हाफ पैंट भी गजब का ड्रेस है. छोटे शहर से आए हम जैसे लोग, इसे पहनते ही ‘फुल कॉन्फिडेंस’ में आ जाते हैं. कार भी स्टाइल से चलाने लगते हैं.
आज कल ठेहुना तक वाला फैशन में है – यूनी सेक्स… दस पॉकेट तो होगा ही! बाज़ार में गाड़ी पार्क कीजिए – पार्किंग टिकट आपने किस पॉकेट में रखा – पता ही नहीं! अब गाड़ी वापस लेते समय कुत्ते की तरह सभी पॉकेट में खोजिए …हांफते हुए… मालूम नहीं कहां गया.
बचपन में ब्लू चेक लुंगी पहने लोगों को आपने देखा होगा. अब वैसा ही चेक वाला हाफ पैंट भी आ गया है.
बबलू दिल्ली आया था – कलक्टर बनने – मगध ट्रेन से आता था – जाता था. स्टेशन पहुंचते ही हाफ पैंट और रात में भी (नकली) रे-बैन और कान में वाक-मैन.
हमने मैडोना का कैसेट पहली दफा उसके पास ही देखा था. बस देखता रह गया था. उसने तब कहा था कि …कभी आओ …दिल्ली …मुखर्जी नगर …और बढ़िया बढ़िया गाना सुनाएंगे …कैसेट दिखाएंगे.
बाबूजी से हमने भी कहा – “हम-हू जाएंगे… दिल्ली… हाफ पैंट में… मगध से.”
फिर मालूम नहीं क्या हुआ. बबलू को हाफ पैंट पहनते-पहनते किसी हाफ पैंट वाली से मोहब्बत हो गई. कलक्टरी गया तेल लेने – अब वो मोमो खाने लगा.
पटना आकर जब वो मोमो के किस्से सुनाता तब हम समोसा खाने वाले उब गए उसे सुनते-सुनते.
अब हमने सुना है… उसका अपना खुद का वहीं कहीं ‘मोमो का ठेला’ लगता है. दोनों हाफ पैंट में ही मोमो बेचते हैं – लाल खूब तीखा चटनी के साथ.
वूडलैंड ने तो और कहर ढाया है. उसके हाफ पैंट में कॉन्फिडेंस तो बहुत है लेकिन अगर आपने उसे बरसात में धो दिया तो अगले मौसम में सूखेगा.
लेकिन जब चिम्पू ने भी उसे पहना तो उसे देख दो बरतुहार (लडकी वाला – शादी हेतु) भाग गए.
चिम्पू अब उसी हाफ पैंट में प्रगति मैदान में मेला के टाईम ‘घुघनी-चूरा’ बेचता है …हाथ में कलछुल लिए.
– रंजन ऋतुराज