घूंघट के बावजूद बिंदास

पिछले दिनों एक शादी के अवसर पर राजस्थान के एक गांव जाना हुआ. वैसे तो मैं राजस्थान पहले भी गई हूं, लेकिन वहां के गांवों को देखने का मौका नहीं मिला था.

मैं कहीं भी जाती हूं तो वहां के भूगोल से कहीं ज़्यादा लोगों के रहन-सहन, रीति-रिवाज और लोक संस्कृति के बारे में जानना अच्छा लगता है. इन सारी बातों को कैमरे में कैद करने की कोशिश करती हूं.

इस यात्रा में जयपुर से झुंझनू स्थित गांव जाते हुए रास्ते में कई नई चीज़ों ने आकर्षित किया – हमारे उत्तर प्रदेश से कहीं बेहतर सड़कें, अरावली की पहाड़ियां और उन पर बने छोटे-बड़े किले, अपने स्वर्णिम इतिहास की याद दिलाते खंडहर में बदल चुकी इमारतों वाले कस्बे, कस्बे की बाजारों में बिकते हुए हुक्के, खेजड़ी के सिर कटे पेड़ और ऐसी ही तमाम चीजें जो हमारे यूपी-बिहार के गांवों में देखने को नहीं मिलती.

हमें जिस गांव जाना था, वह हरियाणा और राजस्थान की सीमा पर है. शहर के कोलाहल से काफी दूर बसा ये गांव मुझे बहुत पसंद आया.

मुझे सबसे ज़्यादा आकर्षित किया वहां की औरतों ने. सिर ढके होने के बावजूद उनकी चाल में छुईमुईपन न होकर एक ठसक थी. घूंघट के बावजूद स्वभाव में बिंदासपन.

सुबह गांव की बड़ी-बूढी स्त्रियां बहू की मुंह-दिखाई के लिए आई हुई थीं. मैं सबकी फोटो ले रही थी. उनमें से एक महिला बीड़ी पी रही थीं.

राजस्थान भले ही रेतीला है मगर उसी भारतीय राज्य की यह बिंदास तस्वीर बताती है कि वहां गांवों में भी औरतें किसी शहर से कम नहीं.

पहले तो उन्होंने कैमरा देख मुंह फेर लिया, लेकिन जब मैंने आग्रह किया तो फोटो खिंचवाने के लिए राज़ी हो गईं.

बाहर से आती सुबह की हलकी रौशनी और कमरे के मद्धिम अंधेरे के बीच बिना किसी डर और अपराधबोध के बीड़ी का धुंआ उड़ाती उनकी तस्वीर लाजवाब है.

उनके आत्मविश्वास को देखकर लगता है कि स्त्रीवाद पर शहर की पढ़ी-लिखी महिलाओं का एकाधिकार नहीं है.


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