क्या औरतों का सिर्फ खूबसूरत दिखना ही काफी है

खूबसूरत (beautiful) कौन है? क्या वह जो हमारी आंखों को अपनी लुभावनी बनावट से बांध ले या फिर वह जो अपने आंतरिक गुणों की बदौलत हमारे दिमाग को हैरान कर उसके बारे में सोचने पर मजबूर कर दे?

बात स्त्री और पुरुष की खूबसूरती की करें तो बरसों पहले इन्हें मापने के लिए दो अलग तरीके अपनाए गए. स्त्री की खूबसूरती के लिए बाहरी बनावट आवश्यक माना गया तो पुरुषों के खूबसूरत होने का भार उनके गुणों पर सौंप दिया गया.

यह तरीका आमतौर पर सभी इंसानी समुदायों में अपनाया गया. वजह ये कि इंसानी-जीवन के आरंभ में इस जीवन को व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए मर्द और औरत ने दो अलग-अलग कामों की ज़िम्मेदारी ली.

पुरुष घर के बाहर शिकार के लिए निकलता तो स्त्री गर्भ में पल रहे शिशु को सुरक्षित रखने के लिए घर पर ही रुक कर पुरुष का इंतज़ार करती.

धीरे-धीरे विकास ने पांव पसारा. शिकार के अलावा भी पुरुष कई बाहरी कामों को अंजाम देने लगा. उसके अनुभव का दायरा लगातार बढ़ता गया. मगर औरत बाहरी अनुभवों से लगातार कटती गई.

नतीजा यह हुआ कि मर्द कई गुणों में दक्ष हो गया, वहीँ औरत सीमित होकर केवल घर की खूबसूरत सामान बन कर रह गई. घर की सुंदर गुड़िया बनते उसे देर नहीं लगी.

इसका उदाहरण कभी चीन में अपनाए गए लोटस फीट परंपरा को देख कर लगाया जा सकता है. अब इस परंपरा पर प्रतिबंध है लेकिन तब इसकी शिकार छोटी बच्चियां हुआ करती थीं. उनकी सुंदरता का मतलब छोटे और कमल आकार के पैर माने जाते थे. इसलिए कम उम्र में ही उनके पैरों को मजबूती के साथ एक कपड़े से बांध दिया जाता था.

चीन में इसकी शिकार वे लड़कियां अब बूढ़ी हो चली हैं. सु जी रॉन्ग भी इन्हीं महिलाओं में से एक हैं. वह बताती हैं कि अगर बचपन में उनके पैरों को नहीं बांधा गया होता तो उनकी शादी भी नहीं होती.

“बहुत ही छोटी उम्र में मेरे पैरों को एक कपड़े से इस तरह बांध दिया गया कि बढ़ती उम्र के साथ पैरों की ऊंगलियां तलवों की तरफ़ मुड़ने लगीं. उस वक्त मुझे बहुत दर्द हुआ करता था. विरोध करने पर घर के बुज़ुर्ग मुझे सज़ा दिया करते थे. यह तरीका बहुत ही दर्दनाक होता था.”

“उस समय लड़की के पैर जितने छोटे और कमल आकार के होते, उसकी उतने ही संपन्न घर में शादी हुआ करती थी. मगर मैं इन पैरों से ज़्यादा काम नहीं कर पाती थी. बिना किसी की मदद लिए घर से जाना तो नामुमकिन ही था.” 

लोटस फीट जैसी क्रूर परंपरा पर रोक यह इशारा करता है कि बौद्धिक विकास ने सौंदर्य की परिभाषा को बदलने में अहम भूमिका निभाई  है. आज औरतें केवल रंग रूप से नहीं जानी जाती बल्कि उनके गुणों को भी सम्मान दिया जाता है.

तो क्या हम मान सकते हैं कि आज की जो ज़िन्दगी है वह औरतों के लिए पहले से बेहतर है? बेशक है, मगर यह काफी नहीं. इस स्थिति से आगे नहीं बढ़ा गया तो शायद हम फिर से पीछे चले जाएं.


भारत बोलेगा: जानकारी भी, समझदारी भी