आज के युग में खूबसूरत (beautiful) दिखने के अत्याधुनिक साधन हर ओर आसानी से उपलब्ध हैं. आप चेहरे, नाक नक्श, रंग रूप, केश और काया को जैसा चाहें वैसा बना सकते हैं, और आप मन चाहे सुंदर दिख सकते हैं.
ऐसा लगता है कि पूरे विश्व का सौंदर्य बोध अचानक जाग गया है, और अब किसी भी वस्तु जो खूबसूरत न हो, उसका इस आधुनिक विश्व में कोई स्थान नहीं है.
कुछ दिनों पहले मैं अपने किसी रिश्तेदार को रेलवे स्टेशन पर लेने गई हुई थी. ट्रेन के विलंबित होने से बहुत लंबे समय के बाद स्टेशन पर देर तक बैठना हुआ. देखकर लग ही नहीं रहा था कि कोई भी थका हुआ है.
महिलाएं पुरुष सभी एकदम टिप-टॉप तरीके से तैयार. सभी खूबसूरत. कहने का तात्पर्य कि आज के दौर में “लुक्स मैटर्स”. और यही लुक्स (दिखावा) इस युग में मानसिक तनाव का रूप ले रहे हैं.
लोगों में खूबसूरत दिखने की प्रतिस्पर्धा है. वे स्वयं के लिए नहीं, दूसरों के लिए खूबसूरत दिखना चाहते हैं. सोशल मीडिया के लिए सुंदर दिखना चाहते हैं.
अनेक वैज्ञानिक शोध के अनुसार सुंदरता बढ़ाने के सभी उत्पादकों एवं प्रचिलित तरीकों के अत्यंत हानिकारक दुष्प्रभाव हैं जो आपकी देह के साथ आपके मानसिक स्तर को भी क्षति पहुंचाते हैं, असंतोष पैदा करते हैं, और कई बार ये दुष्प्रभाव गंभीर रूप लेकर आपका जीवन भी समाप्त कर सकते हैं.
यह युग देह की अधीनता का युग है. यहां ज्ञान, कला, धर्म और आत्मानुभूति के लिए कोई स्थान नहीं. हम यह भूल चुके हैं कि रूप और गुण का परस्पर कोई संबंध नहीं. हम अपनी आत्मा के गुणों से अनभिज्ञ इस दूषित देह के क्षण मात्र के सौंदर्य को ही अपना सौंदर्य मानते हैं.
एक प्रसिद्द अंग्रेजी कहावत के अनुसार सुंदरता देखने वाले की नज़रों में होती है, और अगर हम अपने आप को और इस विश्व को सुंदर देखना चाहते हैं तो हमें अपनी नज़र और नजरिया दोनों बदलने की आवश्यकता है.