पेड़-पौधे, जानवर, कीड़े-मकोड़े और इंसानों की यह दुनिया ही स्वर्ग है और नर्क है. इन सबके बीच जो सह-संबंध का संसार है वही दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता है.
पेड़-पौधे और जानवर दोनों साथ-साथ ही दुनिया में आए और विकसित हुए. इनके बीच जो पारस्परिक निर्भरता होती है उसे ही सह-विकास कहते हैं. यह रिश्ता दोनों को फायदा पहुंचाता है.
हां यह बात अलग है कि इस रिश्ते को निभाने के लिए किसी एक को कीमत चुकानी पड़ती है. दोनों में से कोई एक मरता है तो दूसरे का पेट भरता है.
कैसे जुड़े होते हैं इनके रिश्ते
पेड़-पौधे और जानवर के बीच रिश्ते की कड़ी कुछ इस तरह गुंथी हुई रहती है- पेड़-पौधे और शाकाहारी जानवर, पेड़-पौधे और परागण करने वाले जानवर, पेड़-पौधे और बीज खाकर इधर-उधर छिड़कने वाले जानवर और सबसे अहम इनके बीच की सहजीविता.
पेड़-पौधे और शाकाहारी जानवरों का संबंध
जानवर पेड़-पौधे के पत्ते और तने खाते हैं. वैसे तो इस रिश्ते में किसी एक को ही फायदा पहुंचता है और दूसरे को अपना जीवन देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, लेकिन एक नए रिसर्च में यह भी पता चला है कि जानवर जब पेड़-पौधे को खाते हैं तो पेड़-पौधों को भी फायदा पहुंचता है.
पहाड़ों पर एक पेड़ पाया जाता है, कैनोपी. इसे जब कीड़े-मकोड़े चरते हैं या खाते हैं तो जंगलों के निचली सतह पर तेज रोशनी होती है और इतना ही नहीं, जंगल की निचली सतह दोबारा उपजाऊ हो जाती है.
पेड़-पौधे और परागण करने वाले जानवर
परागण की क्रिया एक पौधे के फूल से दूसरे पौधे के प्रजनन अंग पर पराग कण जाने की प्रक्रिया को कहते हैं. परागण की क्रिया से ही पौधों में प्रजनन होता है और बीज बनते हैं.
परागण हवा के जरिये भी होता है और कीड़े-मकोड़ों के जरिये भी. चिड़ियों के जरिये भी पौधों में परागण की क्रिया होती है.
यह न सिर्फ सहजीविता का एक बेहतरीन उदाहरण है बल्कि इस प्रक्रिया में दोनों को फायदा पहुंचता है. मसलन मधुमक्खी जब फूलों पर परागण करती है तो पौधों का तो प्रजनन होता ही है और मधुमक्खी भी अपने लिए मधु जमा कर लेती हैं.
पेड़-पौधे और बीज खाकर इधर-उधर छीटने वाले जानवरों के बीच संबंध
कोई भी दो पौधे एक जगह नहीं उग सकते या निकल सकते. उन्हें उगने और निकलने के लिए बीजों की जरूरत होती है और यह बीज एक जगह से दूसरे जगह जानवरों के जरिये जाते हैं. वैसे बीज हवा और पानी के जरिये भी एक जगह से दूसरे जगह चले जाते हैं.
जानवरों का भोजन ही होता है अनाज और बीज. बीज जो यह खाते हैं उसे जगह-जगह मल के जरिये निकाल देतें हैं और फिर वहां पौधे उग आते हैं.
इस रिश्ते में भी दोनों का फायदा है. जानवर जब बीज खाते हैं तो उनके पेट और आंत के अंदर डाइजेस्टिव एंजाइम अच्छी तरह से काम करने लगता है और वह जब इसे बाहर निकालता है. फिर, बीज मोटा और परतदार हो जाता है.