के अवसरों की जानकारी.
प्रत्येक बालिका के नाम पर बचत खाता खोला जाए, जिसका उद्देश्य बालिकाओं का भविष्य सुरक्षित करना हो.
चाइल्डलाइन सेवा भारत में लड़कियों की सुरक्षा के लिए जोर-शोर से शुरू होनी चाहिए. समाज के हर वर्ग को पता है कि भारत में किस हद तक बच्चों का उत्पीड़न होता है. बजट में बच्चों के लिए विशेष बजट का प्रावधान कर कल्याण योजनाओं को शुरू करना चाहिए.